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रविवार, 14 अगस्त 2011

जब तुम्हारा नया जन्म होगा……एक अपील देश की जनता के नाम





स्वतंत्रता दिवस है या महज औपचारिकता?
क्या वास्तव मे स्वतंत्रता दिवस है?
क्या वास्तव मे हम स्वतंत्र हैं?
कौन से भ्रम मे जी रहे हैं हम? किसे धोखा दे रहे हैं? शायद खुद को धोखा देने की आदत पड गयी है ।
जिस देश मे बोलने की आज़ादी पर प्रतिबंध लगने लगे, अपने अधिकारों के इस्तेमाल पर अंकुश कसने लगे, तानाशाही का बोलबाला होने लगे, आम जनता की आवाज़ को दबाने की कोशिश की जाने लगे,जनता के मौलिक अधिकारों का हनन होने लगे…………तो कहाँ से वो देश लोकतांत्रिक देश गिना जायेगा…………क्या हम तानाशाही की तरफ़ नही बढ रहे…………क्या फ़र्क रह गया तानाशाही मुल्कों मे और हमारे देश मे जहाँ भ्रष्टतम अधिकारी डंके की चोट पर सीना तान कर आम जनता की आवाज़ को दबाने मे जुटे हों और देश की सरकार भी उसमे शामिल हो …………किस आधार पर कहते हैं कि ये देश लोकतंत्र मे विश्वास रखता है कहाँ है लोकतंत्र जब आम जनता को उसके बोलने या विरोध प्रदर्शन की भी इजाज़त ना दी जाये?
सिर्फ़ लोकतंत्र शब्द याद किया है मगर उसके असली अर्थ को तो नेस्तनाबूद कर दिया है । कैसा शासन है ? फिर कैसी स्वतंत्रता का ढोल पीट रहे हैं हम? क्या यही स्वतंत्रता है और इसी का जश्न हमने मनाना है तो मेरी अपील है इस देश के नागरिकों से कि मत भ्रम मे रहें और कल स्वतंत्रता दिवस पर कोई भी जनता लालकिले पर ना पहुँचे और इस तरह अपना विरोध प्रदर्शन करे………ताकि देश के कर्णधारो को पता चल जाये कि तानाशाही हर युग मे चकनाचूर हुई है………और जनता की एकता और अखंडता का सबूत सरकार को मिल जाये अन्यथा उम्रभर गुलामी की जंजीरो मे जकडे रहेंगे और फिर ये मौका दोबारा कभी मिलेगा भी या नही , नही मालूम।
तो क्यों ना आज हम सब मिलकर अपना विरोध प्रदर्शन इस तरह करें कि सरकार और उनके नुमाइंदों को जनता के तेवर समझ आ जायें और इसका सबसे बेहतर अब एक  आखिरी उपाय यही बचा है कि हम सब कल स्वतंत्रता दिवस पर लालकिले ना जाकर और ना ही किसी समारोह मे शिरकत करके अपना विरोध दर्ज करायें और देश के सच्चे नागरिक होने का फ़र्ज़ निभायें ताकि आने वाला कल हम पर शर्मिंदा ना हो।





सभ्यता संस्कार और संस्कृति का मानी
तीन रंगो मे समाया देश है मेरा
अब इसके रक्षक बन जाओ
मत फिर से तुम भरमाओ
एकजुट फिर हो जाओ
बलिदान को तैयार हो जाओ
आज देश की पुकार यही है
एक बार फिर से दोहराओ
तुम मुझे खून दो मै तुम्हे आज़ादी दूँगा
और एकता का परचम लहराओ
खुद मे भगतसिंह , सुखदेव , राजगुरु
को एक बार फिर जिला देना
वतन का कुछ कर्ज़ चुका लेना
गांधी का मान रख लेना
अपनी शक्ति का परिचय देना
कल गुलाम थे गैरो के
इस बार अपनो की जंजीरें तोड देना
भारत को एक बार फिर
आज़ाद कर देना
ये आज़ादी का संकल्प लेना
तब स्वतंत्रता दिवस सफ़ल होगा
जब तुम्हारा नया जन्म होगा
जब तुम्हारा नया जन्म होगा……………

39 टिप्‍पणियां:

  1. .बढ़िया मुद्दे को उठाया है आपने..बहुत सुन्दर... कविता अच्छी है...

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  2. कविता बहुत सुंदर है.

    स्वतंत्रता दिवस और रक्षाबंधन की आपको बहुत बहुत शुभकामनायें.

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  3. Bahut hi sundr vichar, ek nazar idhar bhi.

    http://taarkeshwargiri.blogspot.com/2011/08/blog-post_14.html

    अंग्रेजो के ज़माने का पुलिसिया ढांचा आखिर कैसे बदल सकता हैं, सरकार तानाशाह जो ठहरी. नागरिक सुरक्षा का नारा देने वाली दिल्ली पुलिस अब नागरिको के मौलिक अधिकारों का दमन करने से भी नहीं चूक रही हैं.

