कभी कभी
उदासी इतनी
गहन होती है
शब्द भी
खामोश हो जाते हैं
या किसी कोने मे
दुबक जाते हैं
इंतज़ार मे
रहते हैं कि
कब उसके
जज़्बातों को
उसके दर्द को
शब्द अपने मे समेटें
मगर उदासी
अपने दामन को
धूप मे नही सुखाती
तार तार होने से
बचाने के लिये
अंधकूप मे ही
कायम रहती है
जहाँ शब्दों को भी
स्थान नही मिलता
कैसे खुद को
वस्त्रहीन करे कोई?
कैसे जज़्बातों की
कालि्ख छुपाये कोई
कैसे झूठ के आवरण
हटाये कोई और
सच से नज़र मिलाये कोई
उदासी इतनी
गहन होती है
शब्द भी
खामोश हो जाते हैं
या किसी कोने मे
दुबक जाते हैं
इंतज़ार मे
रहते हैं कि
कब उसके
जज़्बातों को
उसके दर्द को
शब्द अपने मे समेटें
मगर उदासी
अपने दामन को
धूप मे नही सुखाती
तार तार होने से
बचाने के लिये
अंधकूप मे ही
कायम रहती है
जहाँ शब्दों को भी
स्थान नही मिलता
कैसे खुद को
वस्त्रहीन करे कोई?
कैसे जज़्बातों की
कालि्ख छुपाये कोई
कैसे झूठ के आवरण
हटाये कोई और
सच से नज़र मिलाये कोई
बहुत उम्दा..
जवाब देंहटाएंकैसे खुद को
जवाब देंहटाएंवस्त्रहीन करे कोई?
कैसे जज़्बातों की
कालि्ख छुपाये कोई
कैसे झूठ के आवरण
हटाये कोई और
सच से नज़र मिलाये कोई
क्या बात ...बहुत सटीक भाव हैं....
बहुत सामयिक रचना!
जवाब देंहटाएं--
आज के हालत में तो वस्त्रहीन हो गई है हमारी सभ्यता!
shabdon aur bhawnao ka mel jajbaatee bana rha hai. nirantrta ka abhav thoda khal rhaa hai, kul milakar ek stareeya rachna hai.
जवाब देंहटाएंbhtrin rchnaa vndna ji bdhaai h . akhtar khna akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंगहन भावनाओं से ओत प्रोत अच्छी रचना.
जवाब देंहटाएंस्वयं के सामने तो मन खोलना ही होगा।
जवाब देंहटाएंसच से नजरें नहीं मिला पाने की कोशिश में शब्दों का चुक जाना ...
जवाब देंहटाएंकई बार गुजरते हैं हम लोग ऐसी ही अनुभूतियों से ...
मगर फिर भी शब्द इकठ्ठा हो ही जाते हैं , कोई न कोई जुगाड़ लगा कर , जैसे आपकी ये कविता !
बहुत बढ़िया.
जवाब देंहटाएंसादर
बेहतरीन शब्द रचना ।
जवाब देंहटाएंवंदना जी,
जवाब देंहटाएंबहुत गहराई है.....प्रशंसनीय है ये पोस्ट......खासकर अंतिंम पंक्तियाँ बहुत प्पसंद आयीं |
बहुत गहन विचार ...उदासी भी खुद को छुपाने का असफल प्रयास करती है ....सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति .....
जवाब देंहटाएंकैसे जज़्बातों की
जवाब देंहटाएंकालि्ख छुपाये कोई
कैसे झूठ के आवरण
हटाये कोई और
सच से नज़र मिलाये कोई...
बहुत गहन भाव...बहुत सुन्दर
सचमुच प्रेम और भाव आत्मा के वस्त्र हैं. विम्ब के माध्यम से गहन प्रेम को अभिव्यक्त करती रचना अच्छी लगी...
जवाब देंहटाएंक्या बात है बेहद सटीक ..पर खुद से मिलना भी बहुत जरुरी है.
जवाब देंहटाएंek acchi rachna
जवाब देंहटाएंapne jhooth ko manane wale kam hai
sach hi jitati hai sarvada
sach ki shakti se nirbalon ka saath dijiye ham log ...
gahan bhaavmai rachna.
जवाब देंहटाएंआपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (09.04.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
जवाब देंहटाएंचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
कैसे खुद को
जवाब देंहटाएंवस्त्रहीन करे कोई?
कैसे जज़्बातों की
कालि्ख छुपाये कोई
कैसे झूठ के आवरण
हटाये कोई और
सच से नज़र मिलाये कोई
कविता पढ़ कर उसे महसूस करने का अहसास होता है ,नई उपमाएं भावों की गहराई के स्पर्श का अनुभव कराती हैं !
आभार वंदना जी !
कैसे झूठ के आवरण
जवाब देंहटाएंहटाये कोई और
सच से नज़र मिलाये कोई
सचमुच मुश्किल है ।
सुन्दर रचना ।
sach kaha udasi khud ko dhoop me nahi sukhati.....kaise khud ko vastrheen kare koi???
