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शनिवार, 18 दिसंबर 2010

ये प्रेम के कौन से मोड आ गये

ये प्रेम के कौन से मोड आ गये
जहाँ लम्हे तो गुजर गये
मगर हम बेजुबाँ हो गये
कहानी कहते थे तुम अपनी
और हम बयाँ हो गये
ये बादल मेरी बदहाली के
क्यूँ तेरी पेशानी पर छा गये
इस रूह के उठते धुयें मे
तुम कैसे समा गये
काश!
कोई नश्तर तो चुभता
कुछ लहू तो बहता
कुछ दर्द हुआ होता
तो शायद
तेरा दर्द मेरे दामन से
लिपट गया होता
फिर न यूँ रुसवाइयों
के डेरे होते और
जिस्म के दूसरे छोर पर
तुम मेरे होते
जहाँ रूहों के रोज
नये सवेरे होते

मगर ना जाने 
ये कैसे प्रेम के
मोड़ आ गए
जो सिर्फ भंवर 
में ही समा गए
अब ना तुम हो
ना मैं हूँ 
ना भंवर है 
बस प्रेम का ये 
मोड़ सूखे अलाव 
 ताप रहा है

37 टिप्‍पणियां:

  1. .

    आपकी अभिव्यक्ति की क्षमता की जितनी तारीफ करूँ कम होगी।
    बहुत सुन्दर रचना
    आभार।

    .

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  2. वंदना.....थोड़ी व्यस्तता के कारण आप के रत्नों पर कोई कॉमेंट्स ना डाल सका, क्षमाप्रार्थी हूँ....

    प्रेम...एक अजूबा है....ओरों के लिए तो पता नहीं.....मेरे लिए तो ये संजीवनी बूटी है.....हां.

    बात आप अपनी कहतीं हैं....और बयाँ मैं होता हूँ......निःसंदेह.... बधाई....मीरा भी प्रेम दीवानी थी...और राधा भी....आप भी.

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  3. वाह .. बहुत अच्‍छी अभिव्‍यक्ति !!

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  4. ये प्रेम के कौन से मोड आ गये
    जहाँ लम्हे तो गुजर गये
    मगर हम बेजुबाँ हो गये
    .....waah bezubaan ho gaye hum to !

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  5. प्रेम के अनन्य पडाव अभिव्यक्त हुए।

    आभार इस कविता के लिये।

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  6. ये प्रेम के कौन से मोड आ गये
    जहाँ लम्हे तो गुजर गये
    मगर हम बेजुबाँ हो गये
    कहानी कहते थे तुम अपनी
    और हम बयाँ हो गये
    --
    प्रेम को परिभाषित करती हुई एक सुन्दर रचना!

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  7. दिल के नाज़ुक ज़ज्बातों की सुंदर अभिव्यक्ति. आभार .

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  8. as always....amazing
    kaash koi nashtar chubha hota, kuch dard hua hota....beautiful !

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  9. bahot sundar...bas maza aa gaya...bahot achcha likha aapne...

    ये प्रेम के कौन से मोड आ गये
    जहाँ लम्हे तो गुजर गये
    मगर हम बेजुबाँ हो गये
    कहानी कहते थे तुम अपनी
    और हम बयाँ हो गये...wah wah wah...

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  10. क्या बात है .. प्रेम के सुन्दर अभिव्यक्तियों सहित खुबसूरत कविता !

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  11. vadana ji
    bahut hi behatreen abhivyakti.
    kash!ye mid na aaya hota to jidgi ka rang kuch aur hi hota.
    poonam

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  12. वंदना जी,
    1.एक बात सदा याद रखिएगा-मुहब्ब्त सब की महफिल में शमां बन कर नही जलती।
    2.मुहब्बत के लिए कुछ खास दिल मखसूस होते हैं,
    यह वो नगमा है जो हर साज पर गाया नही जाता ।
    अच्छी प्रस्तुति।

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  13. बहुत सुंदर शब्दों में भावों को सजाया है.

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  14. अब ना तुम हो
    ना मैं हूँ
    ना भंवर है
    बस प्रेम का ये
    मोड़ सूखे अलाव
    ताप रहा है

    कमाल का दर्द है आपकी रचनाओं में.इन के बारे में कुछ भी कहना असंभव है..सिर्फ एक अहसास बन कर घुमड़ती रहती हैं विचारों में कई दिन तक..लाज़वाब..बेहद सुन्दर प्रस्तुति.आभार

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  15. बादे-सबा हूं, छू के गुज़र जाउंगा तुझे
    मैं चांदनी नहीं कि तेरी छत पे सो सकूं
    बहुत सुंदर!

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  16. कमाल की रचना लिखी है। बधाई हो।
    सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
    ==============================
    प्रेम पर एक टिप्पणी-
    ==================
    प्रेम सुपरफ्लेम है।
    मजेदार गेम है॥
    हार-जीत पर इसमें
    होता न क्लेम है॥

    -डॉ० डंडा लखनवी

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  17. कहानी कहते थे तुम और हम बयाँ हो गए -वाह क्या कहने !

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  18. प्रेम में जो न हो जाये वो कम है... अच्छी रचना है ..

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  19. सुन्दर एवं भावप्रवण अभिव्यक्ति , पढ़कर प्रेम रस का अद्भुत आनंद सुख मिला .

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  20. प्रेम के आयामों को वाणी देती प्रशंसनीय रचना ।

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  21. ये प्रेम के कौन से मोड़ आ गये...बहुत सुन्दर

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  22. प्रेम को शब्दों में बाँधना आसान नही होता , मगर आपने यह बहुत खूबसूरती से किया है ।

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  23. प्रेम के मोड़ जीवन के मोड़ से भिन्न नहीं होते.. इस तरह एक अच्छी कविता है यह...

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  24. वंदना जी,

    वाह....वाह....क्या बात है ....बहुत खूबसूरती से उर्दू के लफ्जों का सही इस्तेमाल किया है |

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