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बुधवार, 13 जून 2012

"सम्मान का मदारी" कैसे "ब्लोगर्स को बन्दर" बना नचाता है


कहने वाले कहते हैं 
सम्मानों की श्रृंखला में 
जेंडर से क्या होता है
अच्छा लिखना चाहिए
फिर चाहे पहले तीन में महिला ना हो
मगर महिला का वोट मिलना चाहिए
खुद को साबित करने के लिए
नए हथकंडे अपनाते हैं
कहीं महिला को अपमानित करते हैं
तो कहीं वोटिंग करवाते हैं
यूँ अपने ब्लॉग को फेमस करवाते हैं
ये वोटिंग भी अजब खेल दिखाती है
किसी को अर्श पर तो किसी को 
फर्श पर पहुंचाती है
सही तथ्य नहीं जुटाती है
आकलन में भी भरमाती है
मगर वोट के लालच में 
सब ब्लोगरों को फँसाती है
स्वयं को साबित करने को
फिर ब्लोगर तिकड़म लडाता है
कभी पोजिटिव तो कभी नैगेटिव   
ब्लोगर सम्मान आयोजित करता है 
और खुद को सर्वेसर्वा सिद्ध करता है
खुद को खुदमुख्तार बताता है 
बाकी ब्लोगरों की हमदर्दी पाता है
यूँ अपने को महान सिद्ध करवाता है

हाय रे! ये सम्मान कैसे कैसे कमाल दिखाता है 
जब चींटियों के भी पर निकलवाता है 
बरसाती कुकुरमुत्ते उग आते हैं
और बरसात के बाद गायब हो जाते हैं
जो हर मौसम में ना पाए जाते हैं
ऐसे विलुप्त प्राणी होते हैं
मगर थोड़े समय के लिए सक्रिय हो जाते हैं
बाकी ब्लोगरों के अरमान धो जाते हैं
सच कहने से हर ब्लोगर मुँह चुराता है
सम्मान के क़र्ज़ तले जो दब जाता है 
गर कोई कहने की हिम्मत करे 
तो ये विलुप्त प्राणियों की सक्रियता
जीना मुश्किल करती है 
और आंकड़ों के खेल में एक बार फिर
सच्चा ही मात खाता है 
दूसरे को नीचा दिखाने वाला ही 
उच्च स्थान पाता है
मगर सम्मान पर ना कोई आँच आती है
और ब्लोगिंग यूँ ही की जाती है
जहाँ किसी की टांग खींची जाती है
किसी को नीचे गिराया जाता है 
और खुद का सम्मान कराया जाता है
ये कूदफ़ांद केवल सम्मान आयोजन तक ही चलती है 
उसके बाद तो किसी की ना खबर मिलती है 
सब गधे के सिर से सींग जैसे गायब हो जाते हैं 
मगर जब तक रहते हैं खूब हो-हल्ला मचाते हैं
सम्मान और सम्मानितों की अच्छी ऐसी तैसी करते हैं

तभी तो स्वतंत्र लेखन की महिमा अति प्यारी है 
जिसमे मन की बात हर कोई कह जाता है
कोई हास्य मे तो कोई व्यंग्य मे 
तो कोई सीधा तमाचा लगाता है
मगर ब्लोगिंग के सीने पर मूंग तो दल ही जाता है 
यूँ ब्लोगिंग इतिहास बनाती है
एक दिन का बादशाह बनाती है
फिर चाहे बाकी दिन धूल चटाती है 
सम्मान की तर्ज़ पर कैसे कैसे खेल दिखाती है
"सम्मान का मदारी" कैसे "ब्लोगर्स को बन्दर" बना नचाता है 
ये इस आयोजन में ही नज़र आता है 
फिर भी हाथ में ट्राफी ले हर ब्लोगर मुस्कुराता है 
बस यही ब्लोगिंग और सम्मानों की लीला न्यारी है 
जिसमे उलझा हर चिट्ठाकारी है :)))))))))