    भारत कि केंद्रीय सरकार ईस हद तक भ्रस्टाचार में लिप्त हो चुकी हैं कि उसका बाहर निकलना अब तय होगया हैं. लेकिन खिसियानी बिल्ली खम्बा तो नोचेगी ही. दिल्ली पुलिस ये भूल जाती हैं कि उसका काम जनता कि सेवा करना और उसके अधिकारों का पालन करवाना हैं ना कि नेतावो और मंत्रियों कि चापलूसी करना.

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  4. आपका सवाल अच्छा है लेकिन सब कुछ हमें तैयार नहीं मिलना था, अपने हिस्से का कुछ काम हमें भी करना था और वह हमने किया नहीं है।
    हमारी समस्याओं के पीछे हमारी सामूहिक सोच ज़िम्मेदार है।

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  5. लोकतंत्र वोटिंग मशीन के कबाड़ में बन्द है।

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  6. सार्थक और सशक्त लेखन ... आज बदलाव की ज़रूरत है .. देश अंग्रेज़ी ढाँचे पर चल रहा है और नेता अँगरेज़ शासक की तरह .. सटीक आह्वान

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  7. यह पते की बात कही आपने मगर क्या ऐसा हो पायेगा ?

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  8. वंदना जी तानाशाही ज्यादा दिन नहीं चला करती है एक दिन उनको जरुर बदलना पड़ेगा ...

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  9. बहुत सुन्दर ....सही मुद्दे पर सटीक रचना....

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  10. कविता बहुत सुंदर है.

    स्वतंत्रता दिवस की आपको शुभकामनायें.

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  11. बहुत ही सामयिक और सटीक आलेख, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  12. Vandana,jis kisee bhee dhang se hain,swatantr to hain ham....warna to dil kee bhada bhee na nikal pate!
    Rachana behad sundar hai!
    15 August kee mangal kamnayen!

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  13. हर वर्ष गौरव की कुछ बात रहे देश के लिये।

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  14. कल हम नहीं जाएंगे किसी समारोह में। मन दुखी है कि कैसे कुटिल नेताओं द्वारा हम संचालित हो रहे हैं?

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  15. बहुत सुन्दर और सार्थक सोच...बहुत बढ़िया प्रस्तुति..आभार

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  16. शुक्रिया वंदना जी आपके इन काव्यात्मक मौजू उद्गारों पर . .
    साल गिरह मुबारक यौमे आज़ादी की ।
    http://veerubhai1947.blogspot.com/

    रविवार, १४ अगस्त २०११
    संविधान जिन्होनें पढ़ा है .....

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  17. सवाल हमारा भी यही है... "क्या ऐसा हो पायेगा?"

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  18. आस्था और विश्वास से ओतप्रोत सुन्दर रचना !

    स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.

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  19. आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 15-08-2011 को चर्चा मंच http://charchamanch.blogspot.com/ पर भी होगी। सूचनार्थ

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  20. समसामयिक भाव लिए बेहतरीन प्रस्तुति..... सुंदर आव्हान

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  21. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    स्वतन्त्रता की 65वीं वर्षगाँठ पर बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

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  22. आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा दिनांक 15-08-2011 को चर्चा मंच http://charchamanch.blogspot.com/ पर भी होगी। सूचनार्थ

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  23. वर्तमान हालातों को देखते हुए आम आदमी के मन में आने वाला एक शाश्वत प्रश्न ...उत्तर हम खुद तलाश रहे हैं ...

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  24. सुन्दर भावाभिव्यक्ति .
    स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.

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  25. सुन्दर अभिव्यक्ति के साथ भावपूर्ण कविता लिखा है आपने! शानदार प्रस्तुती!
    आपको एवं आपके परिवार को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com/
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

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  26. ये आज़ादी का संकल्प लेना
    तब स्वतंत्रता दिवस सफ़ल होगा
    जब तुम्हारा नया जन्म होगा
    जब तुम्हारा नया जन्म होगा…
    waah kya baat kahi hai ,sundar .swatantrata divas ki badhai .

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  27. प्रेरक और सार्थक प्रस्तुति. आभार. स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें...
    सादर,
    डोरोथी.

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  28. सार्थक चिंतन....
    राष्ट्र पर्व की सादर बधाइयां....

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  29. वाकई एक और लड़ाई की जरूरत आन पड़ी हैं.

    एक छोटी सी शुरुआत चाहिए.
    कुछ बुँदे तो बरसे, गर बरसात चाहिए.
    - - http://goo.gl/iJEI5

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  30. प्रत्‍येक शब्‍द भावमय करता हुआ ..बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  31. कल गुलाम थे गैरो के
    इस बार अपनो की जंजीरें तोड देना
    भारत को एक बार फिर
    आज़ाद कर देना
    ये आज़ादी का संकल्प लेना
    सटीक आह्वान...

    जवाब देंहटाएं
  32. ६४ साल बाद दुबारा आज़ादी की जरूरत महसूस हो रही है देश को ... देश के ही नाओं से ... दुर्भाग्य पूर्ण है कितना ...

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