पृष्ठ

बुधवार, 4 जुलाई 2012

नहीं हूँ मैं इस दुनिया की शायद

नहीं हूँ मैं
इस दुनिया की शायद 
कोई तो वजह जरूर है 
जो ये ख्याल उड़ कर 
मन की खिड़की से 
अन्दर आया है 
गर होती इसी दुनिया की
तो सोचती दुनिया के जैसे
बन जाती गर प्रैक्टिकल   
भावनाओं के तूफानों में ना बहती
ना ही किसी हवा के झोंके में उलझती
दिल को एक खिलौना समझती
रोज इसके सौ टुकड़े करती
और फिर भी मुस्कुराती
हँसती खिलखिलाती 
नहीं होता मुझ पर असर
किसी की पीड़ा का
किसी के दर्द का
ना ही आहत होती 
किसी की बातों से
बल्कि आहत करना जानती
तो शायद मैं दुनिया जैसी बन जाती 
आज का युग सुना है 
तेजी से बदल रहा है
जहाँ सिर्फ उसी का 
झंडा बुलंद होता है 
जो विरोधी स्वर रखता है
कोई एक गाल पर मारे 
तो दूजा आगे करने की बजाय
जो उल्टा धर देता है
आज उसी का तो 
बोलबाला होता है 
और मुझमे एक भी
ऐसी प्रवृति का ना संचार हुआ
आत्मकेंद्रित भावनात्मक प्रवृत्तियां 
कभी कभी
कितना रुसवा करती हैं 
अब उन जैसी बन नहीं पाती
और साथ भी चल नहीं पाती
ये कैसी चाल वक्त ने चली है 
जो मुझे रास ना आई है
तभी तो मेरे किनारे तक 
कोई लहर आती ही नहीं
अलग थलग सा हो गया है 
वजूद मेरा 
चारों तरफ फैली भीड़ के 
अथाह सागर में 
खुद को खोज रही हूँ
और सोच रही हूँ
शायद नहीं थी इस दुनिया की मैं 
बेगाने देस में बेगाने पंछियों का डेरा 
सांझ के फेरे सा ही तो होता 
कब कोई पंछी वहाँ घोंसला बना पाता है 
उड़ कर अपने देस जाना ही होता है 
परायों के देस मे कब पंछियों को नीड मिले हैं ………

25 टिप्‍पणियां:

  1. परायों के देश में कब पंछियों को नीड़ मिले हैं ... बेहद सशक्‍त भाव लिए उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति ... आभार

    जवाब देंहटाएं
  2. हमारे मन में हर पल कुछ नया उपजता रहता है...अच्छे बुरे ख्यालों का डेरा है यहाँ.....

    बहुत सुन्दर वंदना जी.

    अनु

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत अच्छी कविता वंदना , specially अंत तो बहुत अच्छा है .. और इस बार शब्द भी अच्छे चुने है. भाव और खिल गये है . बधाई ..

    जवाब देंहटाएं
  4. ओह! वन्दना जी, फिर तो आप जरूर ही कोई अन्य दुनिया से आई एलियन हैं.इस दुनिया से जरा अलग हटकर.

    हमें आप जैसी आत्मकेंद्रित,दार्शनिक विचारों
    वाली,बच्चों सी निश्छल एलियन पर गर्व है.

    जवाब देंहटाएं
  5. शायद कबीर जी आपकी ही दुनिया के थे
    उनका भी कहना था

    'रहना नही देश बिराना है
    यह संसार झांड और झाँखर
    उलझ पुलझ मर जाना है.

    जवाब देंहटाएं
  6. आप इसी दुनिया की हैं और यहीं रहें नहीं तो हमे इतनी सुन्दर पोस्ट कहाँ मिलेंगे :-)

    जवाब देंहटाएं
  7. its a great poetry.....really...VANDANA ji you once again touch a deep hearts feeling.....mukesh

    जवाब देंहटाएं
  8. great poetry vandana ji really ...its touch every ones' heart

    जवाब देंहटाएं
  9. परायों के देस मे कब पंछियों को नीड मिले हैं ……

    ...बहुत सच कहा है...अंतस को छूती उत्कृष्ट अभिव्यक्ति...

    जवाब देंहटाएं
  10. जी हाँ ये देस पराया है
    एक रोज उड़ कर
    अपने देस जाना है
    गहन भाव, मर्मस्पर्शी रचना... आभार

    जवाब देंहटाएं
  11. मन को छूती बेहद सशक्‍त भाव लिए सुन्दर प्रस्‍तुति ... आभार वंदना जी..

    जवाब देंहटाएं
  12. यह संसार तो पराया है .... लेकिन जब तक जीवन है इसी में रहना है और इसी का हो कर रहना है ...

    बहुत अच्छी प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  13. दुनिया का होकर भी जो गलत व्यवहारिकता से परे रहे - वह दुनिया से अलग होता है और शब्दों में बहता है ... तभी तो भावनाएं खिड़कियों के रास्ते आती हैं

    जवाब देंहटाएं
  14. ये अक्सर हो जाता है .यूँ उदास होकर कही अपना रुख बदलना आपकी फितरत कब से बन गयी.
    हौसला तोड़कर जाना भी बुरी बात है .....

    जवाब देंहटाएं
  15. अंत में जीत सत्य और अहिंसा की ही होती है।

    जवाब देंहटाएं
  16. देश विराना लागे रे,
    मनवा रह रह भागे रे।

    जवाब देंहटाएं
  17. Kharab tabiyat ke karan na padh pati hun na likh.....lekin tumhen aur tumhare lekhan ko yaad har samay karti hun...

    जवाब देंहटाएं
  18. इस देश की न होते हुवे भी आज तो इस देश में नि हैं ... तो इस देश के अनुसार करना ही पड़ेगा .... इसी अनुसार जीना ही पड़ेगा ...

    जवाब देंहटाएं
  19. उड़ कर अपने देस जाना ही होता है 
    परायों के देस मे कब
    पंछियों को नीड मिले हैं ………
    ..... बहुत अच्छी प्रस्तुति....

    जवाब देंहटाएं
  20. दुनिया को समझते समझते मन में जाने कितने भी भाव उमड़ने घुमड़ने लगते हैं और फिर लगता है की ये दुनिया कहाँ किसी की है .....
    बहुत अच्छी चिंतन के धरातल पर रचित रचना ...

    जवाब देंहटाएं

आपके विचार हमारे प्रेरणा स्त्रोत हैं …………………अपने विचारों से हमें अवगत कराएं ………शुक्रिया