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शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2012

बेबसी की जुबान पर उगते काँटे देखे हैं कभी……

चाहती थी तुझमे अपना मधुमास गूंथना

चाहती थी तुझ संग प्रीत के हिंडोले पर झूलना


चाहती थी तुझ संग पीली चदरिया ओढना


चाहती थी तुझमे ॠतुराज का हर रंग उंडेलना


चाहती थी तेरी चाहत को अपनी वेणी मे संजोना


और चाहत सिर्फ़ चाहत ही रह गयी


हर बरस ॠतुराज


कुछ अंगार ही डाल गया दामन मे मेरे


अब देख कितनी संजीदगी से हर अंगार


सुर्ख पलाश सा झुलसा रहा है


और वो देख दूर खडा ॠतुराज मुस्कुरा रहा है


बेबसी की जुबान पर उगते काँटे देखे हैं कभी……

24 टिप्‍पणियां:

  1. कांटे बिना परवरिश के उग आते हैं ... मुख से फूल बरसाइए :) मन के भावों को बखूबी लिखा है ॥

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  2. बहुत सुन्दर है पोस्ट।

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  3. अच्छी कविता है वंदना जी ..
    kalamdaan.blogspot.in

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  4. बहुत खूब वंदना जी...
    अच्छी प्रस्तुति..

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  5. BKAUL SAHIR -

    MAINE CHAAND AUR SITAARON KEE TAMANNA KEE THEE
    MUJHKO RAATON KEE SIYAAHEE KE SIWAA KUCHH N MILA

    MARMIK KAVITA KE LIYE AAPKO BADHAAEE.

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  6. बेबसी की जुबान पर उगते कांटें देखे है कभी.....
    दिल की मुराद पूरी न होने का दर्द और बेबसी स्पष्ट दिखलाती रचना.... !! अति सुन्दर..... :)

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  7. बेबसी की जुबान पर उगते कांटें देखे है कभी.....
    दिल की मुराद पूरी न होने का दर्द और बेबसी स्पष्ट दिखलाती रचना.... !! अति सुन्दर.... !!

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  8. आखिरी पंक्ति पर निकला ...उफ्फ्फ...
    बेहतरीन पंक्तियाँ.

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  9. अनुपम भाव संयोजन के साथ बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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  10. सुन्दर अभिव्यक्ति....
    सादर बधाई...

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  11. बेबसी की जुबान पर कांटे जब उगते हैं तो पहले ज़ुबान छिलती है
    फिर साँसों की नाली लहुलुहान होती है
    पाचन शक्ति ख़त्म .......
    दिखता नहीं तो हर शक्स हैरां होता है

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  12. सपने झरे फूल से, मीत चुभे शूल से
    उसके बाद काँटे ही तो उगते हैं बेबसी की जुबान पर, बढ़िया रचना....

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  13. ये जुबान बहुर कुछ कहती हैं, बेबसी में ही सही।

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  14. आपके इस उत्‍कृष्‍ट लेखन के लिए ...आभार ।

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  15. जबरदस्त ||
    अनुपम भाव संयोजन
    बहुत ही बेहतरीन रचना है....:-)

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  16. बहुत सुंदर भावाव्यक्ति ,बधाई

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  17. बेहतरीन अंदाज़..... सुन्दर
    अभिव्यक्ति.

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