सब कुछ टूटने पर भी
जोड़े रखना है मुझे
आवाज़ का भरम
भाँय भाँय की आवाज़ का होना
काफी है एक रिदम के लिए
नहीं सहेज सकती अब
सन्नाटों के शगल
क्योंकि जानती हूँ
सन्नाटे भी टूटा करते हैं………
मगर
आवाजें घूमती हैं ब्रह्माण्ड में निर्द्वन्द ……….
आवाज़ कहूं , ध्वनि या शब्द
जिसका नहीं होता कभी विध्वंस
इसलिए
अब सिर्फ आवाज़ को माध्यम बनाया है
जिसके जितने भी टुकड़े करो
अणु का विद्यमान रहना जीवित रखेगा मुझे ……मेरे बाद भी
सुन्दर लिखा है वंदना जी..
जवाब देंहटाएंबधाई..
ये भी क्या कम है की आवाज़ का भरम कायम है,
कहने को साथ भी और कहने को बाद भी..
मेरी दुनिया.. मेरे जज़्बात..
स्वर अनंत है
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लेखन
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुन्दर ... आपकी यह उत्कृष्ट रचना कल रविवार दिनांक 27/10/2013 को ब्लॉग प्रसारण http://blogprasaran.blogspot.in/ पर लिंक की गयी है .. कृपया पधारें औरों को भी पढ़ें |
जवाब देंहटाएंआवाज का अवलंबन लेना उचित ही है। उत्तम रचना के लिए आभार वन्दना जी।
जवाब देंहटाएंये भरम नहीं .... जीता जागता एहसास है जो जोड़े रखता है ... लाजवाब एहसास ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर .
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : कोई बात कहो तुम
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंलाजवाब प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन और लाजवाब ।
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