आज आँसू की कलम बनाई है
दिल में कोई गमी छाई है
शायद मोहब्बत की कोई कली
कहीं फिर किसी ने चटकाई है
तभी तो दिल में इक हूक उठ आई है
पर वो पन्ना नहीं मिल रहा
जिस पर लिख सकती इबारत
बिन स्याही की कलम
लिखेगी भी तो क्या और कहाँ
शायद तभी पन्ने भी लापता हैं
आखिर दर्द की स्याही भी तो सूख चुकी है
सिर्फ़ कुछ सूखी पपडियाँ ही बची हैं
अब कितना ही भिगोना चाहो
दर्द रोज कहाँ पिघलता है
दर्द की पपडियों मे भी तो ज़ख्म पलते है
ये किसी ने ना जाना………
Dard ka anutha sabdankan...sundar
जवाब देंहटाएंwww.poeticprakash.com
Hi..
जवाब देंहटाएंJindgi ke ye sang chalta hai..
Dard na roz hi pighalta hai..
Sundar bhav..
Deepak..
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसही कहा , दर्द बहुत जमा होने के बाद ही पिघलता है. सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंदर्द रोज कहाँ पिघलता है
जवाब देंहटाएंदर्द की पपडियों मे भी तो ज़ख्म पलते है
....अद्भुत...बहुत मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति..
आखिर दर्द की स्याही भी तो सूख चुकी है
जवाब देंहटाएंसिर्फ़ कुछ सूखी पपडियाँ ही बची हैं
दर्द की इन्तिहाँ को कहती पंक्तियाँ ..
sunder rachanaa hai
जवाब देंहटाएंसचमुच दर्द कहाँ रोज पिघलता है...!!!
जवाब देंहटाएंशिद्दत से अभिव्यक्त हुए हैं भाव...
सादर बधाई....
बहुत सुन्दर वंदना जी.......आंसूओ की कलम.....आप भी कमाल हो क्या बिम्ब प्रस्तुत किया है...........फुर्सत में हमारे ब्लॉग पर भी आयें (अब तो आपको बुलाना पड़ता है )
जवाब देंहटाएंदर्द तो गाँठ बनकर रह जाता है।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना ।
जवाब देंहटाएंभावों को बहुत अच्छे तरह से व्यक्त किया है आपने ।
प्रस्तुत कहानी पर अपनी महत्त्वपूर्ण प्रतिक्रिया से अवगत कराएँ ।
भावना
जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंप्रस्तुत कहानी पर अपनी महत्त्वपूर्ण प्रतिक्रिया से अवगत कराएँ ।
भावना
बहुत बढ़िया कविता...
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा ,,, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसही कहा है दर्द इतनी आसानी से कहाँ पिघलता है.
जवाब देंहटाएंदर्द रोज कहां पिघलता है ... वाह ...बहुत खूब लिखा है आपने ।
जवाब देंहटाएंजब आंसू की कलम बनती है
जवाब देंहटाएंतो न मिलती है स्याही...
और न लिखने को पन्ने ही मिलते हैं !
बस ज़ज्बात दिल से निकलते है
और दिल पर ही लिखे जाते हैं....!!
जब बाहर प्रेम न मिले,तो अपने पर भी विचार करना चाहिए।
जवाब देंहटाएंbhaut hi acchi marmik rachna...
जवाब देंहटाएंदर्द रोज कहाँ पिघलता है
जवाब देंहटाएंदर्द की पपडियों मे भी तो ज़ख्म पलते है
बहुत दर्द है .. इन पंक्तियों में
bahut sundar dil ko chune vaali kavita hai .
जवाब देंहटाएंदर्द भरी रचना भी आप बढ़िया लिख लेती हैं ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर ।
Dard se bhari ek behtreen rachna...
जवाब देंहटाएंWahhhhhhhh, Vandna ji kya baat hai
जवाब देंहटाएंaansoo ki kalam....kya soch hai.....lajabab.
जवाब देंहटाएंदर्द कहाँ रोज पिघलता है...!!! वाह...;
जवाब देंहटाएंदर्द रोज कहाँ पिघलता है
जवाब देंहटाएंदर्द की पपडियों मे भी तो ज़ख्म पलते है
दिल को छू लेने वाली रचना आभार
bhaut hi marmik aur bhaavpurn rachna....
जवाब देंहटाएंBehtreen Kavita hai rachi hai Vandana ji.... Abhar
जवाब देंहटाएंयादो से भरी बेहतरीन दर्द भरी सुंदर रचना.बधाई
जवाब देंहटाएंमेरे नए पोस्ट पर आइये आपका इन्तजार है,...
बहुत गहन दर्द है जो इस रचना में अभिव्यक्त हुआ है।
जवाब देंहटाएंआँसू की स्याही से तेरी ही तस्वीर बनाई है
जवाब देंहटाएंकैसे सहूँ वियोग तेरा यह तो लंबी जुदाई है
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंबधाई ||
dcgpthravikar.blogspot.com
बहुत सुन्दर रचना है...
जवाब देंहटाएंVery Nice
जवाब देंहटाएंSach hai, dard roz kahaan pighalta hai
par fir bhi hmesha hamare sath rehta hai
:(