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सोमवार, 10 सितंबर 2012

शतरंज के खेल मे शह मात देना अब मैने भी सीख लिया है …400 वीं पोस्ट

तुम्हारा प्रश्न
आज की आधुनिक
क्रांतिकारी स्त्री से
शिकार होने को  तैयार हो ना
क्योंकि
नये नये तरीके ईज़ाद करने की
कवायद शुरु कर दी है मैने
तुम्हें अपने चंगुल मे दबोचे रखने की
क्या शिकार होने को तैयार हो तुम ……स्त्री?

तो इस बार तुम्हे जवाब जरूर मिलेगा ……



हां , तैयार हूँ मै भी

हर प्रतिकार का जवाब देने को
तुम्हारी आंखों मे उभरे
कलुषित विचारों के जवाब देने को
क्योंकि सोच लिया है मैने भी
दूंगी अब तुम्हे
तुम्हारी ही भाषा मे जवाब
खोलूँगी वो सारे बंध
जिसमे बाँधी थी गांठें
चोली को कसने के लिये
क्योंकि जानती हूँ
तुम्हारा ठहराव कहां होगा
तुम्हारा ज़ायका कैसे बदलेगा
भित्तिचित्रों की गरिमा को सहेजना
सिर्फ़ मुझे ही सुशोभित करता है
मगर तुम्हारे लिये हर वो
अशोभनीय होता है जो गर
तुमने ना कहा हो
इसलिये सोच लिया है
इस बार दूँगी तुम्हे जवाब
तुम्हारी ही भाषा मे
मर्यादा की हर सीमा लांघकर
देखूंगी मै भी उसी बेशर्मी से
और कर दूंगी उजागर
तुम्हारे आँखो के परदों पर उभरी
उभारों की दास्ताँ को
क्योंकि येन केन प्रकारेण
तुम्हारा आखिरी मनोरथ तो यही है ना
चाहे कितना ही खुद को सिद्ध करने की कोशिश करो
मगर तुम पुरुष हो ना
नही बच सकते अपनी प्रवृत्ति से
उस दृष्टिदोष से जो सिर्फ़
अंगो को भेदना ही जानती है
इसलिये इस बार दूँगी मै भी
तुम्हे खुलकर जवाब
मगर सोच लेना
कहीं कहर तुम पर ही ना टूट पडे
क्योंकि बाँधों मे बँधे दरिया जब बाँध तोडते हैं
तो सैलाब मे ना गाँव बचते हैं ना शहर
क्या तैयार हो तुम नेस्तनाबूद होने के लिये
कहीं तुम्हारा पौरुषिक अहम आहत तो नही हो जायेगा
सोच लेना इस बार फिर प्रश्न करना
क्योंकि सीख लिया है मैने भी अब
नश्तरों पर नश्तर लगाना …………तुमसे ही ओ पुरुष !!!!!!!

दांवपेंच की जद्दोजहद मे उलझे तुम

सम्भल जाना इस बार
क्योंकि जरूरी नही होता
हर बार शिकार शिकारी ही करे
इस बार शिकारी के शिकार होने की प्रबल सम्भावना है
क्योंकि जानती हूं
आधुनिकता के परिप्रेक्ष्य मे आहत होता तुम्हारा अहम
कितना दुरूह कर रहा है तुम्हारा जीवन
रचोगे तुम नये षडयत्रों के प्रतिमान
खोजोगे नये ब्रह्मांड
स्थापित करने को अपना वर्चस्व
खंडित करने को प्रतिमा का सौंदर्य
मगर इस बार मै
नही छुडाऊँगी खुद को तुम्हारे चंगुल से
क्योंकि जरूरी नही
जाल तुम ही डालो और कबूतरी फ़ंस ही जाये
क्योंकि
इस बार निशाने पर तुम हो
तुम्हारे सारे जंग लगे हथियार हैं
इसलिये रख छोडा है मैने अपना ब्रह्मास्त्र
और इंतज़ार है तुम्हारी धधकती ज्वाला का
मगर सम्भलकर
क्योंकि धधकती ज्वालायें आकाश को भस्मीभूत नहीं कर पातीं
और इस बार
तुम्हारा सारा आकाश हूँ मै …………हाँ मैं , एक औरत 


