अनंत यात्राओं की
अंतहीन पगडंडियों
पर चलते चलते
जब कभी थक जाती हूँ
तब कुछ पल
जीना चाहती हूँ
सिर्फ तुम्हारे साथ
तुम्हारी आशाओं
अपेक्षाओं और
अपनी चाहतों के साथ
जहाँ मेरी हर चाहत
परवान चढ़ सके
और तुम्हारे वजूद का
हिस्सा बन सके
जहाँ तुम्हारे ह्रदय के
हर गली कूचे पर
सिर्फ मेरा नाम लिखा हो
हर मोड़ पर
मेरा बुत खड़ा हो
जिसके हर घर में
तुम्हारी मुस्कराहट
तैर रही हो और
मेरे पाँव थिरक रहे हों
तुम्हारी प्रेममयी झंकार पर
जहाँ एक ऐसा आशियाना हो
जिसमे सिर्फ तुम्हारा
और मेरा वजूद
अपना वजूद पा रहा हो
और कभी हम किसी
भीड़ के रेले में
चुपचाप हाथों में हाथ डाले
चल रहे हों और
इक दूजे की धडकनें
सुन रहे हों
बस कुछ पल
इसी सुकून के
जीना चाहती हूँ
जिसे तुमने
मेरा नाम दिया है
और मेरे अस्तित्व का
प्रमाण दिया है
उसी अपने घर में
रहना चाहती हूँ
जानते हो ना
कौन सी है वो जगह
वो है तुम्हारा ह्रदय
मेरे सपनो का शहर
sapno ke is shahar ke her mod per tumhara wajood ho , tabhi to wo mera hoga .....
जवाब देंहटाएंkuch rachnayen mann me ghar bana leti hain
प्रेममयी अभिव्यक्ति, पते वाली।
जवाब देंहटाएंरचना बहुत ही सुन्दर है ..
जवाब देंहटाएंजिस शहर में इतना प्यार बसा हो वहां से कोई निकलना भी चाहें तो नहीं निकल सकता कुछ शक्तियां हैं जो बांध कर रखती हैं
जवाब देंहटाएंसपनों के घर में खुद का वजूद अर्पित कर दिया है आपने, सुन्दर रचना के लिए आपका धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंप्रेम से परिपूर्ण एक अप्रतिम प्रस्तुति..भावनाओं का सागर अंतर्मन को पूरी तरह भिगो देता है..आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
wah vandna dee ! sapno ke shahr me bhee 'uske' wajood kee kalpana bina samarpan ke kahaan? aapka 'uske' prati samarpan aur abhivyakti kee tarangon par sawar saptrangee bhavon ka ye shahar..wakai dil ko choo gaya.. badhai aur sadhuwad aapka ! naman !
जवाब देंहटाएंवाह क्या लाजबाब घर ढूंढा है .बहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंप्रेम से परिपूर्ण बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंखूबसूरत लगा आपके सपनो का शहर...जिसे शब्दों से देखा गया ...
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी इस रचना का लिंक मंगलवार 30 -11-2010
जवाब देंहटाएंको दिया गया है .
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
मोहक और भाव अभिरंजित रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर
तुम्हारी मुस्कराहट
जवाब देंहटाएंतैर रही हो और
मेरे पाँव थिरक रहे हों
तुम्हारी प्रेममयी झंकार पर
प्रेममय आभिव्यक्ति ...प्रेम का चरम सोपान इन शब्दों में सामने आया है ...शुक्रिया
चलते -चलते पर आपका स्वागत है
प्रेम में डूबी एक सुंदर हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति .....
जवाब देंहटाएंप्रेम से परिपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर
जानते हो ना
जवाब देंहटाएंकौन सी है वो जगह
वो है तुम्हारा ह्रदय
मेरे सपनो का शहर
wah wah vandana ji..........bahut hi sundar .very touching
... behatreen ... shaandaar rachanaa !!!
जवाब देंहटाएंbahut bhavbhari prastuti.shukamnaye .kabhi mere blog ''vikhyat ''par bhi aaye .
जवाब देंहटाएंbahut bhavbhari prastuti.shukamnaye .kabhi mere blog ''vikhyat ''par bhi aaye .
जवाब देंहटाएंह्रदय में सपनो का घर.. अदभुद सोच.. अदभुद अभिव्यक्ति.. बहुत सुन्दर.. मैं तो सोचता रह जाता हूँ प्रेम की उंचाई को..
