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रविवार, 30 दिसंबर 2012

क्या संभव है सुदृढ़ इलाज ??????????


मेरी आत्मा
लाइलाज बीमारी से जकडी 
विवश खडी है इंसानियत के मुहाने पर
मुझे भी कुछ पल सुकून के जीने दो
लगा गुहार रही है इस नपुंसक सिस्टम से

मेरी सडी गली कोशिकाओं को काट फ़ेंको
ये बढता मवाद कहीं सारे शरी्र को ही 
ना नेस्तनाबूद कर दे 
उससे पहले 
उस कैंसरग्रस्त अंग को काट फ़ेंकना ही समझदारी होगी

क्या आत्मा मुक्त हो सकेगी बीमारी से 
इस प्रश्न के चक्रव्यूह मे घिरी 
निरीह आँखों से देख रही है 
लोकतंत्र की ओर
जनतंत्र की ओर
मानसतंत्र की ओर

क्या संभव है सुदृढ़ इलाज ??????????

19 टिप्‍पणियां:


  1. आपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 02/01/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!

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  2. आज कितने प्रश्न हैं ...
    कितने प्रश्न दामिनी भी छोड़ गई है .. क्या जवाब संभव है ...

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  3. अपना इलाज़ खुद करना है .... फिर क्या नामुमकिन

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  4. जब तक ये क़ानून न बने तब तक संभव नही,,,

    बहुत ही सुंदर प्रस्तुति,,,,

    recent post : नववर्ष की बधाई

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (31-112-2012) के चर्चा मंच-1110 (साल की अन्तिम चर्चा) पर भी होगी!
    सूचनार्थ!
    --
    कभी-कभी मैं सोचता हूँ कि चर्चा में स्थान पाने वाले ब्लॉगर्स को मैं सूचना क्यों भेजता हूँ कि उनकी प्रविष्टि की चर्चा चर्चा मंच पर है। लेकिन तभी अन्तर्मन से आवाज आती है कि मैं जो कुछ कर रहा हूँ वह सही कर रहा हूँ। क्योंकि इसका एक कारण तो यह है कि इससे लिंक सत्यापित हो जाते हैं और दूसरा कारण यह है कि पत्रिका या साइट पर यदि किसी का लिंक लिया जाता है उसको सूचित करना व्यवस्थापक का कर्तव्य होता है।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  6. ♥(¯`'•.¸(¯`•*♥♥*•¯)¸.•'´¯)♥
    ♥नव वर्ष मंगबलमय हो !♥
    ♥(_¸.•'´(_•*♥♥*•_)`'• .¸_)♥




    क्या आत्मा मुक्त हो सकेगी बीमारी से
    इस प्रश्न के चक्रव्यूह मे घिरी
    निरीह आँखों से देख रही है
    लोकतंत्र की ओर
    जनतंत्र की ओर
    मानसतंत्र की ओर
    क्या संभव है सुदृढ़ इलाज ??????????

    आऽऽहऽऽऽ !
    चीख-चीख कर पूछे गए इसी प्रश्न को
    पुनः अपनी ओर अनुत्तरित लौटते हुए देख कर
    बोझिल माहौल के बीच आज हर भारतीय की कराहती हुई आत्मा विवश-सी छटपटा रही है ...

    आदरणीया वंदना जी
    मेरे भीतर का रचनाकार इसी बेबसी के बीच आहवान करता है -

    "हमें ही हल निकालना है अपनी मुश्किलात का
    जवाब के लिए किसी सवाल को तलाश लो

    लहू रहे न सर्द अब उबाल को तलाश लो
    दबी जो राख में हृदय की ज्वाल को तलाश लो"


    नव वर्ष हम सब भारतीयों में नव ऊर्जा का संचार करे ...
    शुभकामनाओं सहित…
    राजेन्द्र स्वर्णकार
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  7. वंदना जी! आपकी कविता पढ़ी। संभवतया कविता दामिनी से संबंधित घटनाक्रम से अभिप्रेरित प्रतीत होती है, जैसा कि कुछ टिप्पणीकारों ने अपनी अभिव्यकित के माध्यम से कहा भी है। यह सत्य है कि कानून में बदलाव होने चाहिये, किंतु इस तरह की बढ़ती घटनाक्रमों की तह में कर्इ कारण जिम्मेदार हैं, हमें उन पर भी नजर डालनी होगी। मेरे दृषिटकोण में बढ़ती नग्नता और पशिचमी सभ्यता का अंधानुकरण भी उतना ही जिम्मेदार है, मैं सरकार के उदासीन दृषिटकोण एवं प्रशासन के नपुंसक रवैये को भी कतर्इ उपेक्षित नहीं करना चाहता, मेरे दृषिटकोण में सरकार का आबकारी के माध्यम से राजस्व वसूल कर उससे पैसे कमाना और भारत की युवापीढ़ी को नशे में धकेलने को भी अपराध की ओर अभि्रपेरित करने का दोषी मानता हूं।

