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शनिवार, 14 अप्रैल 2012

ये तो अपना परिचय आप हैं………"क्षितिज़ा " एक आगाज़

अंजू चौधरी का प्रथम काव्य संग्रह 
"क्षितिजा "


अंजू चौधरी जी किसी परिचय की मोहताज़ नहीं हैं उनका परिचय मैं क्या करवाऊं बस उनकी उड़ान को नमन करती हूँ और उनके संग्रह के बारे में मेरे जो विचार हैं एक पाठक की दृष्टि से वो प्रस्तुत करती हूँ . उस दिन पुस्तक मेले में विमोचन के वक्त भी हम उनके साथ थे जो अद्भुत क्षण थे उन्होंने उसमे हमें सप्रेम आमंत्रित किया ये हमारे लिए गौरव की बात है कि हमें इस लायक समझा और इतना मान दिया .

अंजू चौधरी जी ने अपना काव्य संग्रह बहुत प्रेम से भिजवाया है ........."क्षितिजा "..........नारी मन के एक- एक बंध को खोलती है उनकी क्षितिजा ..........हर कविता यूँ तो बेजोड़ है ज़िन्दगी की छोटी - छोटी बातों को कविता में पिरोकर नारी मन की परतें उधेड़ना और फिर उन पर रफू करना भी उन्हें आता है . कभी प्रेम से लबरेज चाहतें दरवाज़ा खटखटाती हैं तो कभी फूटपाथ की ज़िन्दगी तो कभी गरीब की बेबसी भी उन्हें उसी तरह आंदोलित करती है कहीं रिश्तों की टीस है तो कहीं सावन की फुहारें भिगोती हैं तो कहीं इंतजार की कीलें चुभती हैं तो कहीं अरमानों के पंख लगा रात की तनहाइयाँ खुद-ब-खुद रोती हैं तो कभी शब्द और उनके अर्थ उन्हें झंझोड़ते हैं तो कभी एक गहन अन्धकार में खुद को खो देती हैं . दूसरी तरफ  एक माँ के ह्रदय का मंथन भी बखूबी करती हैं और उसके हालात का चित्रण वो ही कर सकता है जिसने उसे महसूस किया हो .

पूरा काव्य संग्रह अनुपम कविताओं का संग्रह है उनमे से कुछ कविताओं के बारे में अपने विचार प्रस्तुत कर रही हूँ जो पढने के बाद मैंने महसूस किये 

"श्रापित गरीब की ज़िन्दगी" कविता में जिस संजीदगी से एक गरीब के जीवन को छुआ है वो काबिल -ए -तारीफ है और साथ ही अंतिम पंक्तियों में करोड़ों भारतीयों की ज़िन्दगी को भी परिभाषित कर दिया .

तो दूसरी तरफ "गरीब" कविता आत्मा को झिंझोड़ने को मजबूर करती है कि कैसे एक पैसे वाला एक गरीब से भी गरीब हो जाता है उस वक्त जब उसके पसीने का पैसा देने में भी आनाकानी करता है उस वक्त वो गरीब उस पैसे वाले से कितना अमीर होता है या कहिये वो सच में शहंशाह  होता है उस वक्त जब पैसे वाले की आनाकानी को भी मुस्कुरा कर बर्दाश्त कर लेता है .

"हुस्न-ए-यार" कविता प्रेम और खुदाई प्रेम के बीच का दर्पण है जहाँ मोहब्बत खुदा से भी ऊंचा उठ जाती है और अपनी मोहब्बत के सजदे में झुक जाती है शायद वो ही तो असली मोहब्बत होती है .........बहुत संजीदगी से चंद लफ़्ज़ों में मोहब्बत को बयां कर डाला है .

उसकी आँखों की मौन स्वीकृति ने
मुझे उस खुदा का मुजरिम बना डाला
क्योंकि उसकी इबादत से पहले 
मैंने सजदा अपने प्यार का 
अपने हुस्न-ए-यार का कर डाला 

"मैं" कविता एक अलग ही रूप रंग लिए है जो पढो तो अलग अनुभूति और आखिर में पढ़ते- पढ़ते जब कवयित्री के भाव से जुडो तो अलग अनुभूति देती है और उस सोच को सलाम करती है जो वास्तव में एक जहान से दूसरे जहान तक का सफ़र करवा देती है और इसका आनंद तो खुद पढने पर ही आता है .



