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शनिवार, 11 जून 2011

मैंने कहा था ना

मैंने कहा था ना
जो नकाब डला है
डाले रहने दो
मत करो बेनकाब
एक बार यदि
बेनकाब हो जाये
फिर कितनी सदायें भेजो
कितने ही सितारे
आसमा में टांको
कितना भी अब
दुल्हन को सजाओ
कोई भी चूनर उढाओ
एक बार बेनकाब होने पर
अक्स सच बोल देता है
और फिर ये तो
एक रिश्ता था
तुम्हारा और मेरा
अन्जाना रिश्ता
कहा था ना
मिलने की ख्वाहिश को
ज़मींदोज़ कर दो
मगर तुम नहीं माने
और देखा
जब से मिले हो
सारे भ्रम टूट गए
और तुम जो मुझमे
अपना अक्स देखते थे
वो आईने भी टूट गया
जानती हूँ तभी
तुमने अब मेरी
मिटटी पर अपने
निशाँ छोड़ने बंद कर दिए
जानती हूँ तभी तुमने
अपने आसमाँ अलग बना लिए
काश ! तुमने पर्दा ना हटाया होता
तो चाँद घूंघट में ही रहा होता
यूँ बेबसी की आग में ना जल रहा होता
सच की आँच में झुलसा ना होता
और तेरा पैमाना ना छलका होता
जीने के लिए किवाड़ की ओट ही काफी होती है

38 टिप्‍पणियां:

  1. और तुम जो मुझमे
    अपना अक्स देखते थे
    वो आईने भी टूट गया
    जानती हूँ तभी
    तुमने अब मेरी
    मिटटी पर अपने
    निशाँ छोड़ने बंद कर दिए

    मार्मिक अभिव्यक्ति ... प्रवाहमयी रचना

    जवाब देंहटाएं
  2. हर बार एक नया विचार कौधता हैं शब्द आ जातें हैं और एक सृष्टि हो जाती है,
    (कितने ही सितारे
    आसमा में टांको
    कितना भी अब
    दुल्हन को सजाओ
    कोई भी चूनर उढाओ
    एक बार बेनकाब होने पर
    अक्स सच बोल देता है)
    वन्दना जी के ये शब्द दिल को कहीं गहराई तक लग से जातें हैं एक नश्तर की तरह.... और काव्य की पूर्ण सौंदर्य और पूर्णता की परिणति होती है.

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  3. सच है कभी कभी परदा रहना ही अच्छा होता है ... सच सामने आ जाए तो उत्सुकता ख़त्म हो जाती है ....

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  4. मैंने कहा था ना
    जो नकाब डला है
    डाले रहने दो
    मत करो बेनकाब
    एक बार यदि
    बेनकाब हो जाये
    ..आपकी इस खूबी को सलाम है शब्दों में गहराई उंडेल देती है आप .....बहुत खूब

    जवाब देंहटाएं
  5. मैंने कहा था ना
    जो नकाब डला है
    डाले रहने दो
    मत करो बेनकाब
    एक बार यदि
    बेनकाब हो जाये
    ..आपकी इस खूबी को सलाम है शब्दों में गहराई उंडेल देती है आप .....बहुत खूब

    जवाब देंहटाएं
  6. काश ! तुमने पर्दा ना हटाया होता
    तो चाँद घूंघट में ही रहा होता

    ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं.
    ------------------------------------------------
    आपका स्वागत है "नयी पुरानी हलचल" पर...यहाँ आपके ब्लॉग की किसी पोस्ट की कल रविवार को होगी हलचल...
    नयी-पुरानी हलचल

    धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  7. कहा था ना
    मिलने की ख्वाहिश को
    ज़मींदोज़ कर दो
    मगर तुम नहीं माने
    और देखा
    जब से मिले हो
    सारे भ्रम टूट गए
    और तुम जो मुझमे
    अपना अक्स देखते थे
    वो आईने भी टूट गया....

