एक आसमाँ मेरा भी है
जिसका नीला रंग
मेरे अंतस पर जब छाता है
आगत विगत के सारे
बंद द्वार खोल जाता है
मैं .........हाँ मैं ......आखिर कौन हूँ
कहाँ से आया हूँ
कहाँ है जाना
किस किस युग में
कौन सा अवतार लिया
कौन सा लक्ष्य भेदन किया
किन किन गलियों से
किन किन मोड़ों से मैं गुजरा
जिसमे मेरा स्वरुप उलझता है
कभी मैं भाग रहा होता हूँ
मगर मंजिल नहीं मिलती है
कहीं मेरी हत्या होती है
तो कहीं मैं बीहड़ों से गुजरता हूँ
ये भ्रम सरीखे पहलू मेरे
जब भी मुझसे मिलते हैं
मैं सोच में डूब डूब जाता हूँ
कैसा इनका मुझसे कोई नाता है
जो मेरी समझ ना आता है
एक धुंधला खाका सा बनता है
जो स्वप्न में आज मेरे आकार लेता है
मगर विगत का कोई ना कोई तार
आज भी मुझसे जुड़ा रहता है
मैं फिर भी कोई भेद ना पाता हूँ
बस भूल भुलैया में फँसा
निकलने के उपक्रम में
और भी धंसा जाता हूँ
ये मन के कोमल भावों में
विगत की तरंगें जब उछाला मारती हैं
खुद को जानने की प्रक्रिया और भी दुरूह हो जाती है
जब बिना कारण मैं रोता हूँ
या बिना कारण मैं हँसता हूँ
या किसी चेहरे को देख वो
मुझको जब पहचाना सा लगता है
और मैं उसकी तरफ खिंचता हूँ
मुड मुड कर उसे देखता हूँ
तब ध्यान नहीं आता है
मगर एक अनजानी डोर से
मेरा मन खिंचा चला जाता है
वो क्या था .......ये समझ ना पाता हूँ
मगर मैं निरुत्तर रह जाता हूँ
जब खुद को इस व्यूह्जाल में घिरा पाता हूँ
ये विगत की परछाइयाँ
जब मुझसे मिलने आती हैं
मुझे और उलझाती हैं
मैं इनकी डोरियाँ खोलने में
फिर जीवन बिताता हूँ
फिर खुद से अनुबंध करता हूँ
अपने आसमाँ में खुद को समेटता हूँ
उसकी नीली स्याही में खुद को डुबोता हूँ
और अपनी परछाइयां उसके हवाले कर
जन्म जन्मान्तरों के खेलों से
स्वयं को मुक्त करता हूँ
उन्मुक्त उड़ान के लिए फिर अपने लिए एक नया आसमाँ बुनता हूँ ..........
अनुपम भाव संयोजन लिए बेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंhar ek ka aasman apna hi
जवाब देंहटाएंsuper...
पूरी ज़िन्दगी भूलभुलैया ही होती है .... सांप सीढ़ी के खेल जैसा ....इसमें ही अपना आसमान पाना होता है
जवाब देंहटाएंअपने अपने विस्तारित आसमान बुनने की प्रक्रिया में लगे हम सब।
जवाब देंहटाएंआस्मां अपना अपना.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर वंदना जी....
जवाब देंहटाएंasman to ho n ho par ek khaat aur machhardani apni zarur honi chahiye aaj ke daur me.
जवाब देंहटाएंआत्मा हो या परमात्मा, सबके अपने-अपने आसमां हैं।
जवाब देंहटाएंकविता का भावप्रकटीकरण सशक्त है।
सबका अपना अपना आसमान
जवाब देंहटाएंअपना आसमाँ, अपने धूप, अपने छाँव।
जवाब देंहटाएंishi haisle se to apna aasmaan paa lenge ham sabvhi.... behtreen....
जवाब देंहटाएंBahut Sunder....
जवाब देंहटाएंविगत के तार आज भी जुड़ते हैं... काश इस व्यूह से निकल पायें हम... !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर,
सादर
विगत की परछाईँ उलझी डोर सी जिन्हें सुलझाने में जीवन गुजर जाता है .
जवाब देंहटाएंयथार्थ !
जीवन और हमारा इस जीवन में होना हमेशा ही एक पहेली बना रहा है ...जिसने उत्तर पा लिया वह बुद्ध हो गया ...और बाक़ी ....इसी चक्रव्यूह में फंसे रह गए !!!!!!
जवाब देंहटाएंअपना अपना आसमां खुद ही चुनना होता है ... जीवन की इस आपाधापी में ...
जवाब देंहटाएंउन्मुक्त उड़ने के लिए हमें अपना आसमां खुद तलाशने होते हैं।
जवाब देंहटाएंKUCHH DINON KE BAAD MAIN AAPKEE
जवाब देंहटाएंKAVITA PADH RAHAA HUN . URDU MEIN
EK SHABD HAI ` AAMAD ` . ARTH HAI-
VICHAAR KAA APNE AAP JANM LENA .
AAPKEE IS KAVITA MEIN BHEE ` AAMAD `
HAI . SUNDAR BHAVABHIVYAKTI KE LIYE
AAPKO BADHAEE AUR SHUBH KAMNA.
KUCHH DINON KE BAAD MAIN AAPKEE
जवाब देंहटाएंKAVITA PADH RAHAA HUN . URDU MEIN
EK SHABD HAI ` AAMAD ` . ARTH HAI-
VICHAAR KAA APNE AAP JANM LENA .
AAPKEE IS KAVITA MEIN BHEE ` AAMAD `
HAI . SUNDAR BHAVABHIVYAKTI KE LIYE
AAPKO BADHAEE AUR SHUBH KAMNA.
एक आसमां मेरा भी है.......
जवाब देंहटाएंसबके अपने अपने आसमां हैं...!
सबके विस्तृत आसमान .... परों में परवाज़ होनी चाहिए ... सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंbahut hi uttkrisht rachnaa
जवाब देंहटाएंsaadar vandana ji
आपकी भाव-प्रवण कविता अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं । धन्यवाद ।
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