कभी कभी जरूरत होती है किसी अपने द्वारा सहलाये जाने की ............मगर हम, उसी वक्त ,ना जाने क्यूँ ,सबसे ज्यादा तन्हा होते है..........ज़िन्दगी के पडावों में एक पडाव ये भी हुआ करता है शायद
या तन्हाइयों की चोटों में आवाज़ नहीं हुआ करती शायद ............कुछ मौसम कितना ही भीगें , हरे हुआ ही नहीं करते शायद ………जरूरी तो नहीं ना सावन बारहों माह बरसे और रीती गागर भरे ही …………जानाँ !!!
इश्क के मट्ठे खट्टे ही हुआ करते हैं और मैने सिर्फ़ उसी को पीया है जन्मों से ………जानते हो ना जबसे बिछडे हम …………मैने स्वाद बदला ही नहीं ………फिर तुमने कैसे स्वाद बदल लिया ..........ये एक सवाल है तुमसे ..........क्या दे सकोगे कभी " मुझसा जवाब " ............ओ मेरे !
बेहतरीन अभ्व्यक्ति
जवाब देंहटाएंइश्क की खट्टी खटास भी पीने में मज़ा होता है ...ये जीवन ऐसा ही होता है ...
जवाब देंहटाएंकुछ सवालों के जवाब देना इतना आसान भी नही होता, बहुत लाजवाब रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
ऐसे ऐसे सवाल करोगी तो जवाब कैसे मिलेगा ?
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना
बहुत सुन्दर गद्यगीत!
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना... शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंवाह बेजोड़ रचना , आभार
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