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रविवार, 11 मार्च 2012

होते हैं कुछ कारण अपनी चिता को आग लगाने के भी


मेरी उबलती ख़ामोशी के तहखानों में
दरकते ख्वाबों के पैबंद 
अब कहानी नहीं कहते
नहीं मिलता कोई सिपहसलार
नहीं होता कोई नया किरदार
रेशम की फंफूंद जमी काइयों पर 
गुलाब नहीं उगा करते 
किनारों पर ही अलाव जलते हैं
दहकते खौलते कडाहों में आहत
रूहों पर कुण्डियाँ नहीं लगतीं 
कोई सांकल  होती जो नहीं 
फिर गिरह की उलझी गांठों में 
अवसाद के ढेर लगाते संगमरमरी 
पत्थरों पर पैर रखते ही छाले 
यूँ ही ना फूट पड़ते .............
होते हैं कुछ कारण अपनी चिता को आग लगाने के भी 
और खामोश चिताओं के ठन्डे शोलों में छुपे 
राज़ बहुत गहरे होते हैं .................
फिर उम्र भर चाहे कितना ही सर्द रहे मौसम ..........

26 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन भाव पूर्ण सार्थक रचना, शुभकामनाएँ।

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  2. अपनी चिता को आग लगाने के भी कुछ कारण होते हैं।
    एक बहुत बड़ी सच्चाई है यह।

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  3. बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....

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  5. दरकते ख्वाब और उबलती खामोशी ...बहुत कुछ कह गयी ... अच्छी प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  6. होते हैं कुछ कारण अपनी चिता को आग लगाने के भी
    और खामोश चिताओं के ठन्डे शोलों में छुपे
    राज़ बहुत गहरे होते हैं .................
    फिर उम्र भर चाहे कितना ही सर्द रहे मौसम ......

    behad bhavapoorn rachana abhivyakti...

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  7. क्या एहसास उकेरे हैं शब्दों में

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत कुछ अपने पीछे छिपाए... गंभीर रचना...
    सादर.

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  9. बहुत सुंदर सार्थक रचना, बेहतरीन भाव पुर्ण प्रस्तुति.......

    MY RESENT POST ...काव्यान्जलि ...:बसंती रंग छा गया,...

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  10. खामोश चिताओं के ठन्डे शोले में छिपे राज बहुत गहरे होते हैं ...
    ज़र्द ख़ामोशी बेजुबान तस्वीरें बहुत बोलती हैं !
    बेहतरीन !

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  11. गहरी ... आक्रोश की अभिव्यक्ति है जैसे ... कुछ है जो जैसे फंसा हुवा है अंदर ...

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  12. सही है --
    क्या क्या दफनाया गया
    कब क्या जलाया गया -
    कोई न जान पाए

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    उत्तर
    1. दिल में दफनाते गए, खले-गले घटनीय ।

      उथल-पुथल हद से बढ़ी, स्वाहा सब अग्नीय ।।

      दिनेश की टिप्पणी : आपका लिंक

      dineshkidillagi.blogspot.com

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  13. आपकी एक पुरानी रचना याद आई...शायद अभी कुछ दिनों पहले लिखी!!!!

    बहुत भावपूर्ण...
    सादर.

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  14. उबलती ख़ामोशी और खामोश चिताओं के ठन्डे शोलों में छुपे गहरे राज़ बहुत कुछ कह गए... गंभीर रचना

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  15. बहुत ही बढि़या प्रस्‍तुति ।

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  16. पीड़ा की गहन , मार्मिक अभिव्यक्ति..

    बहुत ही सुन्दर रचना..

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  17. आत्महंता कारणों को कोई कारण भी तो हो..

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  18. बहुत सी वजहें होती हैं ...स्वयं को मारने की ....बहुतसे हादसे होते हैं...वजूद मिटाने के लिए.....मर्मस्पर्शी रचना!.

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  19. मार्मिक उम्दा अभिव्यक्ति!!

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  20. उर्मिला की पीडा को आपने बखूबी चित्रित किया है । सुंदर रचनी ।

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  21. वंदना जी नमस्कार...
    आपके ब्लॉग 'जिंदगी एक खमोश सफर' से कविता भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 23 अगस्त को 'होते हैं कु छ कारण अपनी चिता को आग लगाने के भी...' शीर्षक के कविता को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaksarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
    धन्यवाद
    फीचर प्रभारी
    नीति श्रीवास्तव

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