अब लक्ष्य निर्धारण नहीं करती
निर्धारण कर लो तो
पाने की चाह
प्रबल हो जाती है
और उस जूनून में
काफी कुछ बह जाता है
और बचता है तो सिर्फ
रेतीले मटमैले पैरों में
चुभते से कुछ कंकर पत्थर
और गाद में सड़ते पाँव
और उनके निशाँ
पीछे मुड़ने पर देखो तो
सिर्फ निशाँ ही होते हैं
अकेले , नितांत एकाकी
बाकी तो वक्त के दरिया
में बह जाता है और तब
लक्ष्य को पाना
उसकी सफलता
खोखली बेमानी हो जाती है
जब उन पदचिन्हों के साथ
एक भी निशाँ नज़र नहीं आता
इसलिए अब दिशाहीन जी लेती हूँ
जहाँ खोने को कुछ नहीं होता
और जो मिलता है वो ही
लक्ष्य बन जाता है
या कहो जीवन की
उपलब्धि इसी में है
पाने की चाहत में
सब कुछ खो देना तो
लक्ष्य नहीं होता ना
इसलिए
अब लक्ष्य निर्धारण नहीं करती
ओह!! लक्ष्य से पलायन?, खोने के भय से………
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ खोने में ही छुपा होता है,सर्वश्रेष्ठ पाना।
काव्य-भाव दृष्टिकोण अतिसुंदर
वजह से हम सहमत नहीं है, बाकी जिंदगी नकद में जीनी चाहिए, ये तो बिलकुल दुरस्त खयालात लगते है ...
जवाब देंहटाएंलिखते रहिये ....
बहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्द ...।
जवाब देंहटाएंKitna sahi kaha hai tumne Vandana! Aisa khokhlapan bada bhayawah hota hai!
जवाब देंहटाएंbilkul sahi karti ho...nirdharit lakshya hamesha takleef hi dete hain...
जवाब देंहटाएंacchi nazm :)
@पाने की चाहत में
जवाब देंहटाएंसब कुछ खो देना तो
लक्ष्य नहीं होता ना
इसलिए
अब लक्ष्य निर्धारण नहीं करती
--
बीती ताहि बिसार दे,
आगे की सुधि लेय!
प्रेरणा देती हुई सुन्दर रचना!
बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई .....वंदना जी
जवाब देंहटाएं... bahut khoob ... behatreen rachanaa !!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचनाधर्मिता ..... बढ़िया अभिव्यक्ति...आभार
जवाब देंहटाएंलक्ष्य को कभी मत भूलना दोस्त आपकी प्रगति का आधार आपका कठोर परिश्रम होगा अर्थात एक ईमारत की मजबूत नीव !
जवाब देंहटाएंदिल से बयाँ की हुई एक दर्द बहरी आह !
बधाई !
उन पदचिन्हों के साथ
जवाब देंहटाएंएक भी निशाँ नज़र नहीं आता
इसलिए अब दिशाहीन जी लेती हूँ
जहाँ खोने को कुछ नहीं होता
yah sailaab har khone me hai , jahan kuch nahin hota
लक्ष्य को कभी मत भूलना दोस्त आपकी प्रगति का आधार आपका कठोर परिश्रम होगा अर्थात एक ईमारत की मजबूत नीव !
जवाब देंहटाएंदिल से बयाँ की हुई एक दर्द भरी आह !
बधाई !
बहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्द
जवाब देंहटाएंपाने की मृगतृष्णा जब बढ़ती ही जाये तो कुछ और पाना बेईमानी सा लगने लगता है।
जवाब देंहटाएंलक्ष्य निर्धारण न किया जाए तब भी कदम किसी न किसी मजिल की ओर ही बढते हैं ...अच्छी भाव प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंअब लक्ष्य निर्धारण नहीं करती....
बेहतरीन पंक्ति !
कर्म में सतत लगे रहने की प्रेरणा देती हुई सार्थक रचना के लिए आभार।
.
बहुत बढ़िया रचना। बधाई।
जवाब देंहटाएंलक्ष्य निर्धारण की बजाय कई बार लक्ष्य प्राप्ति ज्यादा असरदार होती है..शानदार रचना..बधाई.
जवाब देंहटाएंek alag hi andaj me likhi gayi bhavbhari kavita .bahut khoob abhivyakti .
जवाब देंहटाएंपाने की चाहत में
जवाब देंहटाएंसब कुछ खो देना तो
लक्ष्य नहीं होता ना
इसलिए
अब लक्ष्य निर्धारण नहीं करती...
गहन चिंतन से परिपूर्ण अहसास..बहुत हद तक सही है कि केवल लक्ष्य निर्धारण से कुछ नहीं होता, जिंदगी में जो कुछ मिलता जाए उसे संजोते चलो..यायावर जिंदगी का भी तो एक अपना सुख है..बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति..आभार
बेहतरीन पोस्ट
जवाब देंहटाएंलक्ष्य हो या न हो जिंदगी तो फिर भी चलती जायेगी ..
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावपूर्ण रचना.
