चाहती थी प्रीत बंजारन
के पांव में बिछुए पहनाना
मोहब्बत के नगों से जड़कर
बनाना चाहती थी
एक नयी इबारत
एक नयी उम्मीद
एक नया अहसास
मोहब्बत के लिबास का
पर मोहब्बत ने कब
लिबास पहना है
कब नग बन
किसी अहसास में उतरी है
के पांव में बिछुए पहनाना
मोहब्बत के नगों से जड़कर
बनाना चाहती थी
एक नयी इबारत
एक नयी उम्मीद
एक नया अहसास
मोहब्बत के लिबास का
पर मोहब्बत ने कब
लिबास पहना है
कब नग बन
किसी अहसास में उतरी है
मोहब्बत न तो कभी
बेपर्दा हुयी है
और न ही कभी
लिबास में ढकी है
मोहब्बत ने तो
हर युग में
हर काल में
एक नयी इबारत गढ़ी है
और हर रूह को छूती
हवा सी बही है
और बंजारे कब कहीं
और बंजारे कब कहीं
ठहरे हैं
फिर प्रीत बंजारन को
कैसे कोई छाँव मिलती
जो किसी नगीने सी
किसी जेवर में जड़ी जाती
शायद तभी
मोहब्बत जडाऊ नहीं होती .........
मोहब्बत जडाऊ नहीं होती .........
बड़ा सच।
जवाब देंहटाएंबंजारों का जो जीवन है,अगर आम आदमी उसे मानसिक रूप से ही स्वीकार कर ले,तो इस लोक और उस लोक- दोनों के बीच मुहब्बत की कड़ी जुड़ सकती है।
जवाब देंहटाएंसही, सुन्दर...
जवाब देंहटाएंदिल को छू लेने वाली सुंदर कविता. आभार. दशहरा बहुत-बहुत मुबारक .
जवाब देंहटाएंमोहब्बत ने तो हर युग में
जवाब देंहटाएंहर काल में
एक नयी इबारत गढ़ी है
और हर रूह को छूती
हवा सी बही है...
वाह! सुन्दर रचना....
विजयादशमी की सादर बधाइयां....
बंजारे कब कहीं ठहरे हैं --सही कहा ।
जवाब देंहटाएंदशहरे की शुभकामनायें ।
बहुत सुन्दर..हर पंक्ति ख़ूबसूरत..
जवाब देंहटाएंविजयादशमी पर आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं।
शायद तभी
जवाब देंहटाएंमोहब्बत जडाऊ नहीं होती ...
विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं...
सुन्दर सत्य,
मन को छू गई रचना..
हमेशा का बंजारा है मन जो कहीं टिकता नहीं ,
जवाब देंहटाएंआपकी रचना एकदम खरी है !
अतिसुन्दर।विजयादशमी पर आपको सपरिवार शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंप्यार को प्यार ही रहने दो......
जवाब देंहटाएंUMDA RACHNA KE LIYE AAPKO BADHAAEE
जवाब देंहटाएंAUR SHUBH KAMNA
behad shandaar rachna..aapko hardik badhayee..vijay dashmi ki dher sari shubhkamnaon ke sath
जवाब देंहटाएंप्यार को प्यार ही रहने दो तो बेहतर है .....!
जवाब देंहटाएंविजयादशमी पर आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंबड़ा ही नूतन प्रयोग किया है आपने इस कविता में।
जवाब देंहटाएंविजयदशमी की शुभकामनाएं।
बेहतरीन काव्य ,विजय दशमी की शुभकामनाये
जवाब देंहटाएंमोहब्बत जडाऊ नहीं होती...
जवाब देंहटाएंवह खुद ही चमकती है...
किसी गहने की ज़रुरत नहीं होती....!!
खूबसूरत रचना ...!!
बहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति । धन्यवाद .
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिखा है आपने! लाजवाब प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंआपको एवं आपके परिवार को दशहरे की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !
सार्थक बहुत खूब बधाई हो आपको वंदना जी
जवाब देंहटाएंआप सभी को दीपोत्सव(दीपावली) की अग्रिम शुभकामनाएं....
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उत्कृष्ट रचना है
जवाब देंहटाएंwakai mohabbat jadau nahi hoti..aapki is behtarin kriti ko naman aaur iske srijankarta ko dher sari badhayiyan,,sadar pranam ke sath
जवाब देंहटाएं'और बंजारे कब कहीं ठहरे हैं '
जवाब देंहटाएं............सुन्दर,भावपूर्ण प्रस्तुति
फिर प्रीत बंजारन को कैसे छाँव मिलती , मुहब्बत जो जडाऊ नहीं होती ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर !
बहुत सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंबहुत खूब शानदार लगी पोस्ट|
जवाब देंहटाएंमोहब्बत न तो कभी बेपर्दा हुयी है
जवाब देंहटाएंऔर न ही कभी लिबास में ढकी है
बहुत सुंदर ! आकर अच्छा लगा !
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किसे जलाये - रावण को या राम को ???
सर्वप्रथम विजया दशमी की हार्दिक शुभकामनायें…भावपूर्ण प्रस्तुति के लिये बहुत बहुत बधाई……
जवाब देंहटाएंPyar aatma ki parchhai hai
जवाब देंहटाएंIshq ishwar ki ibadat
aur Mohabbat zindagi ka maksad....शायद यह लोग समझ जाएँ तो शायद पूरी दुनिया में सिर्फ प्यार ही प्यार हो तब कहा जासकता है की हर दिल रूपी आभूषण में मोहब्बत जड़ाऊ हो सकती है :)
mohbbat jadau nahin hoti.....wah,bahut achchi hai apki soch.
जवाब देंहटाएंbahut khoobsurat ahsas....aabhar
जवाब देंहटाएंचुभता सा सच ... आह...
जवाब देंहटाएंशायद तभी
जवाब देंहटाएंमोहब्बत जडाऊ नहीं होती ...
बहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति.
मोहब्बत ने एक नई इबारत गढ़ी है...
जवाब देंहटाएंकविता के भाव बहुत अच्छे लगे।
सुन्दर अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंसुन्दर बिम्ब के साथ उत्कृष्ट कविता।
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