तुम पुकार लो
तो रुक भी जाऊं
तुम निहार लो
तो संवर भी जाऊं
तुम आ जाओ
तो साथ चल भी दूँ
तुम बढाओ हाथ
तो थाम भी लूँ
तुम दिखाओ ख्वाब
तो देख भी लूँ
और पलको पर
सजा भी लूँ तो रुक भी जाऊं
तुम निहार लो
तो संवर भी जाऊं
तुम आ जाओ
तो साथ चल भी दूँ
तुम बढाओ हाथ
तो थाम भी लूँ
तुम दिखाओ ख्वाब
तो देख भी लूँ
और पलको पर
मगर तुमने कभी
पुकारा ही नहीं
उस नज़र से
निहारा ही नहीं
वो हक़ जताया ही नहीं
कभी हाथ बढाया ही नहीं
फिर कैसे , कौन से मोड़ पर
रूकती और किसके लिए?
सिर्फ निशाँ होते हैं
इंतज़ार के मोड़ नहीं हुआ करते ..............
Uf! Kitnee kasak hai!!
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से लिखी हुई रचना है... बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंसिर्फ निशाँ होते हैं
जवाब देंहटाएंइंतज़ार के मोड़ नहीं हुआ करते ..............
बहुत ही बढ़िया .
सादर
वन्दना जी आप भी शब्दों को हीरे की तरह ही तराशती हैं
जवाब देंहटाएंएक और सुन्दर कविता आपकी कलम से !
जवाब देंहटाएंआपकी कविता उद्वेलित कर देती है... सुन्दर कविता यह भी
जवाब देंहटाएंआंतरिक मनोभावों को शब्दों मे पिरोया है...बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंवो हक़ जताया ही नहीं
जवाब देंहटाएंकभी हाथ बढाया ही नहीं
फिर कैसे , कौन से मोड़ पर
रूकती और किसके लिए?
सिर्फ निशाँ होते हैं
इंतज़ार के मोड़ नहीं हुआ करते ..............
बहुत ही स्पष्ट शब्दों में बयां दर्द भरी सुन्दर अभिव्यक्ति |
काश ! ऐसा होता तो वैसा होता ।
जवाब देंहटाएंफिर कैसे , कौन से मोड़ पर
रूकती और किसके लिए?
सही है । आगे बढ़ना ही सही है ।
दिल से लिखी गई रचना दिल को छू गई। आभार।
जवाब देंहटाएंसिर्फ निशाँ होते हैं
जवाब देंहटाएंइंतज़ार के मोड़ नहीं हुआ करते ...
बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति,बधाई
chalna hi jindgi hai aur intjar ke modh nahi hote .bahot khub
जवाब देंहटाएंbbhawon se bhari hui sundar kavita....
जवाब देंहटाएंआप लिखो कविता
जवाब देंहटाएंतो पढ़ भी लूँ
आप करो कल्पना तो
कुछ सोच भी लूँ
xxxxxxxxxxxxxxxxxx
रूकती और किसके लिए?
सिर्फ निशाँ होते हैं
इंतज़ार के मोड़ नहीं हुआ करते .....!
आदरणीय वंदना जी
बहुत मर्मस्पर्शी पंक्तियाँ लिखी हैं आपने ....आपका आभार
सिर्फ निशाँ होते हैं
जवाब देंहटाएंइंतज़ार के मोड़ नहीं हुआ करते ..............
is intjaar ko mahsoos har koi karta hai magar kam ya door nahi .....sundar
अरे वाह!
जवाब देंहटाएंआपने तो बहुत सरलता से
जीवन दर्शन को समझा दिया इस रचना में!
वाह! क्या बात है...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंmarmik
जवाब देंहटाएंसिर्फ निशाँ होते हैं
जवाब देंहटाएंइंतज़ार के मोड़ नहीं हुआ करते
सुंदर रचना के लिए साधुवाद!
हक जताने वाले हक देना नहीं जानते..
जवाब देंहटाएंइसलिए किस मोड़ पर किसका इंतज़ार...?
और किस लिए ?
खूबसूरत एहसास...
भावपूर्ण चित्रण....!!
बहुत भावपूर्ण ..मन को छूने वाली ....
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण ..मन को छूने वाली ....
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण ..मन को छूने वाली ....
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण ..मन को छूने वाली ....
जवाब देंहटाएंअब तो निशाँ भी फीके पड़ने लगे हैं...
जवाब देंहटाएंइंतज़ार के निशान होते हैं मोड नहीं होते...
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात कही है.
प्रशंसनीय अभिव्यक्ति . आपके भाव मन को सहज स्पर्श करते चलते है .माँ वाग्देवी की सहज अनुकम्पा है आप पर . बधाई .
जवाब देंहटाएंhttp://abhinavanugrah.blogspot.com/
दिल की गहराइयों से लिखी हुई रचना|धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ...धाराप्रवाह लिखा है ..
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूब.
जवाब देंहटाएंअति सुंदर रचना, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंवो हक़ जताया ही नहीं
जवाब देंहटाएंकभी हाथ बढाया ही नहीं
फिर कैसे , कौन से मोड़ पर
रूकती और किसके लिए?
सिर्फ निशाँ होते हैं
इंतज़ार के मोड़ नहीं हुआ करते ..............
बहुत सुंदर .....
बहुत खूब.
जवाब देंहटाएंसिर्फ निशाँ होते हैं
जवाब देंहटाएंइंतज़ार के मोड़ नहीं हुआ करते
भावनाओं के समंदर में उठी लहरें जैसे धीरे-धीरे शांत हो रही हों।
कविता देर तक सोचने के लिए विवश कर रही है।
बहुत अच्छी पोस्ट, शुभकामना, मैं सभी धर्मो को सम्मान देता हूँ, जिस तरह मुसलमान अपने धर्म के प्रति समर्पित है, उसी तरह हिन्दू भी समर्पित है. यदि समाज में प्रेम,आपसी सौहार्द और समरसता लानी है तो सभी के भावनाओ का सम्मान करना होगा.
जवाब देंहटाएंयहाँ भी आये. और अपने विचार अवश्य व्यक्त करें ताकि धार्मिक विवादों पर अंकुश लगाया जा सके., हो सके तो फालोवर बनकर हमारा हौसला भी बढ़ाएं.
मुस्लिम ब्लोगर यह बताएं क्या यह पोस्ट हिन्दुओ के भावनाओ पर कुठाराघात नहीं करती.
इतंजार के मोड़ नहीं हुआ करते।
जवाब देंहटाएं...बहुत खूब।
दिल की गहराईयों से निकलती कविता का अप्रतिम प्रवाह. बहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंकोमल भावनाओं में रची-बसी खूबसूरत रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंवो हक़ जताया ही नहीं
जवाब देंहटाएंकभी हाथ बढाया ही नहीं
फिर कैसे , कौन से मोड़ पर
रूकती और किसके लिए?
सिर्फ निशाँ होते हैं
इंतज़ार के मोड़ नहीं हुआ करते ......
वाह वाकई बेहतरीन भावाभिव्यक्ति....आभार
मैं गीत कोई गा लेती , जो तुम गुनगुना जरा लेते ...
जवाब देंहटाएंमैं हंस देती खिलखिलाकर , जो तुम मुस्कुरा जरा देते !
भावनाओ के सैलाब में बहती हुई पोस्ट.....प्रशंसनीय|
जवाब देंहटाएंइंतज़ार के मोड़ नहीं हुआ करते ....
जवाब देंहटाएं-waah :)