सुना है
आज के दिन
वरण किया था
सीता ने राम का
जयमाल पहनाकर
और राम ने तो
धनुष के तोड़ने के साथ ही
सीता संग जोड़ ली थी
अलख प्रीत की डोरी
कैसा सुन्दर होगा वो दृश्य
जहाँ ब्रह्माण्ड नायक ने
आदिसृष्टि जगत जननी के साथ
भांवरे भरी होंगी
उस अलौकिक अद्भुत
अनिर्वचनीय आनंद का अनुभव
क्या शब्दों की थाती कभी बन सकता है
आनंद तो अनुभवजन्य प्रीत है
फिर भुवन सिन्धु का भुवन सुंदरी संग
मिलन की दृश्यावली
जिसे शेष ना शारदा गा पाते हैं
वेद भी ना जिनका पार पाते हैं
तुलसी की वाणी भी मौन हो जाती है
चित्रलिखि सी गति हो जाती है
उसका पार मैं कैसे पाऊँ
कैसे उस क्षण का बखान करूँ
बस उस आनंद सिन्धु में डूबने को जी चाहता है
कोटि कोटि नमन करती हूँ
जीव हूँ ना ...........
बस नमन तक ही मेरी शक्ति है
यही मेरी भक्ति है ..........स्वीकार सको तो स्वीकार लेना
Hairan kar detee ho....kahan se ye sab lekhan soojh jata hai tumhen?
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति|
जवाब देंहटाएंजीव हूँ ना ........... बस नमन तक ही मेरी शक्ति है यही मेरी भक्ति है ..........स्वीकार सको तो स्वीकार लेना वाह !! बहुत खूब लिखा है आपने वंदना जी... शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंकैसे न स्वीकारेंगे ? मन से मन की थाह है.
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना.
निश्चय ही सबके आनन्द का क्षण था वह।
जवाब देंहटाएंप्रभावी कविता ||
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति ||
भक्ति अवश्य ही स्वीकार की जाती है . अति सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंहर बार कि तरह भाव में बहती और बहाती कविता...
जवाब देंहटाएंवंदना जी,..
जवाब देंहटाएंबहुत खूबशूरत रचना,
हमने तो स्वीकार किया....
सुंदर पोस्ट,,
sach me avandneey hai aisa drishy to.
जवाब देंहटाएंsunder prastuti.
भावो का सुन्दर चित्रण...
जवाब देंहटाएंसुंदर पावन भाव लिए अभिव्यक्ति..... ज़रूर स्वीकार हो यही प्रार्थना है....
जवाब देंहटाएंbhaut hi khubasurat bhaavo se rachi sundar rachna...
जवाब देंहटाएंसामयिक पोस्ट।
जवाब देंहटाएंजय श्री राम!
बेहतरीन कविता...
जवाब देंहटाएंवंदना जी,
जवाब देंहटाएंआपके लिए प्रस्तुत है ये सच्ची कहानी-
http://gumnamsahitya.blogspot.com/
गूंगे का गुड जैसी भावना को कोई अभिव्यक्त करे भी कैसे ...
जवाब देंहटाएंभावना तो स्वीकार करेंगे ही जरुर !
बहुत सुंदर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंजीव हूँ ना ........... बस नमन तक ही मेरी शक्ति है यही मेरी भक्ति है .......नि:शब्द कर दिया आपने ...बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर पावन भाव लिए बेहतरीन अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंउस अलौकिक दृश्य की कल्पना मात्र से जो रोमांच और आनंदानुभूति आपकी कविता पढ़ने से होता है वह भी कुछ कम नहीं !
जवाब देंहटाएंआभार !
आपकी पोस्ट की खबर हमने ली है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - ब्लॉग जगत से कोहरा हटा और दिखा - ब्लॉग बुलेटिन
जवाब देंहटाएंसुंदर पावन अभिव्यक्ति....स्वीकार हो !!
जवाब देंहटाएंबड़ी खुबसूरत रचना है आदरणीय वंदना जी...
जवाब देंहटाएंश्री राम कथा सचमुच अद्भुत है...
सादर बधाई....
bahut khoobsurat rachna....aabhar
जवाब देंहटाएंभक्ति में प्रेमपूर्ण समर्पण....अद्वितीय
जवाब देंहटाएंवाह...क्या पावन भावोद्गार...
जवाब देंहटाएंमुग्ध होकर रह गया मन...
सत्य है इससे अधिक और कुछ कहा भी तो नहीं जा सकता...जहाँ पहुँच वाणी अवरुद्ध हो जाती है,शब्द स्तब्ध हो जाते हैं,वहां कोई कैसे उदगार व्यक्त करे...नमन से अधिक कुछ और क्या कहे...
बहुत अच्छी रचना है आपकी , हमारे ब्लॉग पर भी दर्शन दे श्रीमान
जवाब देंहटाएंहमारी कुटिया पर तो कोई आता ही नहीं है, आईये ना ............
वंदना जी
जवाब देंहटाएंआपके भक्ति भरी कविताएं भी उतनी अच्छी होती है , जितनी की कोई और कविता ... आपने इस कविता को लिखकर बहुत तृप्ति दी है रामभक्तों को ..
बधाई !!
आभार
विजय
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कृपया मेरी नयी कविता " कल,आज और कल " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/11/blog-post_30.html
सच्चे दिल की पुकार तो हमेशा ही सुनी जाती है ... इस शक्ति पे भरोसा रकना होगा ...
जवाब देंहटाएंwaah bahut hi sundar rachna...nishabd kiya aap ne.....
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