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बुधवार, 21 सितंबर 2011

कहीं ये मन की मौत का कोई संकेत तो नहीं ?

कहीं कोई हलचल नहीं
नीरव निस्तब्ध अंतर्मन
निर्जन वन सा मन आँगन
कोई शब्द संचयन नहीं
कोई नव सृजन नहीं
सब ओर सिर्फ एक 
मरघट की ख़ामोशी
कहीं कोई दूर 
सियार भी नहीं बोल रहा
जो वातावरण का 
सन्नाटा कुछ तो घटे 
कब्रिस्तान की ख़ामोशी 
चिताओं की जलन
और दूर दूर तक फैला 
भयावह घटाटोप अँधेरा
कोई आकृति नहीं
कोई आकार नहीं
सिर्फ एक उमस
जिसमे घिरा अंतर्मन
कहीं ये मन की मौत का कोई संकेत तो नहीं ?

38 टिप्‍पणियां:

  1. जीवन एक मुसाफिरखाना
    मौत नहीं मन की होती है।
    मन है एक अनन्त मुसाफिर,
    मौत मगर तन की होती है।

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  2. नहीं वंदना जी , मन इतनी आसानी से नहीं मरता , ये तो एक डिटैचमेंट होता है बाहरी जगत से अंतर्मन का ...कभी कभी इसी हालत में सब कुछ बड़ा साफ़ साफ़ पढ़ पाते हैं ..

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  3. गहन भावों का समावेश ...बेहतरीन ।

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  4. वंदना जी... नि:शब्द कर दिया

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  5. बहुत दर्द है इन पंक्तियों में... लेकिन मन को मजबूत रखना भी जरुरी है इंसान के लिए कहते हैं न मन के हारे हार है मन के जीते जीत...

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  6. जब मैं फुर्सत में होता हूँ , पढ़ता हूँ और तहेदिल से इन भावनाओं का शुक्रगुज़ार होता हूँ ....

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  7. गहरी रात के बाद ही दिन का उजाला आता है।

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  8. शारदा जी की बात से सहमत हूँ, वंदना जी मन इतनी अससनी से नहीं मारता हाँ मगर कभी यह सन्नाटा ज़रूर महसूस हुआ करता है, जीवन में जैसे सब रुक सा गया हो...

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  9. गहन भावों का समावेश| धन्यवाद|

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  10. मन जब खुद से नाराज होता है
    तभी निःशब्द परवाज होता है
    ये उसकी मौत नही होती
    गहरे अर्थ को समेटती रचना।

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  11. अत्यंत गहन और नायाब रचना.

    रामराम.

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  12. गहन भावों का समावेश..मार्मिक..

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  13. रचना का सन्नाटा अंतस का मौन बन जाता है..निशब्द

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  14. प्रवीण जी की यह बात अच्छी लगी.

    गहरी रात के बाद ही दिन का उजाला आता है।


    कृष्ण लीला के अनुपम भक्ति रस से
    ऐसा अवसादपूर्ण वीभत्स रस ?

    वंदना जी,आप मुझे भक्ति रस में सराबोर ही
    बहुत अच्छी लगती हैं.

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  15. ji nahi ye man ki maut ka sanket bilkul nahi hai....ye to toofan aane se pahle ki shanti hai. bas intzar hai tufani dhardar shamsheer jaisi lekhni ke shabd pravaah ka.

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  16. जीवन में उजाला और अँधियारा तो आते जाते रहते है. इसी तरह मन पर नियंत्रण भी आवश्यक है. सुंदर भावप्रधान रचना के लिये बधाई.

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  17. बहुत ही निराशावादी होती जा रही हैं आप।
    मन में शक्ति और संकल्प का संचयन कीजिए। कहीं पढ़ा था, आज कल आप आध्यात्मिक पोस्ट लिख रही हैं। फिर ये विकार क्यों?

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  18. दृश्य नयनाभिराम हो मन को बोझिल कर गए...

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  19. गहन भावों का समावेश ...बेहतरीन

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  20. बहुत सुन्दर हृदयस्पर्शी भावाभिव्यक्ति....

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  21. सुन्दर.........मन की मौत के बात ही आत्मा का जन्म होता है ...........बहुत ही सुन्दर..........वंदना जी आजकल कुछ नाराज़गी है क्या हमसे हमारे ब्लॉग पर भी आना नहीं होता?

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  22. सन्नाटे और खामोशी के मंजर खिंच गये.यही शब्दों का जादू है.

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  23. यह मन की मौत का संकेत तो नहीं

    बस मन के थक जाने का संकेत है

    मन को इन्तजार है कुछ ऐसे लम्हों का

    जो उसकी जिन्दगी वापस कर दें....

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  24. इस कविता में विरोधाभास है। अंतर्मन जब नीरव और शब्द-संचयन से मुक्त हो,तभी वह घटता है जिसके बारे में कबीर कहते हैं
    "बिन बाजा झनकार करै कोई,समुझि पड़ै जब ध्यान धरै...रस गगन गुफा में अजर झरै"

    यह तो अमरता की ओर प्रस्थान की स्थिति है। मौत कैसी?

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