चरणबद्ध तरीके से
ख़ारिज करने की
कोशिशों में जुटे
ओ मेरे हितैषियों
तुम्हारे सुलगाये दावानल में
हंसकर प्रवेश कर जाती हूँ
मगर न तुम्हारे
अंतर्वस्त्र उतरती हूँ
नहीं करती तुम्हें निर्वस्त्र
क्योंकि
अभी सभ्यता बाकी है मुझमें
तुममे और मुझमें
मैं तुम्हारी सुलगायी अग्नि में
स्नान कर हो जाती हूँ
और देदीप्यमान
और मुखरित
और सुरभित
और तुम
अपनी ही ईर्ष्या के
भभकते शोलों में
जला बैठते हो अपने ही हाथ
वैसे
मर्मस्थान पर चोट करना मुझे भी आता है
मगर
नहीं करती पलटवार
क्योंकि जानती हूँ ये भी एक सत्य
कि
नकारात्मकता ही उत्तम सृजन की वाहक होती है
इसलिए
स्वागत है तुम्हारा ओ छद्मवेषधारियों
तुम्हारे छलने के लिए खुद को प्रस्तुत कर दिया है
देखे हैं कहीं ऐसे जीवट जो हथेली पर आग की खेती करते हैं .......
nice expression .
जवाब देंहटाएंसघनता से लिखा बेबाक लिखा ऐसे ही होते है लोग और कुछ करीबी तो बिलकुल ऐसे ही
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (10-04-2014) को "टूटे पत्तों- सी जिन्दगी की कड़ियाँ" (चर्चा मंच-1578) पर भी है!
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
MARM SPARSHEE BHAVABHIVYAKTI .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंbadiya line
जवाब देंहटाएंbadiya line
जवाब देंहटाएंसुन्दर सशक्त भाव बोध प्रबंध की रचना
जवाब देंहटाएंलेफ्टीयों के रक्त रंगी हाथ आजकल बिलकुल खाली हैं ,
जवाब देंहटाएंचलो उनके हाथ कुछ तो आया।
सुन्दर रचना
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