    1. यही लोग जो आज मंचों पर अनेक तरह के भाषण देकर अथवा न्यूज चैनलों के माध्यम से स्वयं को स्त्री सम्मान के पुरोधा होने महिमामंडित करते हैं, तब उन्हे यह भान क्यों नहीं रहता कि इसी देश और इसी समाज में फिल्मों में एक स्त्री को नग्न, कामुक दृश्यों के साथ समाज के सामने परोसकर, पैसे कमाते हैं, यही नेता विवश सित्रयों के साथ उनकी भूख और बेचारगी को मंचों पर नचा उनके साथ भौंडी हरकत करते हैं, यही लोग रेव पार्टी करते हैं, यही लोग नये साल में सित्रयों के साथ जश्न मनाते हैं, यही लोग नये साल में केलेंडर छपवा कर दर्जनों सित्रयों की नग्नता को परोस स्वयं के ऐश्वर्य का भान कराते हैं, तब क्या सित्रयों के सम्मान का हनन नहीं होता? क्या इसे नहीं रोका जाना चाहिये।
    2. आप कह सकते हैं, कि पशिचमी देशों में इस तरह की नग्नता सरेआम है, फिर वहां क्यों नहीं। मैं मानता हूं, कि यह सच है , किंतु भारत अभी संक्रमण अवस्था में है, एक ओर बहुतेरे युवा पीढ़ी की स्वच्छंद सोंच, जो उसे किसी भी तरह की परिधि बंधन प्रतीत होती है, तो दूसरी ओर कुछा युवाओं की परंपरागत सोंच, भारत की सभ्यता के संरक्षक होने का दावा करने वाले कुछ संगठनों की सोंच। यह अवस्था भारत के वर्तमान कारणों के लिये भी जिम्मेदार है।
    3. एक न्यूज चैनल पर एक विद्वान इस तरह का दृष्टांत प्रस्तुत कर रहे थे कि खेतों में काम करने वाली एक औरत अपनी साड़ी और आंचल जंघे तक उठाकर काम करती है तो वहां कोर्इ क्यों नहीं देखता, इसलिये लडकियेां के नग्न डेसेस नहीं अपितु लोगों की सोंच बदलनी चाहिये। मैं इससे सहमत हूं किंतु लोगों की सोंच बदलना इस देश में एक लांग टर्म प्लान हो सकता है, किंतु नग्नता परोसने वाले डेसेस भी इसके लिये कहीं ना कहीं जिम्मेदार हैं। जहां तक खेतों में काम करने वाली एक औरत का प्रश्न है, तो मैं कहना चाहूंगा कि उस औरत की नग्नता में भूख और बेचारगी होती है, और पुरूष की नग्न कामुक सोंचभूख और बेचारगी को प्रगट करने वाली नग्नता से ज्यादा सेक्स अपील करने वाली नग्नता पर अत्यधिक ध्यानाकर्षित होती है।
    4. उपरोक्त विचार मेरे स्वयं के अपने हैं, किंतु मैं इस बात का पक्षधर हूं कि 18 साल से कम उम्र के साथ बलात्कार करने वाले पुरूष को रासायनिक कि्रयाओं द्वारा नपुंसक बनाया जाना खहिये और 18 वर्ष से अधिक उम्र के साथ बलात्कार करने वाले पुरूषों को फांसी की सजा दी जानी चाहिये।

    आपका मित्र
    राज़

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  8. ek issi sawal ka zabab aaj har koi dhundhta hai, eksarthak Rachna ...
    http://ehsaasmere.blogspot.in/2012/12/blog-

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  9. इलाज तो करना ही होगा...कब तक सहेंगे यह दर्द..

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  10. नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ... आशा है नया वर्ष न्याय वर्ष नव युग के रूप में जाना जायेगा।

    ब्लॉग: गुलाबी कोंपलें - जाते रहना...

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  11. दामिनी को श्रद्धांजलि यही होगी की इस सिस्टम को उखाड़ फेंके .
    मेरी नई पोस्ट : "काश !हम सभ्य न होते "
    " निर्भय (दामिनी) को श्रद्धांजलि "

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  12. सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
    नब बर्ष (2013) की हार्दिक शुभकामना.




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