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सोमवार, 11 मार्च 2013

ओस में नहायी औरतें

ओस में भीगी औरत
औरत नही होती
होती है तो उस वक्त
सिर्फ़ एक नवांगना
तरुणाई मे अलसाई
कोई धवल धवल
चाँदनी की किरण
अपने प्रकाश से प्रकाशित करती
सृष्टि के स्पंदनों का
एक नव उपादानों का
सृजन करती हुयी
मगर क्षण भंगुरता है
उसका ये जीवन
ओस कितनी देर ठहरती है पत्तों पर
बस एक ताप ………और वाष्पित होना
उसकी नियति …………
मगर ओस में नहायी औरतें नहीं होतीं वाष्पित
गंध महकती है उनके पसीने से भी
वाष्पीकरण फ़ैला जाता है हवा में हर कण
ओस मे नहायी औरतों का …………
और बन जाता है इंद्रधनुष
बिना बारिश और बिना धूप के …………
ओस मे नहायी औरतों के इन्द्रधनुष उम्र भर महका करते हैं …………यादों में गुलाब बनकर

23 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर और कोमल भाव से उकेरी गयी रचना ...दिल हो छू गयी

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  2. जो गुलाब सबको महक से भर देता है..

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  3. बाहर ही सुन्दर भाव लिए बेहतरीन रचना,आभार.

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  4. स्त्री का कोमल स्वरुप बेहतरीन प्रस्तुत किया वंदना जी बधा

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  5. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति मंगलवारीय चर्चा मंच पर ।।

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  6. बहुत गहरा सोच लिए कविता |
    आशा

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  7. बहुत उम्दा प्रस्तुति आभार

    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    अर्ज सुनिये

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  11. ओस में नहाई औरतें ...
    कोमल परन्तु आत्मविश्वास लिए इन औरतों को नमन ...

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  12. बहुत सुंदर और कोमल भावाभिव्यक्ति ........
    बधाई,वन्दना जी.....
    साभार............

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  13. बहुत सुंदर और कोमल भावाभिव्यक्ति ........
    बधाई,वन्दना जी.....
    साभार............

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  14. गहरी सोच, अनुपम भाव, सुंदर कविता. बढ़िया प्रस्तुति.

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