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मंगलवार, 18 मार्च 2014

वो जो दहकते हैं मुझमें पलाश

ए 
सुलगती आग 
तुझे और दहकाऊँ कैसे 
झुलस तो चुकी  हूँ 
और भडकाऊँ कैसे 

और जो आँच 
बिना आग के सुलगा करती हैं 
वो उम्र भर न बुझा करती हैं 

फिर जलने के भी अपने नियम हुआ करते हैं  
मजबूरियों के पाँव भी सुलगा करते हैं 
वो जो दहकते हैं मुझमें पलाश 
वो न किसी सागर से बुझा करते हैं 

जलने के भी अपने शऊर हुआ करते हैं 
हर बार चूल्हे की आग से ही जलना जरूरी तो नहीं होता ना

11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब ... बिना आग के भी जला जाता है ... लाजवाब अभिव्यक्ति ...

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  2. वाह वंदनाजी ..यह जलन भी खूब रही ...सुंदर

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  3. झुलसने के बाद भी यह कामना की सुलगती आग और दहके! ..वाह!!! यह कोई कवि ही कर सकता है।

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  4. बहुत ही बढ़िया आदरणीय धन्यवाद व स्वागत हैं मेरे ब्लॉग पर
    नया प्रकाशन -: बुद्धिवर्धक कहानियाँ - ( ~ अतिथि-यज्ञ ~ ) - { Inspiring stories part - 2 }
    बीता प्रकाशन -: होली गीत - { रंगों का महत्व }

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  5. परवानोँ की अजीब फितरत है
    जल कर ही चैन पाते हैँ

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  6. घूमा "कमल" डुंगर -जंगल तेरी तलाश में
    छुपी थी गोरी बन के भंवरी तू फूल पलाश में ...कमलेश रविशंकर रावल

    जवाब देंहटाएं
  7. घूमा "कमल" डुंगर -जंगल तेरी तलाश में
    छुपी थी गोरी बन के भंवरी तू फूल पलाश में ...कमलेश रविशंकर रावल

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