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सोमवार, 17 अक्टूबर 2011

एक खोज , एक चाहत और एक सच्……………उफ़ !









एक खोज , एक चाहत और एक सच्……………उफ़ ! 
बुद्धत्व में पूर्णत्व को खोजता एक सच
पर उस चाहत का क्या करूँ 
जो बुद्धत्व भी तुम में ही पाना चाहती है
हाँ ...........तुम नहीं होकर भी यहीं कहीं हो
हाँ ...........मेरे अहसासों में
मेरे ख्यालों में
मेरे गीतों में
मेरी धड़कन में
फिर भी कहीं नहीं हो
वर्षों गुजर गए
तुम्हारा स्पंदन मुझ तक आते
मेरी धमनियों में बहते
मधुर झंकार करते
मगर फिर भी कहीं कुछ अधूरा था
कुछ छुटा हुआ 
कहीं कुछ ठहरा हुआ
एक अनाम सा नाम
एक मीठी सी  टीस
एक महकती सी  खुशबू
तुम्हारे होने की .........या ना होने की
मगर था और है सब आस पास ही
फिर भी एक दूरी
एक अनजानापन.......जिसे जानता हूँ मैं
एक उद्घोष मन्त्रों का
एक उद्घोष तुम्हारी अनसुनी आवाज़ का
कभी फर्क ही नहीं दिखा दोनों में
यूँ लगा जैसे तुम मुझे 
गुनगुना रही हो 
तुमसे कभी अन्जान रहा ही नहीं
तुम्हें जानता हूँ ........ये भी कैसे कहूं
जब तक कि मेरी चाहत को पंख ना मिलें
हाँ .........वो ही .........जब तुम हो
और बुद्धत्व तुम में ही समा जाये
या कहो मुझे बुद्ध तुम में ही मिल जाये
और जीवन संपूर्ण हो जाए
कहो आओगी ना
क़यामत के दिन मुझे पूर्ण करने 
बुद्धत्व स्थापित करने
मेरी अनदेखी कल्पना .........मेरी ऋतुपर्णा!


दोस्तों 
आज की इस रचना के जन्म का श्रेय श्री समीर लाल जी की पोस्ट को जाता है . जैसे ही उनकी पोस्ट पढ़ी तो ये कुछ ख्याल वहां उतर आये और उनकी आज्ञा से ही उनके दिए नाम का प्रयोग किया है क्यूंकि उनकी भी यही हार्दिक इच्छा थी कि वो ही नाम प्रयोग किया जाये वर्ना मैंने नाम बदल दिया था इसके लिए मैं समीर जी की हार्दिक आभारी हूँ.


40 टिप्‍पणियां:

  1. कयामत तक किसी का इंतज़ार बुद्ध हो जाना ही है !
    रचनाएँ वही सार्थक होती है जो दूसरों को सोचने और कहने पर विवश कर दें !

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  2. खुशबू तुम्हारे होने की .........
    या ना होने की मगर था और है सब आस पास ही फिर भी एक दूरी एक अनजानापन.......
    जिसे जानता हूँ मैं एक उद्घोष मन्त्रों का
    एक उद्घोष तुम्हारी अनसुनी आवाज़ का
    कभी फर्क ही नहीं दिखा दोनों में...
    एक चाहत और एक सच...बुद्धत्व में पूर्णत्व को खोजता एक सच...
    अद्भुत...

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  3. अनलिखी कहानी के भावों को बखूबी उतारा है अपने शब्दों में ... सुन्दर रचना

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  4. बुद्धत्व को पाना एक सुखद अनुभूति ,और सच है की बरसों और कभी-कभी पूरा जीवन बीत जाता है इंसान को महसूस करने में...आपकी रचना में जो दृश्य झलता है वो कम महत्वपूर्ण नहीं है ,अगर इतना ही मिल जाये तो जीवन सफल हो जाये...ये सिर्फ शब्द नहीं हैं...इन शब्दों में जो यथार्थ है वो महसूस हो रहा है मुझे ....बधाई सुन्दर रचना के लिए ..