    बहुत गहरे भाव.... मार्मिक अभिव्यक्ति ... सुन्दर रचना........

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  8. खूबसूरत कविता.... कविता में भावों का प्रवाह नदी सा है...

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  9. और तुम जो मुझमे
    अपना अक्स देखते थे
    वो आईने भी टूट गया
    जानती हूँ तभी
    तुमने अब मेरी
    मिटटी पर अपने
    निशाँ छोड़ने बंद कर दिए...


    ohh...!!!!!



    Saleem
    9838659380

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  10. vandna ji bahut accha
    shabdoon ko badi acchai se sajayahai aapne

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  11. जानती हूँ तभी
    तुमने अब मेरी
    मिटटी पर अपने
    निशाँ छोड़ने बंद कर दिए
    जानती हूँ तभी तुमने
    अपने आसमाँ अलग बना लिए

    क्या बात .....बहुत ही सुंदर सटीक भाव

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  12. बहुत खूब....

    नकाब के हटते ही न जाने

    कौन-कौन से राज़ सामने आ जाते हैं...

    बेहतर होता कि नकाब ही रहने देते..

    उसके पीछे कुछ राज़ छुपे ही रहने देते..!!

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  13. बहुत गहरी बात लिखी है ...!!कभी कभी भुलावे में रहना सुखमय भी है ...!!भरम टूटने पर असहाय सा महसूस होता है ....!!
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ...!!

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  14. एक बार बेनकाब होने पर
    अक्स सच बोल देता है
    और फिर ये तो
    एक रिश्ता था
    तुम्हारा और मेरा
    अन्जाना रिश्ता

    बहुत सुंदर !!
    कोमल भावनाओं की कविता !!

    जवाब देंहटाएं
  15. ख्वाव और हकीकत के बीच झुलाती मानवीय सम्वेदनाओं का सुंदर चित्रण किया गया है इस कविता के माध्यम से. खूबसूरत रचना.

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  16. जीने के लिए किवाड़ की ओट ही काफी होती है...

    सदैव की तरह एक लाज़वाब प्रस्तुति..बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी प्रस्तुति..आभार

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  17. और तुम जो मुझमे
    अपना अक्स देखते थे
    वो आईने भी टूट गया
    जानती हूँ तभी
    तुमने अब मेरी
    मिटटी पर अपने
    निशाँ छोड़ने बंद कर दिए....मन मोह लिया… सुन्दर सार्थक अभिव्यक्ति्…..

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  18. बहुत सुन्दर गहरी भावपूर्ण.. मार्मिक रचना...

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  19. कुछ बातों पर नकाब पड़ा रहना ही अच्छा है

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  20. मैंने कहा था ना
    जो नकाब डला है
    डाले रहने दो
    kitni gahri baat ....wah.

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  21. और तुम जो मुझमे
    अपना अक्स देखते थे
    वो आईने भी टूट गया
    जानती हूँ तभी
    तुमने अब मेरी
    मिटटी पर अपने
    निशाँ छोड़ने बंद कर दिए

    क्या बात है,
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  22. ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना! बधाई!

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  23. बहुत उम्दा.....

    Regards
    Suman
    http://tum-suman.blogspot.com

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  24. मार्मिक अभिव्यक्ति ... सुन्दर रचना........aabhaar

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  25. नूर ही नूर है कहाँ का ज़हूर।
    उठ गया परदा अब रहा क्या है॥
    रहने दे हुस्न का ढका परदा।
    वक़्त-बेवक़्त झाँकता क्या है॥
    .......................यगाना चंगेज़ी


    एक बार बेनकाब होने पर
    अक्स सच बोल देता है
    जब से मिले हो
    सारे भ्रम टूट गए
    और तुम जो मुझमे
    अपना अक्स देखते थे
    वो आईने भी टूट गया
    ................सत्य और मार्मिक कविता

    जवाब देंहटाएं

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