ना जाने कब से एक प्रश्न कुलबुला रहा है कि आज जब भ्रष्टाचार के मुद्दे पर एक लडाई लड़ी गयी तब उसका कुछ हल निकालने की दिशा में कदम उठाने शुरू हुए मगर किसी ने ये नहीं सोचा अब तक कि इतना भ्रष्टाचार फैला कैसे और किसके कार्यकाल में और क्यों? देखा जाये तो भ्रष्टाचार का हमेशा बोलबाला रहा फिर भी पिछले कुछ सालों में भ्रष्टाचार ने अपनी जडें इतनी फैला लीं कि कोई टहनी , कोई शाखा भ्रष्टाचार से मुक्त दिखाई नहीं देती ............जहाँ भी नज़र दौड़ाओ सिर्फ और सिर्फ भ्रष्टाचार की व्यापकता नज़र आती है .........कोई ना कोई घोटाला तैयार है हर दिन ............अब तो लगता है हम गिनती भी भूलने लगेंगे कि कौन से कौन से कामों में भ्रष्टाचार फैला और कौन कौन उसमे शामिल था .............कौन सा ऐसा कार्य रहा जहाँ भ्रष्टाचार का बोलबाला ना रहा हो और वो भी पिछले दस सालों में तो भ्रष्टाचार सीमा से बाहर होता जा रहा है ...........अब तो भारत देश को भ्रष्टाचार का देश कहा जाने लगा है तो ऐसे में ये प्रश्न उठना वाजिब है कि आखिर इसके लिए दोषी कौन है और किसके कार्यकाल में भ्रष्टाचार सबसे ज्यादा फैला ?
क्या नैतिकता की दृष्टि से सरकार को अपना पड़ नहीं छोड़ देना चाहिए ?
सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार एक ही सरकार के कार्यकाल में हुआ है सभी जानते हैं तो ये प्रश्न क्यूँ नहीं उठाया जाता ?
आखिर इसके लिए आन्दोलन क्यों नहीं किया जाता?
शायद इसलिए क्योंकि हमाम में सभी नंगे हैं लेकिन जनता को तो अपनी शक्ति और एकता का परिचय देना चाहिए और एक आह्वान ऐसा भी करना चाहिए .............क्यों नहीं जनता सरकार से जवाब मांगे कि उनके ही कार्यकाल में भ्रष्टाचार आसमान को कैसे छूने लगा ?
क्या सरकार की कोई जवाबदेही नहीं है?
सरकार तो एक मिनट में किसी से भी कुछ भी पूछने को तैयार रहती है यहाँ तक कि अन्ना के अनशन को किसने प्रायोजित किया , कितने पैसे लगे ऐसे सवाल एक पल में सरकार ने उठा दिए मगर क्या जनता फिर उनसे ये सवाल नहीं कर सकती कि आपके कार्यकाल में इतना भ्रष्टाचार कैसे हुआ और अब उन्हें नैतिकता के आधार पर अपने सभी मंत्रिमंडल के साथ त्यागपत्र दे देना चाहिए ?
ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिनके जवाब जनता जरूर जानना चाहेगी ..........क्या होगा इसका जवाब सरकार के पास ?