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  5. बुद्धत्व को पाना एक सुखद अनुभूति ,और सच है की बरसों और कभी-कभी पूरा जीवन बीत जाता है इंसान को महसूस करने में...आपकी रचना में जो दृश्य झलता है वो कम महत्वपूर्ण नहीं है ,अगर इतना ही मिल जाये तो जीवन सफल हो जाये...ये सिर्फ शब्द नहीं हैं...इन शब्दों में जो यथार्थ है वो महसूस हो रहा है मुझे ....बधाई सुन्दर रचना के लिए

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  6. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  7. बुद्धत्व को पाना एक सुखद अनुभूति ,और सच है की बरसों और कभी-कभी पूरा जीवन बीत जाता है इंसान को महसूस करने में...आपकी रचना में जो दृश्य झलता है वो कम महत्वपूर्ण नहीं है ,अगर इतना ही मिल जाये तो जीवन सफल हो जाये...ये सिर्फ शब्द नहीं हैं...इन शब्दों में जो यथार्थ है वो महसूस हो रहा है मुझे ....बधाई सुन्दर रचना के लिए .

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  8. karwa chouth par itni achchi kavita likhne ke baad .....aaj fir itna kuch .....wah....maza aa gaya.

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  9. ... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।

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  10. जरूरी कार्यो के कारण करीब 15 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
    आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,

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  11. एक गंभीर सी कविता... उलझी हुई सी भी..... यही उलझन कवि/कवियत्री को स्थापित करती है साहित्य समाज में....

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  12. जब तुम हो और बुद्धत्व तुम में ही समा जाये या कहो मुझे बुद्ध तुम में ही मिल जाये और जीवन संपूर्ण हो जाए कहो आओगी ना क़यामत के दिन मुझे पूर्ण करने बुद्धत्व स्थापित करने मेरी अनदेखी कल्पना---

    सुन्दर प्रस्तुति |
    बधाई स्वीकारें ||

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  13. बहुत ही शानदार कविता ...
    धन्यवाद् वंदना जी ,
    धन्यवाद् समीर जी |

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  14. सुन्दर भावों का खूबसूरत चित्रण...

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  15. चेतना के तल को छूती रचना ..बहुत सुन्दर.

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  16. क्या बात है..अलग तरह की कविता.आभार आपका और समीर जी का भी .

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  17. अनकहे सत्यों को उजागर कर दिया अपने इस रचना के माध्यम से ....आपका आभार

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  18. अनलिखी कहानी की नायिका के इर्द गिर्द सुन्दर बुनावाट... सुगढ़ रचना...
    सादर बधाई...

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  19. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार के चर्चा मंच की जी रही है!
    यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।

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  20. KAVITA KHATM KARTE HEE MUNH SE
    NIKLAA - WAH , KYAA BAAT HAI !
    ISE KAHTE HAIN UTTAM AUR MARMSPARSHE BHAVABHIVYAKTI .

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  21. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण पोस्ट|

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  22. बहुत सुंदर और गहरे भाव......वाणी जी कि बात से सहमत हूँ कयामत तक किसी का इंतज़ार बुद्ध हो जाना ही है।

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  23. मेरे अनुमान से बुधत्व का अर्थ है समत्व की ओर,समता की ओर अर्थात अनुकूल-प्रतिकूल,हानि-लाभ,सुख-दुख मेँ अप्रभावित(सम) रहना और इस भाव को अच्छा दर्शाया है आपने, भावपूर्ण,अर्थपूर्ण और बुद्धिमत्वपूर्ण रचना,बधाईं!

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  24. .जब तुम हो और बुद्धत्व तुम में ही समा जाये या कहो मुझे बुद्ध तुम में ही मिल जाये और जीवन संपूर्ण हो जाए कहो आओगी ना क़यामत के दिन मुझे पूर्ण करने बुद्धत्व स्थापित करने मेरी अनदेखी कल्पना .........मेरी ऋतुपर्णा!

    ....एक गहन चिंतन और उसकी बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति. उत्कृष्ट प्रस्तुति..

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  25. बुद्ध होना आसान नहीं ... पूर्णतः का दूसरा नाम ही तो बुद्ध है ...

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  26. प्यार की परिणती की खोज भी तो बुध्दत्व की ही खोज हुई ।
    एक अलग सी कविता । सुंदर ।

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  27. ऋतुपर्णा से कई फीलिंग्स सहसा उभर आती हैं:)
    श्रृंगारिक और आध्यात्म से परिपूरित

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  28. बेहद सुंदर भावपूर्ण रचना ...बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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  29. खुशबू तुम्हारे होने की .........
    या ना होने की मगर था और है सब आस पास ही.
    बहुत ही बढि़या.

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  30. ओह! अदभुत.
    शानदार प्रस्तुति के लिए आपको बधाई,वंदना जी.
    समीर जी का भी बहुत बहुत आभार.

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  31. बहुत सुंदर और गहरे भाव...
    बधाई सुन्दर रचना के लिए...!!

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