गर हो सके तो करना कोशिश इस बार मेरा दाह संस्कार करने की
क्योंकि मेरी बोयी फ़सलों को काटते
सदियाँ गुज़र जायेंगी
मगर तुम्हें ना धरती नज़र आयेगी
ये एक क्रांतिकारी आधुनिक औरत का तुमसे वादा है
शतरंज के खेल मे शह मात देना अब मैने भी सीख लिया है
और खेल का मज़ा तभी आता है

जब दोनो तरफ़ खिलाडी बराबर के हों 
दांव पेंच की तिकडमे बराबर से हों 
वैसे इस बार वज़ीर और राज़ा सब मै ही हूँ
कहो अब तैयार हो आखिरी बाज़ी को ……ओ पुरुष !!!!

39 टिप्‍पणियां:

  1. नई क्रांति आने को है ..... नारी शक्ति आजमाने को है ....हिम्मत ताकत से भरी ऊर्जा देती रचना ....
    ४०० वीं रचना की बधाई, वंदना दी ...

    जवाब देंहटाएं
  2. नई क्रांति आने को है ..... नारी शक्ति आजमाने को है ....हिम्मत ताकत से भरी ऊर्जा देती रचना ....
    ४०० वीं रचना की बधाई, वंदना दी ...

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत बढ़िया वंदना जी....
    ४०० वीं पोस्ट की बधाई....
    ललकारती हुई प्रस्तुति....
    सस्नेह
    अनु

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  4. ४०० वी पोस्ट के लिए सर्व प्रथम बहुत बहुत बधाई.
    .सुन्दर अभिव्यक्ति..

    जवाब देंहटाएं
  5. चार सौवीं पोस्ट की बहुत -बहुत बधाई |

    जवाब देंहटाएं
  6. आज की महती जरूरत
    पर बनी
    ये कविता
    अकेले पढ़ने लायक नहीं है
    इसीलिये इसे मैं
    ले जा रहीं हूँ
    नई-पुरानी हलचल में
    सब मिल कर पढ़ेंगे
    आप भी आइये न
    इसी बुधवार को
    नई-पुरानी हलचल में
    सादर
    यशोदा

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  7. वंदना जी ४०० वीं पोस्ट के लिए बधाई . जैसे एक नारी अलग भूमिकाओं में अपनी गरिमा के साथ जीती है . वैसे ही पुरुष भी आपके साथ अलग अलग जगह आपके साथ मिलेगा और यही सत्य है . किसी एक के कारन सब पर दोष मढ़ना उचित है कभी ठन्डे दिमाग से सोच देखिये . सभी गिले शिकवे भूलकर अपनी विशालता का परिचय दें .कल क्या हुआ , कल मैं खुद किस हद तक निचे गिरकर काम कर डालूं क्या कहा जा सकता है ,लेकिन बुरा ही क्यों सोचें आप से अपेक्षा आप समझदार हैं ४०१ वीं पोस्ट आपकी धरा सी सहनशीलता का परिचायक होगा इस आशा में ......

    जवाब देंहटाएं
  8. वंदना जी ४०० वीं पोस्ट की बहुत-बहुत बधाई....
    उर्जा से भरी सुन्दर प्रस्तुति....

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  9. Bahut bahut badhayi ho!
    Mai to jeewan me aksar maat hee khatee rahee!

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  10. ४०० वी पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाई.....सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  11. तैयार हूँ मै भी हर प्रतिकार का जवाब देने को
    तुम्हारी आंखों मे उभरे कलुषित विचारों के जवाब देने को
    क्योंकि सोच लिया है मैने भी दूंगी अब तुम्हे तुम्हारी ही भाषा मे जवाब
    400 वीं पोस्ट के लिए ये यलगार ही सही होता !!
    400 वीं पोस्ट के लिए बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं :))

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  12. कुछ अलग सी पोस्ट सच्चाई से कही गयी बात अच्छी लगी ४०० वीं रचना की बधाई....

