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शुक्रवार, 8 मार्च 2013

आज क्या खास है?

आज क्या खास है?
मेरी तो वो ही सुबह हुयी
वो ही दोपहर वो ही सांझ
हर रोज की तरह ……
कहाँ तस्वीर बदलती है
घर में , परिवार में, समाज में?
सिर्फ़ काले अक्षरों में ही
ज्यादा कूद फ़ाँद होती है
वरना तो औरत रोज की तरह
वो ही नित्य कर्म करती है
एक मजदूर स्त्री हो या कामवाली बाई
हो हाउसवाइफ़ या वर्किंग वूमैन
वक्त और हालात से
रोज की तरह ही लडती है
फिर कैसे कह दें कि
एक दिन सोलह श्रृंगार करने से ही
पिया के मन में बसती है
या कैसे कह दें तस्वीर बदलती है
क्योंकि जानती है
चोंचलों के लिये कौन अपना वक्त ज़ाया करे
और भी गुनाह बाकी हैं अभी करने के लिये ……………
 
 
दूसरा ख्याल 
 
महिला दिवस हो तो महिला गुणगान होना चाहिये

कर्तव्य पालन का कुछ तो बोध होना चाहिये

फिर चाहे कल को दुत्कारी जाये फ़टकारी जाये

आज तो उसको पूजित होना चाहिये

ये है आज का नज़रिया हमारे समाज का

मगर किसी ने ना चाहा जानना

आखिर चाहती है वो क्या ?

उसकी चाहना बस इतनी सी

उसकी उडान बस इतनी सी

उसका आसमान बस इतना सा

नहीं बनाओ देवी या पूज्या चाहती हूँ बस इतना
मानो मुझे भी इंसान और जीने दो ससम्मान

22 टिप्‍पणियां:

  1. आज भी कल का जैसा हाल है,
    मगर महिला दिवस पर,
    दिखावा करने का सवाल है,
    यही तो मन में मलाल है।
    --
    शब्द चित्र अच्छे लिखे हैं आपने!

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  2. बेहद प्रभाव साली रचना और आपकी रचना देख कर मन आनंदित हो उठा बहुत खूब

    आप मेरे भी ब्लॉग का अनुसरण करे

    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में

    तुम मुझ पर ऐतबार करो ।

    .

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  3. वंदनाजी दोनों ही रचनाएँ बहुत प्यारी हैं

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  4. चलो इस बहाने कुछ तो ज़िक्र हुआ।

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  5. पहले की तुलना में कुछ हद तक स्थिति सुधरी है
    सोचने को प्रेरित करती
    सार्थक रचना ...

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  6. ढोल पीटने का शौक है,सो पीट लेते हैं मौका निकाल कर. बैठे-ठाले का शगल है.बाज़ारों में रौनक भी हो जाती हो शायद !

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  7. बिल्कुल सही बात की आपने .......

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  8. हर जगह क्रोध ही क्यों धारणा बदलें . पुरुष घनी बरगद का छांव भी।
    **तुम राम बनो मैं लखन बन जाऊंगा
    तुम बन चलो मैं पीछे चला आऊंगा **

    हम अपनी भूमिका निर्धारित करें बाकि सब ठीक हो जायेगा .

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  9. आज और कुछ खास चाहे न हो ,उत्तर सोचने को कुछ प्रश्न सामने आ जाएँ तो भी ठीक !

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  10. अपनी अस्मिता और आत्मसम्मान के प्रति सचेत होकर ही नारी अपनी सार्थकता खोज सकती है .

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  11. विरोधाभासी पर सार्थक रचनाएँ वंदना जी बधाई

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  12. बहुत ही सार्थक प्रस्तुति.

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  13. नहीं बनाओ देवी या पूज्या चाहती हूँ बस इतना
    मानो मुझे भी इंसान और जीने दो ससम्मान

    ...बिल्कुल सही...बहुत सुन्दर चित्रण...

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  14. महिला दिवस पर सुंदर भावपूर्ण कविता.

    महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ.

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  15. "नहीं बनाओ देवी या पूज्या चाहती हूँ बस इतना
    मानो मुझे भी इंसान और जीने दो ससम्मान" !!
    क्या खूब कहा आपने, मानो हर नारी के मन की बात को आपने शब्द दे दिए हो !
    सार्थक रचना !!

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