32 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छा लिखना सबके बस की बात कहा इसके लिये तो आलसी बनना पड़ता हैं
    डाटा डाटा अनालिसिस अनालिसिस घन और ऋण के दाव पेच अच्छे ब्लोग्गर की यही निशानी हैं हमने भी सोचा हैं हम तो यही रहेगे जब अच्छो पर वो लिख लेगे६६ की तलछट से बुरे हम को मिल जायेगे और उनकी लिस्ट हम बनायेगे इसके लिये किसी डाटा अनालिसिस की जरुरत नहीं होगी परिकल्पना को नीचा दिखाना था
    एक लम्बी लाईन खीच दी परिकल्पना छोटी होगयी सबसे जहीन हैं वो जो परिकल्पना ले चुके
    अब कहते हैं
    कुछ खाली खाली था
    अब उत्सव जैसे पूरा हुआ

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  2. आज के दौर का सार्थक सच।


    सादर

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  3. क्या बात है? वंदना खूब कस कर धो डाला है, लगता है बहुत बड़ा धक्का खाया है. क्यों इसमें सिर खपाती हो? जब कलम चलने लगती है तो वो पेज डर पेज यूँ ही भर्ती जाती है , उसे किसी इनाम या सम्मान की हसरत नहीं होती और न वह इसके लिए चलती है. भावनाएं जो उमड़ती हें वे किसी की टिप्पणी या फिर प्रशस्ति के बारे में नहीं जानती हें. इसलिए जो भी लिखा जाता वह इस स्तर से परे होता है. अरे ये तो बाजार है और राजनीति भी. जो सिर्फ लिखने के लिए लिखते हें वे किसी से कुछ नहीं कहते हें. इस अनार्जाल के अलग आप जितना जिसके साथ अपना व्यक्तिगत सम्पर्क बना लेती हें और ज्यादा से ज्यादा लोगों के संपर्क में रहती हें उतने ही लोग आपको इस काबिल समझेंगे कि सामान आपको दिया जाय. वैसे जिसका पलड़ा भरी होता है वही तो नेता चुन जाता है . उसकी ही जिंदाबाद होती है. वैसे तुम्हारा लिखा बहुत सुंदर लगा.

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  4. इस तरह की रचनाओं का स्वागत होना चाहिए ताकि दलीय राजनीति करने वाले उस दलदल से बाहर न भी निकलें, पर उनका चेहरा तो पहचाना जा सकता है।

    पहले तो लगता था (मुझे) कि ब्लॉग जगत सिर्फ़ गुटों (मठ और उसके अधीशों) में बंटा है। अब तो लगता यहां जातीय आधार पर भी एक तरह की सक्रियता है।

    एक सक्रिय होता है, फिर उसकी चर्चा, फिर सम्मान फिर सारे गुटों का जमावड़ा और गुणगान।

    सब हो जाने के बाद कहना कि एक अच्छी कोशिश हम कर रहे हैं, लोग टांग अड़ाते हैं।

    आपने बिल्कुल सही कहा कि यह सब देख लगता है कि डमरू बजा, मदारी आया और बन्दर का खेल शुरू हो गया। मजमा जमा। हू-हा हुआ और फिर आपकी कविता की चंद अंतिम पंक्तियां ...

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  5. बड़ा मदारी है वही, जिसका इंगित मात्र |
    जीरो से हीरो करे, जीरो करे सुपात्र |

    जीरो करे सुपात्र , नचावै बन्दर सारे ।
    भिक्षाटन का कर्म, घुमाए द्वारे द्वारे ।

    परिकल्पन पर कलप, रोइये बारी बारी ।
    ब्लॉगर की यह झड़प, देखता बड़ा मदारी ।।

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  6. जीवन में वह नहीं होता जो लोक कल्याण में हो और जो लोक कल्याण में नहीं वह कुछ पल का सुख है .
    फिर भी हम क्यों अहंकार में किसी का अपमान करें ?

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  7. वंदना जी , इस खेल में आप भी नामित हुई हैं . :)

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  8. आपकी पोस्ट कल 14/6/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    चर्चा - 902 :चर्चाकार-दिलबाग विर्क

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  9. वंदना जी , सत्य परेशां हो सकता है पराजित नही ! और अक्सर सम्मान की भूख कमतर लोगो को ही होती है ! बेहतर को खुद साबित करने की जरुरत ही नही है !

