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शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

मुझमे तो तू कहीं बचा ही नहीं .................

वो भूले बिसरे मंज़र
याद आते हैं
कभी ख्यालों में
तैर जाते हैं
कभी यादों की
ऊंगली पकड़कर
गली में मेरी
टहल जाते हैं 
आज अजीब सा 
लगता है मगर
कल वो मेरी 
जरूरत थी 
कल एक चाहत थी
कल कुछ लम्हों को
तेरे साथ बिताना
तेरे संग की ख्वाहिश
एक जूनून थी
या कहो मेरी चाहत 
 की इन्तिहाँ थी 
छह दिन के इंतज़ार 
के बाद का सातवाँ दिन
मुझे अपना लगता था
उस दिन पर अपना
अधिकार समझती थी
मगर वो दिन भी
गर्मी की धूप सा
पिघल जाता था
हाथ आकर भी
हाथ ना आता था
छोटी छोटी ख्वाहिशें
यूँ ही दम तोड़ जाती थीं 
मगर फिर भी 
एक इंतज़ार में 
किसी को अपना 
बनाने के
किसी के बन 
जाने की ख्वाहिश में
वक्त की धारा के साथ
बहती गयी और
फिर एक वक्त आया 
कि दुनिया ही बदल गयी
आज किसी ख्वाहिश को
पनाह ही नहीं मिलती
कोई याद अब 
दरवाज़ा नहीं खटखटाती
हर चाहत ना जाने
किस मकबरे में
दफ़न हो चुकी
कि तुम सामने भी 
होते हो तो भी 
कोई अरमान अब 
जवाँ नहीं होता
अब कभी वक्त
हिसाब बनकर
हमारे दरमियाँ नहीं होता
अब कोई ख्वाब 
आकार नहीं लेता
यूँ लगता है
वक्त की दीमक
हर ख्वाब
हर अरमान 
हर चाहत को 
चाट चुकी है
जब वक्त का 
लिहाफ हटाया 
तो पता लगा
मुझमे तो तू कहीं बचा ही नहीं .................

40 टिप्‍पणियां:

  1. SIMPLY EXELLENT...nothing elese to say...you R simply waoooooooooo.
    luv u.

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  2. mujhme to tu kahi bacha hi nhi
    bahut sunder rachna hai aapki
    ...
    mere blog par
    "jharna"

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों में भावमय करती प्रस्‍तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  4. कुछ लम्हों को
    तेरे साथ बिताना
    तेरे संग की ख्वाहिश
    एक जूनून थी
    या कहो मेरी चाहत
    की इन्तिहाँ थी
    छह दिन के इंतज़ार
    के बाद का सातवाँ दिन
    मुझे अपना लगता था
    उस दिन पर अपना
    अधिकार समझती थी
    मगर वो दिन भी
    गर्मी की धूप सा
    पिघल जाता था
    aur main mom banti gai , jalti gai, pighalti gai...

    जवाब देंहटाएं
  5. वक्त के बदलने और बदलते वक्त में रिश्तों की परिभाषा बदलने के बीच की मनःस्थिति की सुन्दर अभिव्यक्ति है आप कि कविता... सचमुच वक्त के लिहाफ के हटने से कई चीज़ें रौशनी में में आ जाती हैं और उनकी सच्चाई भी.. सुन्दर कविता..

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  6. आद.वंदना जी,

    "अब कोई वक्त हिसाब बन कर हमारे दरमयान नहीं होता,
    अब कोई ख़्वाब आकार नहीं लेता,
    यूँ लगता है ,वक्त का दीमक हर ख़्वाब,हर अरमान, हर चाहत को चाट चुका है
    जब वक्त का लिहाफ हटाया तो पता लगा
    मुझमे तो तू कही बचा ही नहीं !"

    बड़ी गहरी अनुभूति है !
    कविता संवेदना को स्पर्श करती है !

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  7. संवेदनशील ... जीवन के कुछ लम्हे मन को झकझोड़ देते हैं ... घटना की तरह बहती हुयी रचना है ....

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  8. यूँ लगता है
    वक्त की दीमक
    हर ख्वाब
    हर अरमान
    हर चाहत को
    चाट चुकी है
    जब वक्त का
    लिहाफ हटाया
    तो पता लगा
    मुझमे तो तू कहीं बचा ही नहीं .................
    आपकी रचनाओं के बारे में क्या कहा जाए..इतनी मार्मिक और भावप्रवण होती हैं कि उनपर टिप्पणी देने के वजाय अहसासों में डूबे रहना ज्यादा अच्छा लगता है..आपकी लेखनी को नमन...आभार

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  9. यादों का स्वरूप नहीं होता है, अभी भी उपस्थित होंगी वहीं पर।

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  10. जब वक्त का
    लिहाफ हटाया
    तो पता लगा
    मुझमे तो तू कहीं बचा ही नहीं .................


    sunder prastuti.

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  11. रिश्ते वक्त के साथ बदल ही जाते है
    सुन्दर, संवेदनशील कविता

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  12. उफ़....गज़ब की रचना है शुरू से आखिर तक धाराप्रवाह एक एक शब्द जैसे दिल की तह यक पहुँचता हुआ ..और अंतिम पंक्ति तो बस कमाल है..

