कहीं कोई हलचल नहीं
नीरव निस्तब्ध अंतर्मन
निर्जन वन सा मन आँगन
कोई शब्द संचयन नहीं
कोई नव सृजन नहीं
सब ओर सिर्फ एक
मरघट की ख़ामोशी
कहीं कोई दूर
सियार भी नहीं बोल रहा
जो वातावरण का
सन्नाटा कुछ तो घटे
कब्रिस्तान की ख़ामोशी
चिताओं की जलन
और दूर दूर तक फैला
भयावह घटाटोप अँधेरा
कोई आकृति नहीं
कोई आकार नहीं
सिर्फ एक उमस
जिसमे घिरा अंतर्मन
कहीं ये मन की मौत का कोई संकेत तो नहीं ?
gahare dird kaa isharaa deti kavita....
जवाब देंहटाएंजीवन एक मुसाफिरखाना
जवाब देंहटाएंमौत नहीं मन की होती है।
मन है एक अनन्त मुसाफिर,
मौत मगर तन की होती है।
नहीं वंदना जी , मन इतनी आसानी से नहीं मरता , ये तो एक डिटैचमेंट होता है बाहरी जगत से अंतर्मन का ...कभी कभी इसी हालत में सब कुछ बड़ा साफ़ साफ़ पढ़ पाते हैं ..
जवाब देंहटाएंगहन भावों का समावेश ...बेहतरीन ।
जवाब देंहटाएंवंदना जी... नि:शब्द कर दिया
जवाब देंहटाएंबहुत दर्द है इन पंक्तियों में... लेकिन मन को मजबूत रखना भी जरुरी है इंसान के लिए कहते हैं न मन के हारे हार है मन के जीते जीत...
जवाब देंहटाएंजब मैं फुर्सत में होता हूँ , पढ़ता हूँ और तहेदिल से इन भावनाओं का शुक्रगुज़ार होता हूँ ....
जवाब देंहटाएंहे...ये क्या हो गया है आपको...
जवाब देंहटाएंगहरी रात के बाद ही दिन का उजाला आता है।
जवाब देंहटाएंशारदा जी की बात से सहमत हूँ, वंदना जी मन इतनी अससनी से नहीं मारता हाँ मगर कभी यह सन्नाटा ज़रूर महसूस हुआ करता है, जीवन में जैसे सब रुक सा गया हो...
जवाब देंहटाएंगहन भावों का समावेश| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंमन जब खुद से नाराज होता है
जवाब देंहटाएंतभी निःशब्द परवाज होता है
ये उसकी मौत नही होती
गहरे अर्थ को समेटती रचना।
अत्यंत गहन और नायाब रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
गहन भावों का समावेश..मार्मिक..
जवाब देंहटाएंरचना का सन्नाटा अंतस का मौन बन जाता है..निशब्द
जवाब देंहटाएंआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 22 -09 - 2011 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं...नयी पुरानी हलचल में ...हर किसी के लिए ही दुआ मैं करूँ
बहुत ही गहरी बात कही है.
जवाब देंहटाएंप्रवीण जी की यह बात अच्छी लगी.
जवाब देंहटाएंगहरी रात के बाद ही दिन का उजाला आता है।
कृष्ण लीला के अनुपम भक्ति रस से
ऐसा अवसादपूर्ण वीभत्स रस ?
वंदना जी,आप मुझे भक्ति रस में सराबोर ही
बहुत अच्छी लगती हैं.
ji nahi ye man ki maut ka sanket bilkul nahi hai....ye to toofan aane se pahle ki shanti hai. bas intzar hai tufani dhardar shamsheer jaisi lekhni ke shabd pravaah ka.
जवाब देंहटाएंek ghan udasi h...
जवाब देंहटाएंek ghan udasi h...
जवाब देंहटाएंek ghan udasi h...
जवाब देंहटाएंजीवन में उजाला और अँधियारा तो आते जाते रहते है. इसी तरह मन पर नियंत्रण भी आवश्यक है. सुंदर भावप्रधान रचना के लिये बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत ही निराशावादी होती जा रही हैं आप।
जवाब देंहटाएंमन में शक्ति और संकल्प का संचयन कीजिए। कहीं पढ़ा था, आज कल आप आध्यात्मिक पोस्ट लिख रही हैं। फिर ये विकार क्यों?
baDhiyaa!!
जवाब देंहटाएंदृश्य नयनाभिराम हो मन को बोझिल कर गए...
जवाब देंहटाएंगहन भावों का समावेश ...बेहतरीन
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हृदयस्पर्शी भावाभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंसुन्दर.........मन की मौत के बात ही आत्मा का जन्म होता है ...........बहुत ही सुन्दर..........वंदना जी आजकल कुछ नाराज़गी है क्या हमसे हमारे ब्लॉग पर भी आना नहीं होता?
जवाब देंहटाएंबहुत गहरी अभिव्यक्ति ..
जवाब देंहटाएंसन्नाटे और खामोशी के मंजर खिंच गये.यही शब्दों का जादू है.
जवाब देंहटाएंयह मन की मौत का संकेत तो नहीं
जवाब देंहटाएंबस मन के थक जाने का संकेत है
मन को इन्तजार है कुछ ऐसे लम्हों का
जो उसकी जिन्दगी वापस कर दें....
गहन भाव....सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंmarmik rachna......
जवाब देंहटाएंसाधु-साधु
जवाब देंहटाएंइस कविता में विरोधाभास है। अंतर्मन जब नीरव और शब्द-संचयन से मुक्त हो,तभी वह घटता है जिसके बारे में कबीर कहते हैं
जवाब देंहटाएं"बिन बाजा झनकार करै कोई,समुझि पड़ै जब ध्यान धरै...रस गगन गुफा में अजर झरै"
यह तो अमरता की ओर प्रस्थान की स्थिति है। मौत कैसी?
bahut achcha likhi hain.......
जवाब देंहटाएंगहरे अर्थ को समेटती रचना .......
जवाब देंहटाएं