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गुरुवार, 2 दिसंबर 2010

कील.........ख्यालों की

एक ख्याल
दिल की कील
पर लटका पड़ा है
तो एक ख्याल
दिमाग की 
बालकोनी में
सूख रहा है
और कोई ख्याल
तो किसी ख्याल की
अलंगनी पर टंगा है
कौन से कोने से
शुरू करूँ
हर कोना
अपने ख्यालों
की तरह ही
रीता दिखाई
देता है
वहाँ जहाँ
ख्यालों ने
अपनी दुनिया
बसाई थी
हर मोड़ पर
सिर्फ एक
बेवफाई थी
कहीं ना किसी
ख्याल की
सुनवाई थी
सभी ख्यालों
ने शायद
मुझसी ही
किस्मत पाई थी
कुछ कीलें
कभी नहीं
निकलतीं
फाँस सी
ताउम्र
चुभती ही
रहती हैं

38 टिप्‍पणियां:

  1. बाहरी कीलों को तो निकाला जा सकता है । लेकिन ह्रदय में चुभी हुई फांस को ताउम्र झेलना पड़ता है।

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  2. सभी ख्यालों में पड़ी यादों की कील।

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  3. एक ख्याल
    दिल की कील
    पर लटका पड़ा है
    तो एक ख्याल
    दिमाग की बालकोनी मेंसूख रहा है
    सुन्दरता से दर्द को बिम्ब के माध्यम से व्यक्त किया है

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  4. ये ख्यालों की कीलें ही हैं जो चुभती हैं तो शब्द बन उतर पड़ती हैं ..अच्छी प्रस्तुति

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  5. प्यार की फाँस किसी तरह निकलती ही नहीं,

    ख़त जला डालिए, तहरीर तो जलती ही नहीं.....



    वंदना जी..... एक ऐसी तलाश जारी है जो शायद है ही नहीं..... मेरी भी...

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  6. सही बात है वन्दना जी कुछ कीलें कभी नही निकलती दिल से। और इस चुभन को मरते दम तक सहन करना पडता है। अच्छी रचना के लिये बधाई।

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  7. कील को पहली बार विम्ब बनाकर लिखी गई है कविता.. सुन्दर भाव.. ह्रदय को छूती हुई..

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  8. वन्दना जी,

    सुभाल्लाह......पिछले कुछ दिनों से आपकी लेखनी अपने चरम पर है.....कील....वाह बहुत ही खूबसूरत लगी ये पोस्ट....

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  9. कुछ कीलें कभी नहीं निकलती , निकली नहीं जा सकती ... ताउम्र टीस देती हैं ...
    गहन भावों की अभिव्यक्ति !

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  10. हर मोड़ पर
    सिर्फ एक
    बेवफाई थी
    कहीं ना किसी
    ख्याल की
    सुनवाई थी
    सभी ख्यालों
    ने शायद
    मुझसी ही
    किस्मत पाई थी
    .....मार्मिक....सुन्दर...

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  11. इन कीलों ने इतनी सुन्दर कविता तो लिखवा दी :).पर यकीन मानिये हर कील निकलती है बस हथोड़ा सही होना चाहिए.:)

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  12. शायद मौसम ही ख्यालों का आ गया है. बढ़िया पोस्ट!
    यूँही फुर्सत में: कुछ ख्याल!

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  13. सुन्दरता से दर्द को व्यक्त किया है
    बेहतरीन प्रस्तुति ,बधाई

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  14. bahut hi sahi prastuti . kabhi kabhi aisi faas jo dil me chubh jaaati hai vo laakh nikale nahi nikalti.
    poonam

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  15. क्या इन कीलो पर वक्त अपना असर नहीं छोड़ता ?

    सुंदर प्रस्तुति.

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  16. बहुत सुन्दर और मार्मिक पोस्ट!
    सच तो यह है कि इसी तरह की कील हमें भी रोज-रोज चुभती है!

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  17. कील एक मेरे हिरदय में भी समा गई है.. प्रेम की कील .. सुन्दर कविता.. सुन्दर विम्ब..

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  18. बहुत खूब .... इन कीलों से मिलने वाली पीड़ा भी असहनीय होती है.... मन की पीड़ा.... बेहतरीन रचना

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  19. बिम्ब और प्रतीक का उत्तम प्रयोग। अच्छी रचना।

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  20. Is post ko kis ADJECTIVE se alankrit karun ,
    kuchh samajh nahi aata hai.
    Samichin ADJECTIVE ko khojane ke prayas mein ,
    Ek svera phir aa jata hai.
    Bahut khoob likha hai aapne. Sadar.

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  21. naye prateekon ke sahare marm ko sparsha karane vali kavita k liye badhai.

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  22. ख्यालों की दुनिया खूब संजोयी है...!!!

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  23. कील भी निकल जाएगी पर निशान नहीं मिटेगा फिर भी हौसला रखना चाहिए और सकारात्मक सोच....बहुत सुंदर रचना

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  24. सभी ख़यालों ने शायद मुझसी ही किस्मत पाई थी।
    ख़यालों के भिन्न बिम्ब ,कील बनकर मन को कुरेदती है । बधाई।

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  25. सही कहा आपने , बाहरी कीलें तो सामान लगाने के काम आ जाती है और जब चाहो उनको निकाला भी जा सकता है , मगर मन में चुभी कील क आजीवन निकल पाना संभव नही हो पाता । और हमेशा उस पर दर्द रूपी सामान लटकता ही रहता है

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  26. dardbhari magar khoobsurat rachna! kabhi kilen to kabhi gulaab banke yaaden yun hi dard deti hain...

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  27. वंदना ..क्या कहूँ .. पढकर गले में कुछ अटक सा गया शायद आंसू है ...जिंदगी भर कोई इन कीलो का बोझ कैसे सहे ...great work of words with deep pain and emotions...

    just hats off....


    vijay

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  28. बहुत आनंदित किया आपकी कविता ने . कील चुभी पीड़ा हुई और आनंद भी पीड़ा ने ही मुझे दिया. अच्छा अनुभव आपकी कविता को पढ़ा जाना

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  29. कल 18/जनवरी/2015 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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