पृष्ठ

शनिवार, 16 अप्रैल 2011

सिर्फ निशाँ होते हैं

तुम पुकार लो
तो रुक भी जाऊं
तुम निहार लो
तो संवर भी जाऊं
तुम आ जाओ
तो साथ चल भी दूँ
तुम बढाओ हाथ
तो थाम भी लूँ
तुम दिखाओ ख्वाब
तो देख भी लूँ
और पलको पर
सजा भी लूँ
मगर तुमने कभी
पुकारा ही नहीं
उस नज़र से
निहारा ही नहीं
वो हक़ जताया ही नहीं
कभी हाथ बढाया ही नहीं
फिर कैसे , कौन से मोड़ पर
रूकती और किसके लिए?
सिर्फ निशाँ होते हैं
इंतज़ार के मोड़ नहीं हुआ करते ..............

43 टिप्‍पणियां:

  1. दिल की गहराइयों से लिखी हुई रचना है... बहुत खूब!

    जवाब देंहटाएं
  2. सिर्फ निशाँ होते हैं
    इंतज़ार के मोड़ नहीं हुआ करते ..............

    बहुत ही बढ़िया .

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. वन्दना जी आप भी शब्‍दों को हीरे की तरह ही तराशती हैं

    जवाब देंहटाएं
  4. आपकी कविता उद्वेलित कर देती है... सुन्दर कविता यह भी

    जवाब देंहटाएं
  5. आंतरिक मनोभावों को शब्दों मे पिरोया है...बहुत सुंदर।

    जवाब देंहटाएं
  6. वो हक़ जताया ही नहीं
    कभी हाथ बढाया ही नहीं
    फिर कैसे , कौन से मोड़ पर
    रूकती और किसके लिए?
    सिर्फ निशाँ होते हैं
    इंतज़ार के मोड़ नहीं हुआ करते ..............

    बहुत ही स्पष्ट शब्दों में बयां दर्द भरी सुन्दर अभिव्यक्ति |

    जवाब देंहटाएं
  7. काश ! ऐसा होता तो वैसा होता ।

    फिर कैसे , कौन से मोड़ पर
    रूकती और किसके लिए?

    सही है । आगे बढ़ना ही सही है ।

    जवाब देंहटाएं
  8. दिल से लिखी गई रचना दिल को छू गई। आभार।

    जवाब देंहटाएं
  9. सिर्फ निशाँ होते हैं
    इंतज़ार के मोड़ नहीं हुआ करते ...
    बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति,बधाई

    जवाब देंहटाएं
  10. आप लिखो कविता
    तो पढ़ भी लूँ
    आप करो कल्पना तो
    कुछ सोच भी लूँ

    xxxxxxxxxxxxxxxxxx

    रूकती और किसके लिए?
    सिर्फ निशाँ होते हैं
    इंतज़ार के मोड़ नहीं हुआ करते .....!

    आदरणीय वंदना जी
    बहुत मर्मस्पर्शी पंक्तियाँ लिखी हैं आपने ....आपका आभार

    जवाब देंहटाएं
  11. सिर्फ निशाँ होते हैं
    इंतज़ार के मोड़ नहीं हुआ करते ..............
    is intjaar ko mahsoos har koi karta hai magar kam ya door nahi .....sundar

    जवाब देंहटाएं
  12. अरे वाह!
    आपने तो बहुत सरलता से
    जीवन दर्शन को समझा दिया इस रचना में!

    जवाब देंहटाएं
  13. सिर्फ निशाँ होते हैं
    इंतज़ार के मोड़ नहीं हुआ करते

    सुंदर रचना के लिए साधुवाद!

    जवाब देंहटाएं
  14. हक जताने वाले हक देना नहीं जानते..

    इसलिए किस मोड़ पर किसका इंतज़ार...?

    और किस लिए ?

    खूबसूरत एहसास...

    भावपूर्ण चित्रण....!!

