सीमांत सोहल जी की नज़र से भी देखिये .........कैसे कविता को नए आयाम और दृष्टि मिल जाती है और वो अनकहा भी सामने आ जाता है जहाँ तक नज़र नहीं जा पाती..........एक समीक्षक की निष्पक्ष दृष्टि ही किसी कविता का सही आकलन कर सकती है जिसका प्रमाण ये समीक्षा है ............ये फेसबुक पर पुस्तक मित्र पर की गयी समीक्षा है जिसे ज्यों का त्यों आपके सम्मुख रख दिया है अभी तक प्राप्त टिप्पणियों के साथ .................
पुस्तक "स्त्री होकर सवाल करती है "
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कवयित्री -वंदना गुप्ता
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वंदना गुप्ता हैं !उनकी दो असरदार कविताएं मौजूद हैं !वंदना गुप्ता की औरत एक झील है !एक ठहरी हुए झील !शांत ! बेखबर !लोग अपना अक्स देखने उसके पास आते रहते हैं !पहले शांत जल में अपना अक्स देखते हैं फिर उसे छेड्ने के बाद !मतलब उसमें कंकड़ फेंकने के बाद !अपने ही अक्स को बदलता हुआ देखते हैं !अपने ही अक्स का मूल्यांकन करते हैं !झील कुछ नहीं कहती !शांत रहती है !पत्थर फेंकने से पहले और पत्थर फेंकने के बाद भी !कुछ देर के लिए वह अपनी लहरों से उद्वेलित होती है !फिर शांत हो जाती है !
इस तरह पत्थर फेककर अपना अक्स देखने वालों की कमी नहीं है और पत्थर ना फेंकने वालों की भी !झील को कोई फर्क नहीं पड़ता !
झील की तकलीफ इस बात में है कि क्या पत्थर फेंके बिना काम नहीं चलता? पहले पत्थर फेंको !झील को उद्वेलित करो फिर अपना अक्स बिगाड़ो !ये समाज की किस समझदारी का नाम है ?
ऐसा भी हो सकता था कि आदमी झील के पास आकार शांत बैठ जाता !झील में अपना अक्स देखता रहता !आदमी भी शांत ,झील भी शांत !आदमी की रूह और झील की रूह दोनों साक्षात्कार करते !दोनों बेफिक्र बैठे रहते !वक्त का पता ना चलता !दिन क्या ,पूरी उम्र गुजर जाती !आदमी वृद्ध हो जाता बैठा -बैठा !झील सूख जाती धीरे -धीरे !
लेकिन ऐसा नहीं हो पाता !झील शांत रहती है !उसे कोई शिकायत नहीं है !
वंदना सच कहती हैं ,झीलें कब बोली हैं ?वो साक्षी बनती रहती हैं हर कुरूपता की ,हर गहनता की !हर तूफान को सहती हैं !अपने वजूद से ही उसे दिक्कत है !हर खामोशी की कब्र है उसमे !
बावजूद सबके, झीलें खामोश रहती हैं !
फिर वंदना एक ऐसी औरत की भी कल्पना करती हैं जिसे छूना भी गवारा ना हो !हवा का स्पर्श भी नहीं !अपना साया भी नहीं !अपने चाहने वालों से दूर !अपनी रूह से भी कोसों दूर !वंदना के शब्दों में ,वर्जित फल !ये बात अलग है कि ऐसा वर्जित फल दुर्लभ है !
वंदना की कविताओं में एक भोलापन है !निर्दोषपन है !वंदना क्लिष्ट शब्दों का प्रयोग नहीं करतीं !ना ही क्लिष्ट भावों का !कविताओं में ज्यादा स्टेंजा नहीं रहते !सुस्पष्ट रहती हैं !पाठक भटकता नहीं है !कविताओं में चतुराई नहीं है !वंदना को पढ़ना सुखद लगता है !
वंदना की याद रह जाने वाली पंक्तियाँ
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खामोशी की कब्र में ही
दफन हुई हैं
मगर झीलें कभी नहीं बोली हैं
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कवयित्री -वंदना गुप्ता
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वंदना गुप्ता हैं !उनकी दो असरदार कविताएं मौजूद हैं !वंदना गुप्ता की औरत एक झील है !एक ठहरी हुए झील !शांत ! बेखबर !लोग अपना अक्स देखने उसके पास आते रहते हैं !पहले शांत जल में अपना अक्स देखते हैं फिर उसे छेड्ने के बाद !मतलब उसमें कंकड़ फेंकने के बाद !अपने ही अक्स को बदलता हुआ देखते हैं !अपने ही अक्स का मूल्यांकन करते हैं !झील कुछ नहीं कहती !शांत रहती है !पत्थर फेंकने से पहले और पत्थर फेंकने के बाद भी !कुछ देर के लिए वह अपनी लहरों से उद्वेलित होती है !फिर शांत हो जाती है !
इस तरह पत्थर फेककर अपना अक्स देखने वालों की कमी नहीं है और पत्थर ना फेंकने वालों की भी !झील को कोई फर्क नहीं पड़ता !
झील की तकलीफ इस बात में है कि क्या पत्थर फेंके बिना काम नहीं चलता? पहले पत्थर फेंको !झील को उद्वेलित करो फिर अपना अक्स बिगाड़ो !ये समाज की किस समझदारी का नाम है ?