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  10. कविता सच कह रही है.. पूरी हिम्मत के साथ..

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  11. ये ठीक नहीं है। या तो आप टिप्पणी के ऑप्शन ही न दें, अगर दिया है तो हमारी बात को दिखाएं।
    मेरा विरोध दर्ज़ करें और आगे से यहां किसी टिप्पणी के न करने के लिए क्षमा करें।

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  12. @ आदरणीय मनोज कुमार जी ऐसा तो हो ही नही सकता कि मै टिप्पणी ना दिखाऊँ सच कहने से भी नही डरती वो तो सारा दिन नैट पर आयी नही इसलिये पब्लिश नही हो पायी अब आयी हूँ तो सबसे पहला काम यही किया है।

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  13. @ड़ाक्टर टी एस दराल जी नामित किसी को भी कोई भी कर सकता है खेल है तो कोई भी किसी का नाम ले सकता है अब इसमे नामित होने वाले का क्या दोष ………आगे आगे देखिये होता है क्या :))))))))) यही तो है ब्लोगिंग की दुनिया ………अनपेक्षित :)))))))

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  14. रचना जी की बात सही लगती है।
    और आपकी अंतिम प्रतिक्रिया भी ... आगे आगे देखिये होता है क्या :))))))))) यही तो है ब्लोगिंग की दुनिया ………अनपेक्षित :)))))))

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  15. Aadarneeya vandna ji mujhe aapkee antim pankti se aapatti hai ( जिसमे उलझा हर चिट्ठाकारी है) , ise anyatha na le. sa sammaan-kushwansh

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  16. @ आदरणीय कुश्वंश जी आपकी आपत्ति सर माथे पर जब लिखा जाता है तो समग्रता मे ही बात कही जाती है यूँ तो तालाब की सारी मछलियाँ गंदी कब होती हैं मगर जब एक भी गंदी हो तो सारे तालाब को ही गंदा कह दिया जाता है और इसे इसी अर्थ मे लें …………किसी का नाम लेकर कुछ नही कहा है जो यहाँ देख रही हूं उसी से उपजी व्यथित मन की अभिव्यक्ति है कृपया अन्यथा ना लें।

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  17. ब्लोगर तिकड़म लडाता है कभी पोजिटिव तो कभी नैगेटिव ब्लोगर सम्मान आयोजित करता है और खुद को सर्वेसर्वा सिद्ध करता है खुद को खुदमुख्तार बताता है

    ब्लोगिंग इतिहास बनाती है एक दिन का बादशाह बनाती है फिर चाहे बाकी दिन धूल चटाती है सम्मान की तर्ज़ पर कैसे कैसे खेल दिखाती है "सम्मान का मदारी" कैसे "ब्लोगर्स को बन्दर" बना नचाता है


    badiya post badhai...

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  18. सम्मान की उपासना कभी कभी बहुत दुख दे जाती है..

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  19. "सम्मान का मदारी "- कौन ???
    "ब्लॉगर्स को बंदर " - किन ब्लॉगर्स को

    आपके बताने के बावजूद भी , मैं असहमत हूं आपसे :) :)

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  20. @ अजय कुमार झा जी सम्मान का मदारी अर्थात सम्मान रूपी मदारी और किसी खास ब्लोगर्स के लिये नही कहा है हम सभी उसमे शामिल हैं क्योंकि हम सभी ब्लोगर्स हैं इसलिये मदारी ही तो बन्दर को नचाता है वैसे ही ये सम्मान हम सभी ब्लोगर्स को कैसे नाच नचा रहा है सभी को दिख रहा है सिर्फ़ इतना ही तो कहा है ……सहमति और असहमति तो चलती ही रहेंगी अगर ये ना हों तो भी मज़ा खराब हो जाये जायका बदलने को सिर्फ़ मीठा ही मीठा नही चाहिये होता असहमति रूपी नमकीन या कडवाहट की भी बहुत जरूरत होती है या कहिये कडवी गोली की तभी तो बीमारी ठीक होती है :))))))))))))

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  21. SAB JAGAH YAHEE SHOCHNIY STHITI HAI .
    AAPKEE BAAT SACHCHEE LAGEE HAI AUR
    ACHCHHEE BHEE .

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