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शनिवार, 15 मार्च 2014

लागा चुनरी में दाग मिटाऊँ क्यों कर …

एक खूँखार वक्त में जीते हैं हम या खूँखार हैं हम तो वक्त सहम गया है हमारी खूँखारी तबियत से क्योंकि वक्त की आँख में आँसू नहीं होते मगर निशान बहुत दूर तक साथ साथ चलते हैं , कुछ गुनाह किसी कसौटी पर न तुलते हैं ऐसे में आम आदमी जाए कहाँ किधर देखे , किसे अपना समझे , कहाँ आवाज़ बुलन्द करे जब उसे कुचलने को धारदार हथियार तैयार हों , शब्दों के बाणों से धराशायी करने को , चरित्र की उज्ज्वलता को लहुलुहान करने को तैयार हों सारे रावण एक साथ क्योंकि कैसे किसी राम ने किसी रावण की बनायी लंका में प्रवेश किया , कैसे उसके बनाए प्रतिमानों को ध्वस्त किया आखिर इतने वक्त से जो घडा भरा था लहू से कैसे उससे वंचित हों , ये तो रावण के वंशजों का अधिकार है , कैसे कलई खुल जाए , कैसे रावण के वंशजों का समापन हो जाए आखिर एकजुटता से ही तो साम्राज्य बना करते हैं , आखिर घोटालों के लिये अपने ही तो काम आया करते हैं , ये दाग ही तो उनकी पहचान बनते हैं ऐसे में यदि बेदागों को स्थान दे दिया जाये तो कैसे संभव है आतंक के साम्राज्य का कायम रहना , आखिर इतनी मेहनत से सफ़ेद दामन पर दाग लगाया जाता है नज़र के टीके की तरह और उसी से वंचित रहना पडे तो सारी मेहनत पर पानी न फ़िर जाए , आखिर एक मुकम्मल स्थान पाने के लिये तो ये सारी जद्दोजहद की जाती है और फिर जब वो वक्त आता है जब अलग अलग स्थान देने के तो उस समय यही दाग काम आते हैं , आखिर दागी होना ही तो आज के युग मे ईमानदारी , सच्चाई की मिसाल बन कर सामने आया है तभी तो हर रावण अपने मंत्रिमंडल में हर दागी को स्थान देने को लालायित रहता है , आखिर पहचान दाग से ही बना करती है , लागा चुनरी में दाग मिटाऊँ क्यों कर ………जाके मंत्रिमंडल में स्थान पाऊँ अब तो ………जब तालाब मे सिर्फ़ खराब मछलियों का ही साम्राज्य हो तो कैसे कोई अच्छी मछली भला टिक सकती है , दागी मगरमच्छों की भेंट चढना ही उसकी नियति है ………आखिर इतना बडा साम्राज्य अनाडी नये नये पैदल मार्च करने वालों को तो नहीं सौंपा जा सकता इसलिये अलग अलग प्रान्तों के रावणों का एकजुट होना लाज़िमी है , सभी दागियों तो मंत्रिमंडल में स्थान देना लाज़िमी है आखिर मंत्रिमंडल के विस्तार में यही तो काम आयेंगे तभी तो जनता के बीच खौफ़ के बादल लहरायेंगे और फिर सब ठीक है की तर्ज पर रावण राज में सभी सुखी हो जायेंगे क्योंकि चुनने की , कुछ कहने या करने की हिम्मत आम जनता में कहाँ होती है , सारी राजनीति तो रावण के घर से शुरु होकर वहीं खत्म होती है , जनता तो मूकदर्शक होती है बस मूकदर्शक जिसका कोई कद नहीं , कोई परिमाण नहीं , कठपुतलियों की न दिशा होती है न दशा बस डोर खींचने वालों के हाथ में रहना ही उनकी नियति होती है क्योंकि जागकर क्या होना है आज के युग में तो राम का ही कत्ल होना है सच की चिता पर तो राम को ही जलना है और रावण ने राम के मरण पर अट्टहास ही करना है ……हा हा हा 

3 टिप्‍पणियां:

  1. VANDANA JI , CHUNRI KAA DAAG KUCHH
    AUR HEE GAHRAA RAHAA HAI . AALEKH
    KEE SAAFGOEE KE LIYE AAPKO BADHAAEE .

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  2. बहुत बढ़िया दी ..होली की शुभकामनायें

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