    जवाब देंहटाएं
  15. बहुत भावपूर्ण ..मन को छूने वाली ....

    जवाब देंहटाएं
  16. बहुत भावपूर्ण ..मन को छूने वाली ....

    जवाब देंहटाएं
  17. बहुत भावपूर्ण ..मन को छूने वाली ....

    जवाब देंहटाएं
  18. बहुत भावपूर्ण ..मन को छूने वाली ....

    जवाब देंहटाएं
  19. अब तो निशाँ भी फीके पड़ने लगे हैं...

    जवाब देंहटाएं
  20. इंतज़ार के निशान होते हैं मोड नहीं होते...
    वाह क्या बात कही है.

    जवाब देंहटाएं
  21. प्रशंसनीय अभिव्यक्ति . आपके भाव मन को सहज स्पर्श करते चलते है .माँ वाग्देवी की सहज अनुकम्पा है आप पर . बधाई .
    http://abhinavanugrah.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  22. दिल की गहराइयों से लिखी हुई रचना|धन्यवाद|

    जवाब देंहटाएं
  23. वो हक़ जताया ही नहीं
    कभी हाथ बढाया ही नहीं
    फिर कैसे , कौन से मोड़ पर
    रूकती और किसके लिए?
    सिर्फ निशाँ होते हैं
    इंतज़ार के मोड़ नहीं हुआ करते ..............

    बहुत सुंदर .....

    जवाब देंहटाएं
  24. सिर्फ निशाँ होते हैं
    इंतज़ार के मोड़ नहीं हुआ करते

    भावनाओं के समंदर में उठी लहरें जैसे धीरे-धीरे शांत हो रही हों।
    कविता देर तक सोचने के लिए विवश कर रही है।

    जवाब देंहटाएं
  25. बहुत अच्छी पोस्ट, शुभकामना, मैं सभी धर्मो को सम्मान देता हूँ, जिस तरह मुसलमान अपने धर्म के प्रति समर्पित है, उसी तरह हिन्दू भी समर्पित है. यदि समाज में प्रेम,आपसी सौहार्द और समरसता लानी है तो सभी के भावनाओ का सम्मान करना होगा.
    यहाँ भी आये. और अपने विचार अवश्य व्यक्त करें ताकि धार्मिक विवादों पर अंकुश लगाया जा सके., हो सके तो फालोवर बनकर हमारा हौसला भी बढ़ाएं.
    मुस्लिम ब्लोगर यह बताएं क्या यह पोस्ट हिन्दुओ के भावनाओ पर कुठाराघात नहीं करती.

    जवाब देंहटाएं
  26. इतंजार के मोड़ नहीं हुआ करते।
    ...बहुत खूब।

    जवाब देंहटाएं
  27. दिल की गहराईयों से निकलती कविता का अप्रतिम प्रवाह. बहुत सुंदर.

    जवाब देंहटाएं
  28. कोमल भावनाओं में रची-बसी खूबसूरत रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  29. वो हक़ जताया ही नहीं
    कभी हाथ बढाया ही नहीं
    फिर कैसे , कौन से मोड़ पर
    रूकती और किसके लिए?
    सिर्फ निशाँ होते हैं
    इंतज़ार के मोड़ नहीं हुआ करते ......

    वाह वाकई बेहतरीन भावाभिव्यक्ति....आभार

    जवाब देंहटाएं
  30. मैं गीत कोई गा लेती , जो तुम गुनगुना जरा लेते ...
    मैं हंस देती खिलखिलाकर , जो तुम मुस्कुरा जरा देते !

    जवाब देंहटाएं
  31. भावनाओ के सैलाब में बहती हुई पोस्ट.....प्रशंसनीय|

    जवाब देंहटाएं
  32. इंतज़ार के मोड़ नहीं हुआ करते ....
    -waah :)

    जवाब देंहटाएं

आपके विचार हमारे प्रेरणा स्त्रोत हैं …………………अपने विचारों से हमें अवगत कराएं ………शुक्रिया