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बुधवार, 2 जनवरी 2013

निर्णायक स्थिति के लिए

सारे नियमों को ताक  पर रखकर
आज निकल पड़ी हूँ मैं
समाज की हर खोखली रीत को तोड़ने
जो न किया  होगा कभी किसी ने
अब मैं करूँगी वो
ताकि सोच बदले , समाज बदले और ये देश बदले

क्योंकि

कुछ करने के लिए पहले आहूति तो खुद की ही दी जाती है
और मैं तैयार हूँ इस हवि में आहूत होने के लिए
और अपने आने वाले कल के नव निर्माण के लिए
तोडना होगा मुझे ही अपनी बेड़ियों को
अपनी कुंठित सोच को बदलना होगा
और करना होगा आह्वान ससम्मान जीने के लिए
और उसके लिए एक बारगी तो क्रांति करनी ही होगी
और इस बार मैं हूँ तैयार
अपनी एक नयी सोच के साथ
सोच लिया है मैंने
करवाऊंगी जरूर लिंग परीक्षण
और  यदि लड़की हुयी तो दूँगी जरूर जन्म
मगर
लड़का हुआ तो कराऊँगी गर्भपात
जानते हो क्यों ?
क्योंकि
नहीं चाहती ऐसी पीढ़ी को जन्म देना
जिसकी निगाह में स्त्री की तस्वीर सिर्फ भोग्या की ही हो
जब तक ना मैं ऐसा कदम उठाऊंगी
तब तक ना तस्वीर बदलेगी
जब खुद के अस्तित्व पर आन पड़ेगी
तभी पुरुष की सोच बदलेगी
जानती हूँ ...........इसमें भी
बहुत प्रश्न उठ जायेंगे
कहीं तो समाज के संतुलन के
तो कहीं वक्त से लड़ने के
तो कहीं अतिवादी होने के
मगर आज जान गयी हूँ मैं
कहीं न कहीं मैं भी गलत हूँ
गलती मेरी ही है जो न रोपित कर पायी ऐसे संस्कार
जो स्त्री को दे सकते सम्मान
इसलिए इस बार
बदलने को सोच की तस्वीर
देनी होगी मुझे अपनी ही आहूति
शायद तब तस्वीर बदलने लगे
और औरत अबला न कहलाये
अपनी शक्ति से सबको परिचित करवाए
और कह सके बाइज्जत
हाँ ............गर सृजन का है मुझे अधिकार
तो होगा मेरा ही मनचाहा संसार
जिसमे ना कोई लिंग भेद हो
अब तो तभी तस्वीर बदलेगी
गर हर स्त्री ये प्रण लेगी
जो पीढ़ियों से रोपित है
वो पौध अब बदलेगी
क्योंकि
जनने के अधिकार से आप्लावित मैं
जान गयी हूँ अपनी शक्ति को
जो चाहे तो ब्रह्मा की संरचना बदल सकती है
नारी की छवि को विश्व पटल पर बदल सकती है
बस इसके लिए अब यही आह्वान करती हूँ
हर स्त्री से यही कहती हूँ ...............
जाग , उठ , बन ऐसी माँ
जिसके आगे नतमस्तक हो सारा जहान

पुरुष प्रधान समाज में

पुरुष को ललकारने का साहस कर
दिखा अपनी अदम्य इच्छाशक्ति को
फिर देख कैसे न तस्वीर बदलेगी
फिर चाहे सतयुग हो या कलयुग
कोई भी स्त्री न बलात्कृत होगी ..............

बस एक बार गूंजा दे पांचजन्य की गूँज

जो कौरव (कापुरुष) ह्रदय दहल जाएँ
और तुझे मुक्ति का मार्ग मिल जाए
वैसे भी महाभारत के युद्ध में
नींव तो द्रौपदी के केश और उसकी हँसी ही बने थे ना
तो इस बार गुंजा पांचजन्य और कर उद्घोष
नहीं देगी तब तक जन्म उस कापुरुष को
जब तक न मिलेगा तुझे तेरा स्वरुप

धर्म और अधर्म की सूक्ष्म रेखा के बीच से ही शांति की स्थापना होती है

और किसी भी धर्मयुद्ध में
कुछ हिस्सा आहुति के रूप में अपना भी देना पड़ता है ...........निर्णायक स्थिति के लिए

और इस बार मैं तैयार हूँ ………………

13 टिप्‍पणियां:

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  2. वक्त की आज और समाज की जरूरत है ये!
    --
    बढ़िया सामयिक प्रस्तुति!

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  3. समाज की हर खोखली रीत को तोड़ने
    जो न किया होगा कभी किसी ने
    अब मैं करूँगी वो
    ताकि सोच बदले , समाज बदले और ये देश बदले ...
    कुछ तो करना ही होगा... सार्थक रचना

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  4. बहुत ही आक्रोश लिए उस पुरुष जाती के विरुद्ध जो सामाजिक ढाँचे को बर्बाद करने पे तुला है ...
    प्रभावी रचना ...

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  5. नहीं ........ यह निर्णय नहीं, यह विवशता की बौखलाहट है ....

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  6. समाज की हर खोखली रीत को तोड़ने
    जो न किया होगा कभी किसी ने
    अब मैं करूँगी वो
    ताकि सोच बदले , समाज बदले और ये देश बदले ...
    बेहद सशक्‍त भाव ....

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  7. भावुक करती ,बढ़िया सामयिक प्रस्तुति!

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  8. विचार उत्तेजक अभिव्यक्ति...

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