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  13. आत्मविश्वास से भरी, बहुत बधाई हो आपको..

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  14. वाह बहुत सुन्दर रचना और ४०० वीं रचना पूरी करने पर आपको बहुत बहुत बधाई |

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  15. तो परोस दिया तुमने अपना बदन ,
    हो गईं

    तुम आज़ाद ,
    हुई प्रति शोध की ज्वाला शांत ,
    या हो अभी भी आक्रान्त .

    तुम अपने ही जाल में आ गईं ,खुद को ही भरमा गईं .
    भूल गईं पुरुसुह तुम्हारा ही घुंघराले बालों वाला कुत्ता है
    (स्सारी पूडल है )

    ram ram bhai
    सोमवार, 10 सितम्बर 2012
    आलमी हो गई है रहीमा शेख की तपेदिक व्यथा -कथा (आखिरी से पहली किस्त )

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  16. prabalta se apni baat rakhi ...
    400 post ki hardik badhai ...
    anek shubhkamnayen Vandana ji ..

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  17. कविता के शीर्षक सा लग रहा है- 400वीं पोस्‍ट.

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  18. चुनौती स्वीकार करते हुए पूरक बन जाना !!
    400वीं पोस्ट की बहुत बधाई !

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  19. ४०० वि पोस्ट के लिए ढेरों बधाई ........आवाहन करती पोस्ट ...!!!!

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  20. शतरंज के खेल में शह मात देना मैने सीख लिया है
    और खेल में मजा तभी आता है
    जो दोनों ओर खिलाड़ी बराबर के हों...

    क्या बात, बहुत बढिया

    400 पोस्ट, बहुत बहुत शुभकामनाएं.

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  21. बहुत सशक्त और सटीक ललकार...४००वीं पोस्ट की हार्दिक बधाई!

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  22. 400 पोस्ट कि बधाई....खिलाडी हो गयीं आप भी :-)

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  23. ४०० वीं पोस्ट पर हार्दिक बधाई. बस इसी तरह कलम चलती रहे और सुंदर भावों से सजी कविता हमें मिलती रहे. एक प्रेरणा और सार्थक पहल की ओर इशारा करने वाली रचना के लिए आभार !
    --

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  24. सर्वप्रथम 400वीं पोस्‍ट के लिए बहुत-बहुत बधाई के साथ ही सशक्‍त अभिव्‍यक्ति के लिए आभार

    जवाब देंहटाएं
  25. FOUR HUNDRED POSTS AND SO MUCH
    POWER AND STRENTH ! REAALLY FANTASTIC
    AND MARVELLOUS !!

    जवाब देंहटाएं
  26. FOUR HUNDRED POSTS AND SO MUCH
    POWER AND STRENTH ! REAALLY FANTASTIC
    AND MARVELLOUS !!

    जवाब देंहटाएं
  27. 400 वीं पोस्ट की बधाई .... शाह और मात का खेल सीखना ही पड़ता है ... सुंदर अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  28. वन्दना जी,आपको ४०० वीं पोस्ट के लिए
    हार्दिक बधाई. जिंदगी...एक खामोश सफर
    अपनी मंजिल की तरफ निर्बाध गति से
    बढ़ता रहे यही दुआ और शुभकामनाएँ हैं मेरी.

    आपकी प्रस्तुति अच्छी है पर अब आप
    स्त्री पुरुष के आयामों से ऊपर उठ आत्म
    स्तर यानि सत् चित आनन्द स्वरुप कृष्ण रूप
    की और उन्मुख हो चुकी हैं.जहाँ स्त्री पुरुष
    का कोई भेद नही है.

    जवाब देंहटाएं
  29. मजा आ गया पढ़कर...अब इसी तेवर की जरूरत है स्‍त्री को....शानदार है कवि‍ता..

    जवाब देंहटाएं
  30. खुबसूरत और समसामयिक सतुलित पोस्ट के लिए बधाई स्वीकारें .

    जवाब देंहटाएं
  31. 400 वी पोस्ट की बधाई। सशक्त रचना।

    जवाब देंहटाएं

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