जवाब देंहटाएंprabhavshali rachna.
Bahut Sundar
जवाब देंहटाएंउदासी की गहनता तो उदास मन अधिक समझ सकता है.क्या मौन में अनन्त शब्द नहीं छिपे होते?
जवाब देंहटाएंwah. bauht achcha likhi hain....
जवाब देंहटाएंAise laga jaise tumne mere antar kee baat kah dee!Lajawab rachana!
जवाब देंहटाएंअंतर्द्वन्दीय अंतर्कथा
जवाब देंहटाएंकैसे खुद को
जवाब देंहटाएंवस्त्रहीन करे कोई?
कैसे जज़्बातों की
कालि्ख छुपाये कोई
कैसे झूठ के आवरण
हटाये कोई और
सच से नज़र मिलाये कोई
झूठ का आवरण हटाने की पुजोर कोशिश करती हुई ....बहुत अच्छी रचना -
shaandar
जवाब देंहटाएंlaghukatha
मन की भावनाओं की बहुत ही सटीक प्रस्तुति ! बहुत सुन्दर रचना ! मेरी बधाई स्वीकार करें !
जवाब देंहटाएंbahut bahut sundar rachna..ek arse baad kisi rachna ne antarman par dastak di...Vandana ji is rachna ke liye bahut bahut badhaai sweekar karen...
जवाब देंहटाएंlaazwaab ,bahut achchhi lagi
जवाब देंहटाएंकैसे खुद को
वस्त्रहीन करे कोई?
कैसे जज़्बातों की
कालि्ख छुपाये कोई
कैसे झूठ के आवरण
हटाये कोई और
सच से नज़र मिलाये कोई
bahut sundar....
जवाब देंहटाएंउदासी पर इतनी गहरी रचना कि पढ़ने के बाद जल्दी बाहर निकलना संभव नहीं हो पाया.
जवाब देंहटाएंबहुत गहन भाव...बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंभ्रष्टाचारियों के मुंह पर तमाचा, जन लोकपाल बिल पास हुआ हमारा.
जवाब देंहटाएंबजा दिया क्रांति बिगुल, दे दी अपनी आहुति अब देश और श्री अन्ना हजारे की जीत पर योगदान करें आज बगैर ध्रूमपान और शराब का सेवन करें ही हर घर में खुशियाँ मनाये, अपने-अपने घर में तेल,घी का दीपक जलाकर या एक मोमबती जलाकर जीत का जश्न मनाये. जो भी व्यक्ति समर्थ हो वो कम से कम 11 व्यक्तिओं को भोजन करवाएं या कुछ व्यक्ति एकत्रित होकर देश की जीत में योगदान करने के उद्देश्य से प्रसाद रूपी अन्न का वितरण करें.
महत्वपूर्ण सूचना:-अब भी समाजसेवी श्री अन्ना हजारे का समर्थन करने हेतु 022-61550789 पर स्वंय भी मिस्ड कॉल करें और अपने दोस्तों को भी करने के लिए कहे. पत्रकार-रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा" सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना हैं ज़ोर कितना बाजू-ऐ-कातिल में है.
एक चोरी के मामले की सूचना :- दीप्ति नवाल जैसी उम्दा अदाकारा और रचनाकार की अनेको कविताएं कुछ बेहया और बेशर्म लोगों ने खुले आम चोरी की हैं। इनमे एक महाकवि चोर शिरोमणी हैं शेखर सुमन । दीप्ति नवाल की यह कविता यहां उनके ब्लाग पर देखिये और इसी कविता को महाकवि चोर शिरोमणी शेखर सुमन ने अपनी बताते हुये वटवृक्ष ब्लाग पर हुबहू छपवाया है और बेशर्मी की हद देखिये कि वहीं पर चोर शिरोमणी शेखर सुमन ने टिप्पणी करके पाठकों और वटवृक्ष ब्लाग मालिकों का आभार माना है. इसी कविता के साथ कवि के रूप में उनका परिचय भी छपा है. इस तरह दूसरों की रचनाओं को उठाकर अपने नाम से छपवाना क्या मानसिक दिवालिये पन और दूसरों को बेवकूफ़ समझने के अलावा क्या है? सजग पाठक जानता है कि किसकी क्या औकात है और रचना कहां से मारी गई है? क्या इस महा चोर कवि की लानत मलामत ब्लाग जगत करेगा? या यूं ही वाहवाही करके और चोरीयां करवाने के लिये उत्साहित करेगा?
जवाब देंहटाएंone word...excellent
जवाब देंहटाएंवदना जी बेहतरीन कविता , बार-बार मन होता है पढनें का , तारतम्य बनाये रखिये
जवाब देंहटाएंकभी कभी
जवाब देंहटाएंउदासी इतनी
गहन होती है
शब्द भी
खामोश हो जाते हैं
या किसी कोने मे
दुबक जाते हैं
-सच है