"हे! गौतम बुद्ध " कविता में कवयित्री ने कविता के माध्यम से गौतम बुद्ध को सांसारिक जीवन का महत्त्व बतलाया है साथ ही एक सन्देश भी दिया है कि संसार से भाग कर ही प्रभु को या खुद को नहीं पाया जा सकता बल्कि संसार में रहकर और कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए भी स्वयं को पाया जा सकता है क्योंकि मानव जीवन एक बार मिला है तो क्यों ना उसे पूरी तरह जीया जाये उसके हर रंग से जीवन रँगा जाये और अपने स्वरुप को भी ना भुलाया जाये



"२१ वीं सदी के रिश्ते" कविता के माध्यम से आज के मैटलिक रिश्तों को प्रस्तुत किया है और साथ ही रिश्तों का महत्त्व दर्शाया है , एक संयुक्त परिवार की गरिमा और उसकी महत्ता को प्रतिपादित किया है जिस पर आज कोई ध्यान भी नहीं देता 

आज के मशीनी युग में
समय कुछ ज्यादा ही
महंगा हो गया है
आप सब अब
अवकाश निकालो

 इन पक्तियों से आवाहन करती कवयित्री अंतिम पक्तियों में मन की पीड़ा और समाज का सच दर्शाती हैं

आज दौलत से एक
अटूट रिश्ता जुड़ गया है
फिर भी मैं
ये ही कहूँगी की
ढूँढ सकते हो तो ढूँढ लाओ
वो स्वयं के रिश्ते
जो खो गए हैं
इस दुनिया के चलन में
वो पक्के धागों से रिश्ते
वो रिश्तों की सच्ची मिठास
वो प्यार वो बँधन
वो हर चेहरे पर मुस्कान
वो हँसी ठिठोली का वातावरण
वो अपनों पर विश्वास
जो मिलता था सबको
एक संयुक्त परिवार में


तो दूसरी तरफ "भविष्य की रिहर्सल " कविता में रिअलिटी शो की कडवी किन्तु सत्य सच्चाइयाँ प्रस्तुत की हैं .


और एक तरफ एक जवान बेटी की माँ की चिंता को "मैं कैसे सो जाऊँ" कविता के माध्यम से प्रस्तुत किया है कि आज समाज ना जाने किस दिशा में जा रहा है कि पढ़ी लिखी , आत्मविश्वासी स्वावलंबी लड़की के लिए भी वर वो भी बिना दहेज़ के मिलना कितना मुश्किल हो गया है जिसकी चिंता में हर माँ शायद सो नहीं पाती होगी .


कवयित्री ने इस संकलन में ज़िन्दगी के सभी रंग भरे फिर चाहे वो प्रेम से परिपूर्ण हों या सामाजिक विद्रूपता हो या बचपन की निश्छलता हो . समाज और ज़िन्दगी के रंगों से सराबोर संग्रह बेशक पढने योग्य है जिसमे नारी मन का पुरुष द्वारा छलने पर भी उसे स्वीकारना तो कभी उससे आहत होना दर्शाता है नारी मन की पीड़ा का दिग्दर्शन भी उनकी कविताओं से होता है . आस पास के जीवन से ग्रहण करती संवेदनाओं को कविता के माध्यम से मुखरित करने में कवयित्री सक्षम रही हैं और यही उनके लेखन का मूल स्त्रोत भी है जो उन्हें लिखने को प्रेरित करता है . 

वो इसी प्रकार निरंतर लिखती रहें और नव सृजन करती रहें इन्ही शुभकामनाओं के साथ मैं उन्हें बधाइयाँ देती हूँ .



हिंद युग्म प्रकाशन से प्रकाशित ये संग्रह वहाँ से मंगवाया जा सकता है जिसका नंबर है 
M: 9873734046
M: 9968755908
sampadak @hindyugm.com


33 टिप्‍पणियां:

  1. वंदना जी आपने पुस्तक की बढ़िया समीक्षा की है. अंजू जी का परिचय कविता के माध्यम से ताजा करवाने का आभार...