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  13. किसी बहुत अपने के बारे में सोचने को विवश करती रचना।बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  14. प्रवाहमयी ....वेदना से भरी हुई ..अच्छी अभिव्यक्ति

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  15. यूँ लगता है
    वक्त की दीमक
    हर ख्वाब
    हर अरमान
    हर चाहत को
    चाट चुकी है
    जब वक्त का
    लिहाफ हटाया
    तो पता लगा
    मुझमे तो तू कहीं बचा ही नहीं
    Nice post .
    http://ahsaskiparten.blogspot.com/2011/01/organised-crime-against-india.html

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  16. वाकई हमेशा की तरह बेहतरीन भावाभिव्यक्ति...

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  17. सुन्दर, संवेदनशील कविता बहुत ही सुन्‍दर

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  18. यूं ही बदल जाती हैं समय के साथ सम्बन्ध और उनकी रूपरेखा ....... प्रभावी अभिव्यक्ति.....

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  19. जब वक्त की लिहाफ हटाया तो ......क्या बात है वंदना जी

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  20. आदरणीय वंदना जी अपार शुभ कामनाएं....अति भावुक मर्मस्पर्शी प्रस्तुती...संवेदनाओं को समेटे संवेदनशील मन की ब्यथा ..
    आदरणीय डॉक्टर नूतन जी इतनी सुन्दर रचना से सम्प्रेषण करने हेतु आपका कोटि कोटि आभार ...
    सादर !!!

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  21. वंदना जी,
    वक्त के साथ-साथ सब-कुछ बदल जाता हॆ.बद्लना भी चाहिए.ठहराव नहीं,चलने का नाम ही जिंदगी हॆ.सुन्दर काव्यात्मक भावाभिव्यक्ति के लिए बधाई.

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  22. वंदना जी,

    बहुत खुबसूरत अहसास....शुरुआत बहुत शानदार लगी.....बधाई|

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  23. बड़ी खूबसूरती से दिल का दर्द बयान किया है ...मगर ये न कहो कि मुझ में तू बचा ही नहीं ...वो क्या है जो इस कविता में बोल रहा है .....और उसे जिन्दा भी तो रखना है ...वरना हम भी न बच रहेंगे ..

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  24. एक प्रेमकहानी जिसपर अंतिम पंक्ति ने पूर्ण विराम लगा दिया.....

    गहन और मार्मिक अभिव्यक्ति जो मन से आह निकाल जाती है......

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  25. जिंदगी के कुछ उलझे और कुछ सुलझे पन्नों को बहुत ही खूबसूरती से पिरो डाला अपने दोस्त !
    बहुत ही खूबसूरती से लिखी सशक्त रचना !

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  26. क्या बात है
    बहुत अच्छे
    सफर के हर मोड को रूप देने के साथ साथ
    किसी रोचक, जासूसी फिल्म के से
    अंदाज़ में अंत में जब पाठक उस पंक्ति तक
    पहुँचता है की मुझमें तू बचा ही नहीं
    तो कविता फिर से खुलती है, खिलती है
    तालियाँ!!!

    जवाब देंहटाएं
  27. वंदना जी,
    सोचने को विवश करती रचना।
    बहुत रोचक और सुन्दर अंदाज में लिखी गई रचना .....आभार

    जवाब देंहटाएं
  28. कविता आरभ में बेहद सवेदनशील और नाज़ुक लग रही थी किन्तु अंत में कविता ने अपना ऐसा रुख बदला जैसे युद्ध का वायुवान अचानक अपनी दिशा बदल लेता है और सटीक निशाने पर वार कर गायब हो जाता है. खूबसूरत.

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  29. सुन्दर प्रेममयी कोमल भावों और शब्दों से सजी प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  30. वंदना जी ऐसा प्रतीत होता है कि बड़ी नैराश्य पूर्ण स्थिति में शब्दों ने जन्म लिया है . जो शब्द मुंह पर नहीं आते वे कलम बध हो जाते हैं . पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ अन्यथा ना समझिये

    जवाब देंहटाएं
  31. "अब कोई ख़्वाब आकार नहीं लेता,
    यूँ लगता है,वक्त का दीमक हर ख़्वाब,
    हर अरमान,हर चाहत को चाट चुका है
    जब वक्त का लिहाफ हटाया तो पता लगा
    मुझमे तो तू कही बचा ही नहीं !"

    tujhe khud main bachaane ke liye
    n jaane kab tak jhootha lihaaf
    odhe rakhaa tha,par jab lihaaf hataaya to...
    khoob,kuchh logon ko jindagi se nikala nahin jaa sakta hai,bas apna
    nazariya badal lena chahiye...!!

    जवाब देंहटाएं
  32. "अब कोई ख़्वाब आकार नहीं लेता,
    यूँ लगता है,वक्त का दीमक हर ख़्वाब,
    हर अरमान,हर चाहत को चाट चुका है
    जब वक्त का लिहाफ हटाया तो पता लगा
    मुझमे तो तू कही बचा ही नहीं !"

    tujhe khud main bachaane ke liye
    n jaane kab tak jhootha lihaaf
    odhe rakhaa tha,par jab lihaaf hataaya to...
    khoob,kuchh logon ko jindagi se nikala nahin jaa sakta hai,bas apna
    nazariya badal lena chahiye...!!

    जवाब देंहटाएं

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