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गुरुवार, 17 मई 2012

रूहों को जिस्म रोज कहाँ मिलते हैं.........






तुम्हारी सदायें

क्यूँ इतना 
कराह रही हैं
क्यूँ तुम्हें
करार नहीं
आ रहा है
सब जानती हूँ
मुझ  तक पहुँच रही हैं 
तुम्हारी चीखें
तुम्हारा दर्द
तुम्हारी बेचैनी
तुम्हारी पीड़ा
सब सुन रही हूँ मैं
जानते हो
जब मंदिर में 
घंटा बजता है
उसमे मुझे
तुम्हारा 
चीखता हुआ दर्द
आवाज़ देता है
जब भी सावन में
बिजली कड़कती है
उसमे मुझे 
तुम्हारी धराशायी 
होती आशाएं 
दिखाई देती हैं
कैसे तुम्हारे 
आस के फूल पर
बिजली गिरती है
और तुम 
लहूलुहान होते हो 
सब जानती हूँ मैं
तुम्हारी पीड़ा का
दिग्दर्शन करती हूँ
जब भी किसी 
रेगिस्तान को 
तपते देखती हूँ
कैसे एक एक बूँद को
तुम तड़पते हो 
मोहब्बत की
कैसे सांस तुम्हारी 
उखड्ती है 
जब मोहब्बत की
बयार रुकने लगती है
कैसे होंठ पपड़ा जाते हैं
जब मोहब्बत को 
ज़िन्दा जलते देखते हो
सब जानती हूँ मैं
मगर क्या करूँ 
प्रियतम 
तुम तो जानते हो ना
मेरी मजबूरियां
अब कैसे सितारों 
की ओढनी ओढूँ 
अब कैसे तेरे आँगन 
में तुलसी बन महकूँ
अब कैसे फिर वो 
रूप धरूँ जिसमे 
तू कुछ पल जी सके
मोहब्बत को पी सके 
जानते हो ना 
रूहों को जिस्म रोज कहाँ मिलते हैं.........

27 टिप्‍पणियां:

  1. रूह को जिस्म की ज़रूरत ही नहीं .... उसकी पारदर्शिता ही उसकी ताकत है

    जवाब देंहटाएं
  2. जानते हो न

    रूहों को जिस्‍म रोज कहां मिलते हैं ...
    वाह ...बहुत खूब कहा है आपने ...
    आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  3. रूह सब देखती है पर कुछ कर नहीं पाती ...

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह ...बहुत खूब कहा है आपने,,,,

    जानते हो न
    रूहों को जिस्‍म रोज कहां मिलते हैं,,,,,, .

    MY RECENT POSTफुहार....: बदनसीबी,.....

    जवाब देंहटाएं
  5. Nice.

    भौतिक संरचना आंख खोलकर देखी जाती है तो रूहानी हक़ीक़त के लिए आंख बंद करने की ज़रूरत पेश आती है।
    जब आदमी कुछ समय मौन रहकर एकांत में ध्यान करता है तो वह अपनी रूहानी हक़ीक़त को देख लेता है। तब वह देखता है कि हरेक आदमी की रूहानी हक़ीक़त एक ही है। एक ही रूह का नूर हरेक नर नारी में व्याप्त है।

    http://sufidarwesh.blogspot.in/2012/05/ruhani-haqiqat.html

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत खूब....
    आपके इस पोस्ट की चर्चा आज रात ९ बजे ब्लॉग बुलेटिन पर प्रकाशित होगी... धन्यवाद.... अपनी राय अवश्य दें...
    http://bulletinofblog.blogspot.in/

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत खूब....
    आपके इस पोस्ट की चर्चा आज रात ९ बजे ब्लॉग बुलेटिन पर प्रकाशित होगी... धन्यवाद.... अपनी राय अवश्य दें...
    http://bulletinofblog.blogspot.in/

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत बढ़िया...!
    जिस्म न ही मिलें तो अच्छा है।
    सांसारिक आवामन से तो मुक्त हैं ही।

    जवाब देंहटाएं
  9. marmsparshi ...sunder abhivyakti....!!
    shubhkamnayen Vandana ji .

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  10. वाह बहुत खूब ....दर्द भरी जिंदगी का कड़वा सच ..

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  11. बहुत खूब
    और फिर चित्र भी तो रूहानी है

    जवाब देंहटाएं
  12. जिस्म से रूह तक का सफ़र वह अनंत यात्रा है जिसके बाद किसी मंजिल की ज़रूरत नहीं रहती।

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  13. so nice post with deep emotions and great feelings . ETERANAL THOUGHT.

    जवाब देंहटाएं
  14. एक अहसास जिसे महसूस किया जा सकता है... गहन अनुभूति से भरी रचना

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  15. प्रेम से संतृप्त इस रूह को जिस्म की ज़रुरत भी नहीं दिखती... ये मोहब्बत ही रूहानी है..

    जवाब देंहटाएं
  16. रूह को ज़िस्म रोज़ कहाँ मिलते हैं !
    रूह अपने आप में मुकम्मल जो है !
    बहुत बढ़िया !

    जवाब देंहटाएं
  17. वाह....शानदार ।

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