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  2. इस समीक्षा के लिए आपका बहुत बहुत आभार ! आपको और अंजु जी को हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें !

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  3. आपका परिचय देने का अंदाज़ अच्छा लगा।

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  4. बहुत बेहतरीन....
    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

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  5. कमाल की समीक्षा है ... बधाई है अंजू जी को और आक्पी समीक्षा को ...

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  6. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!
    --
    संविधान निर्माता बाबा सहिब भीमराव अम्बेदकर के जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
    आपका-
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  7. बहुत सुन्दर समीक्षा....बधाई

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  8. वंदना,

    अंजू के काव्यसंग्रह "क्षितिजा' की बहुत अच्छी समीक्षा की है और पुस्तक को लगता है कि सामने खोल कर रख दिया है. इस के लिए आभार !

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  9. बहुत सुन्दर पुस्तक समीक्षा....बधाई... अंजू जी

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  10. वाह पुस्तक भी बढ़िया लगी और आज पुतक के बारे में जो लिखा वह भी बहुत अच्छा लगा। अंजू जी तो आज अवार्ड लेकर आ रही हैं। उन्हें बहुत-बहुत बधाई...

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  11. बहुत बढ़िया समीक्षा..... आप दोनों को बधाई

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  12. अंजू की कविताएं मन में बहती हुई सी है .. कुछ कुछ भाव अपने से ही लगते है. उन्हें इस पुस्तक के लिये बधाई . और आपको इस समीक्षा के लिये बधाई .

    विजय

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  13. सुन्दर समीक्षा, अंजूजी को ढेरों बधाईयाँ..

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  14. सुंदर परिचय. अंजू जी के लेखन से हम सभी रूबरू होते रहते है और कायल भी उनके सुंदर लेखन का. पुस्तक भी जरूर पढेंगे.

    शुक्रिया.

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  15. कवियित्री अंजु चौधरी जी को कोटिश: बधाएयाँ, पुस्तक में संकलित रचनाओं की सटीक समीक्षा पढ़ कर रचनाओं की उत्कृष्टता का बोध सहज ही हो रहा है.आपको भी बधाइयाँ .

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  16. बड़ी सुन्दर समीक्षा... आ अंजू को सादर बधाई....

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  17. vandanaa jee..bahut hee marmik tareee se aapne kintab se bhee parichit karwaya aaur rachnakarse bhee..baise rachnakar kee pratibha se to ham log parichit hain hee..sangrah kee hardik badhayee anju jee ko aaur is parichay ke liye aapko..sadar

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  18. समीक्षा के लिए आपका बहुत बहुत आभार ,
    बधाई

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  19. क्षितिजा जी के काव्य संग्रह की बहुत अच्छी समीक्षा की है आपने।
    क्षितिजा जी को शुभकामनाएं और आपके प्रति आभार।

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  20. क्षमा कीजिएगा,
    पहली टिप्पणी में कुछ त्रुटि हो गई।

    अंजू जी के काव्य संग्रह ‘क्षितिजा‘ की बहुत अच्छी समीक्षा की है आपने।
    अंजू जी को शुभकामनाएं और आपके प्रति आभार।

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  21. बहुत ही अच्‍छी समीक्षा की है आपने पुस्‍तक की ... अंजू जी को बहुत-बहुत बधाई आपका आभार ।

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  22. अंजू जी को ढेरों बधाइयां.. समीक्षा अच्छी लगी..

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  23. अंजू जी को उनके प्रथम काव्य संग्रह "क्षितिजा" के लिए ...बहुत बहुत बधाई !!! और वंदनाजी क्या खूब समीक्षा की है आपने ......!

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  24. वंदना जी अंजू जी की पुस्तक की समीक्षा की आपने और उनके पुस्तक से परिचय कराया आभार आपको, अंजू जी को उनकी पुस्तक के लिए बधाई.......

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आपके विचार हमारे प्रेरणा स्त्रोत हैं …………………अपने विचारों से हमें अवगत कराएं ………शुक्रिया