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शुक्रवार, 2 अगस्त 2013

फिर शोर में दरारें होंगी

फिर शोर में दरारें होंगी 
फिर मौसम में बहारें होंगी 
तू आवाज़ में सच का दम रख तो सही
फिर इंकलाब की पुकारें होंगी


वरना तो देश को खा जायेंगे 
ये गद्दार यूँ ही चबा जायेंगे 
देश के छलिये नेता नया कानून पारित कर 
एक बार फिर से छल जायेंगे

विधेयक जल्द पारित हो जायेंगे 
अपनी सहूलियतों के लिए कानून बन जायेंगे 
मगर दामिनियों के लिए जल्दी विधेयक 
नहीं बना करते 
ना ही उन्हें बिना आन्दोलनों के 
इन्साफ मिला करते 
ये तो खुद की खातिर बिगुल बजायेंगे 
कानून की भी सरे आम धज्जियाँ उड़ायेंगे 

आम जनता की सहूलियतों का क्यूं सोचें 
अपनी कुर्सी  की जडें क्यों न सींचें 
इसी कारण तो सत्ता में आते हैं 
फिर देश की नींव को ही खाते हैं 
यूं सफेदपोश देशभक्त हुक्मरान कहलाते हैं 
जो गलत को गलत और सही को सही न कह पाते हैं 
सिर्फ कुर्सियों के प्रति उनकी निष्ठां होती है 
बस वही तक उनकी अंधभक्ति होती है 

फिर संसद में दागियों मुजरिमों का बोलबाला होगा 
फिर तेरे सत्य का बार बार मूँह काला होगा 
तू एक बार हौसला रख आगे बढ तो सही 
गलत सही को पहचान तो सही 
अपने अधिकार का सदुपयोग कर तो सही 
फिर मौसम का रख जरूर बदला होगा


फिर तेरे मुख से यूं ही ना निकला होगा 
इन्कलाब जिंदाबाद इन्कलाब जिंदाबाद 
मेरा देश रहे हल पल आबाद , हर पल आबाद 

16 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सटीक और सशक्त रचना.

    रामराम.

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  2. बहुत सटीक और सशक्त प्रस्तुति...

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  3. बिलकुल सही, कुर्सी का खेल है सारा

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  4. आपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज के ब्लॉग बुलेटिन - इंतज़ार उसका मुझे पर स्थान दिया है | बहुत बहुत बधाई |

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  5. बेहद प्रभावशाली लेखन और सामयिक भी बधाई

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  6. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (04-08-2013) के चर्चा मंच 1327 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

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  7. सच्चा इन्कलाब अब आ ही जाना चाहिए ... देश इससे ज्यादा क्या सहेगा ...

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