दिल बहलाने को ग़ालिब ख्याल अच्छा है . लेकिन बिना लक्ष्य जीवन नीरस भी तो हो जाता है. जीवन नें उर्जा और ऊष्मा बनी रहे इसके लिए लक्ष्य निर्धारण बेहद जरुरी है .
जवाब देंहटाएंलक्ष्य या भविष्य जैसे प्रश्न अनिश्चित काल के आगे क्या मायने रखते हैं...
जवाब देंहटाएंसही ही है ,ऐसे में केवल वर्तमान में वर्तमान के भरोसे ही जीना उचित है...
सुन्दर भावोद्गार !!!!
सुन्दर प्रस्तुति .
जवाब देंहटाएं'main jahan tak pahunch jaun
जवाब देंहटाएंbas wahi gantay mera'
komal bhavov-kathor anubhootiyon se saji hui rachna..
bahut sunder.
कविता की भावभूमि प्रखर है , प्रभावित करती है !
जवाब देंहटाएं-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
निर्धारण कर लो तो
जवाब देंहटाएंपाने की चाह
प्रबल हो जाती है
बात तो सही है जी ।
लेकिन इस पाने की चाह में ही तो सारा आनंद है ।
अति सुंदर रचना जी धन्यवाद
जवाब देंहटाएंअपने मनोभावों को बहुत सुन्दर शब्द दिये हैं।बधाई।
जवाब देंहटाएंये जिंदगी है खुदा की नैमत
जवाब देंहटाएंकुछ तुझे तो कुछ मुझे मिला।
लिखी है सबकी तकदीर उसने
जिए जा मुकददर से क्या गिला।।
जिस लक्ष्य कोपाने की चाह मे-- मृ्गतृष्णा सी भूख अगर सताने लगे तो यही अच्छा है कि उस लक्ष्य से पलायन कर जाओ। बहुत अच्छी रचना। बधाई।
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंबेहतरीन पोस्ट लेखन के लिए बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से, आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है - पधारें - विजय दिवस पर विशेष - सोच बदलने से मिलेगी सफलता,चीन भारत के लिये कितना अपनापन रखता है इस विषय पर ब्लाग जगत मौन रहा - ब्लॉग 4 वार्ता - शिवम् मिश्रा
लक्ष्य जब अलक्ष्य हो तो निर्धारण बेमानी होता है.
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरती से एहसास को पिरोया है
Lkashy nirdharan nahi karti .. bahut gahri kavita hai..
जवाब देंहटाएंaapko padhna bahut achcha laga..
वंदना.....
जवाब देंहटाएंलक्ष्य......बिना तो जीवन अर्थहीन है.....
और खासकर जो प्रेम से ग्रसित हों......उनके हाँथ तो कुछ बदनामी और कुछ रुसवाई ही लगा करती है......प्रियतम कि तो हर चीज़ प्यारी होती ..वो चाहे नफरत ही क्यों ना हो......
लक्ष के बिना जीवन तो कुछ नहीं ... पर हाँ खोने का डर नहीं होता ... अर्थ पूर्ण रचना है ...
जवाब देंहटाएंमेरी एक क्षणिकाओं की एक श्रंखला है जिसकी एक क्षणिका टिप्पणी स्वरुप दे रहा हूँ...
जवाब देंहटाएं"
नहीं है
कोई लक्ष्य
जीवन में
नहीं यदि
तुम"..
अच्छी कविता है आपकी
वंदना जी,
जवाब देंहटाएंबहुत सही फैसला है आपका.......जीवन का लक्ष्य तो एक ही है....
आपकी रचना वाकई तारीफ के काबिल है .
जवाब देंहटाएं* किसी ने मुझसे पूछा क्या बढ़ते हुए भ्रस्टाचार पर नियंत्रण लाया जा सकता है ?
हाँ ! क्यों नहीं !
कोई भी आदमी भ्रस्टाचारी क्यों बनता है? पहले इसके कारण को जानना पड़ेगा.
सुख वैभव की परम इच्छा ही आदमी को कपट भ्रस्टाचार की ओर ले जाने का कारण है.
इसमें भी एक अच्छी बात है.
अमुक व्यक्ति को सुख पाने की इच्छा है ?
सुख पाने कि इच्छा करना गलत नहीं.
पर गलत यहाँ हो रहा है कि सुख क्या है उसकी अनुभूति क्या है वास्तव में वो व्यक्ति जान नहीं पाया.
सुख की वास्विक अनुभूति उसे करा देने से, उस व्यक्ति के जीवन में, उसी तरह परिवर्तन आ सकता है. जैसे अंगुलिमाल और बाल्मीकि के जीवन में आया था.
आज भी ठाकुर जी के पास, ऐसे अनगिनत अंगुलीमॉल हैं, जिन्होंने अपने अपराधी जीवन को, उनके प्रेम और स्नेह भरी दृष्टी पाकर, न केवल अच्छा बनाया, बल्कि वे आज अनेकोनेक व्यक्तियों के मंगल के लिए चल पा रहे हैं.