ऐसा भी हो सकता था कि आदमी झील के पास आकार शांत बैठ जाता !झील में अपना अक्स देखता रहता !आदमी भी शांत ,झील भी शांत !आदमी की रूह और झील की रूह दोनों साक्षात्कार करते !दोनों बेफिक्र बैठे रहते !वक्त का पता ना चलता !दिन क्या ,पूरी उम्र गुजर जाती !आदमी वृद्ध हो जाता बैठा -बैठा !झील सूख जाती धीरे -धीरे !
लेकिन ऐसा नहीं हो पाता !झील शांत रहती है !उसे कोई शिकायत नहीं है !
वंदना सच कहती हैं ,झीलें कब बोली हैं ?वो साक्षी बनती रहती हैं हर कुरूपता की ,हर गहनता की !हर तूफान को सहती हैं !अपने वजूद से ही उसे दिक्कत है !हर खामोशी की कब्र है उसमे !
बावजूद सबके, झीलें खामोश रहती हैं !
फिर वंदना एक ऐसी औरत की भी कल्पना करती हैं जिसे छूना भी गवारा ना हो !हवा का स्पर्श भी नहीं !अपना साया भी नहीं !अपने चाहने वालों से दूर !अपनी रूह से भी कोसों दूर !वंदना के शब्दों में ,वर्जित फल !ये बात अलग है कि ऐसा वर्जित फल दुर्लभ है !
वंदना की कविताओं में एक भोलापन है !निर्दोषपन है !वंदना क्लिष्ट शब्दों का प्रयोग नहीं करतीं !ना ही क्लिष्ट भावों का !कविताओं में ज्यादा स्टेंजा नहीं रहते !सुस्पष्ट रहती हैं !पाठक भटकता नहीं है !कविताओं में चतुराई नहीं है !वंदना को पढ़ना सुखद लगता है !
वंदना की याद रह जाने वाली पंक्तियाँ
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खामोशी की कब्र में ही
दफन हुई हैं
मगर झीलें कभी नहीं बोली हैं
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सशक्त और सही विश्लेषण - बहुत बहुत शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंसुन्दर समीक्षा..
जवाब देंहटाएंक्योकि रचनाकार और रचनाएँ ही सुन्दर है....
बधाई...
प्रतिभा को सम्मान ..आपको शुभकामनाये..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर समीक्षा. पाठकों की राय और ज्ञानीजनों द्वारा उत्तम समीक्षा और सुंदर लेखन को प्रेरित करती है.
जवाब देंहटाएंबधाई वंदना जी.
सटीक समीक्षा ... सोहल जी की नज़र से तुमको जानना अच्छा लगा ॥ :):)
जवाब देंहटाएंअनुपम भाव संयोजन के साथ बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंझील की शान्ति अपने आप में मुखर है...
जवाब देंहटाएंवंदना जी,सोहल जी के द्वारा की समीक्षा अच्छी लगी,
जवाब देंहटाएंमेरे ख्याल से,किसी भी रचना को लिखने के बाद,
यदि खुद को आत्मसंतुष्टि मिले,वहीं पर सबसे बड़ी समीक्षा
वही हो जाती है कि हमने अच्छा लिखा है,फिर किसी के समीक्षा की
जरूरत नही,वैसे ही आप एक सफल अच्छी रचनाकार है,...बधाई...
MY NEW POST ...सम्बोधन...
वाह सोहल जी की पारखी नज़रों के क्या खूब पहचाना है कवियत्री मन को । बहुत बहुत शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंजो सोहिल जी थोक में कह रहे हैं,वह हम किस्तों में न जाने कितनी बार कह चुके। पर पता नहीं क्यों,आपको हमारा कुछ याद ही नहीं रहता!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार के चर्चा मंच पर भी लगा रहा हूँ!सूचनार्थ!
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महाशिवरात्रि की मंगलकामनाएँ स्वीकार करें।
वंदना जी निस्संदेह एक शाशाक्त कवयत्री है साहिल जी की समीक्षा बेहतरीन के लिए है बधाई
जवाब देंहटाएंसटीक समीक्षा
जवाब देंहटाएंबहुत शुभकामनाएं,
सादर
वंदना जी की कविताएं मानव मन की पर्त-दर-पर्त विश्लेषण करती हैं।
जवाब देंहटाएंसोहल जी की समीक्षा वंदना जी के कविता संसार को सुगमता से दृष्टव्य बना रही है।
bahut sundar samiksha , vandna ji badhai aapko.........
जवाब देंहटाएंबहुत स्पष्टता से प्रस्तुत की गई समीक्षा कविता के भाव को प्रेषित कर रही है...
जवाब देंहटाएंमैंने यह कविता नहीं पढ़ा है...पढ़ने की इच्छा हो रही है
कभी फुरसत में पोस्ट कीजिएगा|
बढ़िया समीक्षा !
जवाब देंहटाएंSaahil kee bebaaq smeeksha kee daad detaa hun main . Badee
जवाब देंहटाएंimaandaaree se unhonne Vandana ji kee kavitaaon kaa aaklan
kiya hai . Vandana ji nissandeh ek sashakt kavyitri hain .
bahut achha laga yaha aakar samiksha padhkar
जवाब देंहटाएंजितनी सरल सुंदर कविता उतनी ही सहज समीक्षा । बधाई आपको भी और सीमान्त साहिल जी को भी ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन समीक्षा! .....
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