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बुधवार, 17 जुलाई 2013

खोये हैं हम ना जाने किस जहान में

खोये हैं हम ना जाने किस जहान में 
आये कोई आवाज़ दे बुला ले उस जहान से



यूँ तो वापसी की डगर कोई नहीं 
बस उम्मीद के तारे पे रुकी है ज़िन्दगी
कतरनों को सीने की जद्दोजहद में 
आवाज़ के घुँघरुओं में बसी है ज़िन्दगी

चिलमनों के उस तरफ जो शोर था 
दिल में मेरे भी तो कुछ और था 
करवट बदलने से पहले कोई दे आवाज़ पुकार ले 
बस इसी आरज़ू की शाख से लिपटी खड़ी है ज़िन्दगी 

यूं तो जीने के बहाने और भी थे 
मेरे गम के सहारे और भी थे 
बस खुद को मुबारक देने की चाहत में 
उस पार की आवाज़ को तड़प रही है ज़िन्दगी 


खोये हैं हम ना जाने किस जहान में 
आये कोई आवाज़ दे बुला ले उस जहान से

10 टिप्‍पणियां:

  1. आये कोई आवाज़ दे बुला ले उस जहान से
    ...

    मार्मिक आवाहन !!

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  2. उम्मीद की डोर रहे तो सवेरा जरूर आता है ... कोई आवाज़ जरूर आएगी लौटाने के लिए ...

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  3. उम्मीद की बेहतरीन अभिवयक्ति.....

    जवाब देंहटाएं
  4. बस इसी आरज़ू की शाख से लिपटी खड़ी है ज़िन्दगी

    बहुत खूब ... सुंदर प्रस्तुति

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  5. बहुत सुंदर , मंगलकामनाये

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