जवाब देंहटाएंजी हाँ!
जवाब देंहटाएंआपने बहुत सुन्दर रचनाकारी की है!
--
हृदय ही तो है जो रोजृरोज नई पोस्ट लिखवा देता है♥
आना मेरी रूह के शहर--- मेरी भी कविता है। सुन्दर रचना बधाई।
जवाब देंहटाएंपूरी कविता प्रेम के शाश्वत रूप को अभिव्यक्त करती है ...... ऐसी रचना के लिए आप निश्चित ही बधाई की पात्र हैं...!!!!
जवाब देंहटाएंऐसे सपनो के शहर कितनो ने बसाने का सोचा होगा, लेकिन सपने सच होते भी है या नहीं, किसे पता..
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत खूबसूरत..प्यारी सी कविता..
प्रेम को मखमली अंदाज में परिभाषित करती हुई आपकी कविता हृदय-स्पंदन को झंकृत करती है !
जवाब देंहटाएं-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
वंदना जी,
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अहसास हैं आपके....सपनो की नगरी में तो सब कुछ मिलता है जो आपको पसंद हो.....बहुत खूब|
कविता की अंतिम पंक्ति पर आकर तंद्रा टूटी। आरम्भ में ही कविता मुझे एक दूसरी दुनिया में उठा ले गई तथा अंतिम पंक्ति ने यथार्थ में ला खड़ा किया। कुछ स्वप्निल, कुछ यथार्थ के बयार में एक सुखद यात्रा का अनुभव कराने के लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब वंदना जी ... आखरी पंक्तियाँ कमाल की हैं ...
जवाब देंहटाएंachi abhivykti
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना... गहरे एहसासात.... आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना...प्रेम को समर्पित भाव
जवाब देंहटाएंप्रेम स्वतः समर्पण का नाम है। जिसने यह किया,वह स्वयं ही प्रेममय है। कुछ अन्य महिला ब्लॉगरों की हताशा,निराशा,परपीड़क प्रवृत्ति और कुंठा के बीच,राहत देने वाली कविता।
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar manobhavo se rachit kavita...very nice...
जवाब देंहटाएंप्रेम में एक अकेला/अकेली हृदय संपूर्ण नगर सदृश्य लगे, वाह, इस बिम्ब के लिये आभार.
जवाब देंहटाएंवंदना जी, आप तो लिखती ही संगीत की तरह हो। यह संगीत भी आपकी मोहक मुस्कान से उतरा चला आता है। हर रचना बेहतरीन है। बस कारवां बनाते रहिए।
जवाब देंहटाएंह्रदय... सपनों का शहर... वाह... कितनी प्यारी कल्पना है...
जवाब देंहटाएंकितना प्यार है...
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंवाह...
जवाब देंहटाएंलाजवाब...
हमेशा की तरह बेहद सुन्दर प्रस्तुति...
बधाई स्वीकार करें |
प्रेम से ओत-प्रोत , मनभावन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंप्रेमपूर्ण अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंतुम ही तुम, तुम ही तुम , तुम ही तुम , तुम ही तुम
जवाब देंहटाएंजिधर देखूं, जहाँ जाऊं....
आप अपनी रचनाओं को प्रकाशित करवाइए....बहुत लोग इस प्रेम दीवानी से वंचित हैं. सुंदर रचना के लिए बहुत बहुत बधाई....
......बहुत खूब लिखा है
जवाब देंहटाएंप्रेम से परिपूर्ण रचना
तुम्हारा ह्रदय ...मेरा सपनों का शहर ...
जवाब देंहटाएंएहसासों से लबरेज खूबसूरत कविता !
ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना जिसके बारे में जितना भी कहा जाए कम है! लाजवाब प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंDeep rooted feelings expressed so well!
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावाभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएं.............उसी अपने घर में
जवाब देंहटाएंरहना चाहती हूँ
जानते हो ना
कौन सी है वो जगह
वो है तुम्हारा ह्रदय
मेरे सपनो का शहर...........
itna accha accha likhongi to kaisa honga ji .... hamko dukaan band karni hongi apni kavitao ki ...
badhai dil se . aur likho behtar likho isse bhi accha likho , yahi dua hai meri
vijay