आज तुम
बहुत याद आये
क्युं ?
नहीं जानती
शायद
तुमने पुकारा मुझे
तेरी हर सदा
पहुँच रही है
मन के
आँगन तक
और मैं
भीग रही हूँ
अपने ही खींचे
दायरे की
लक्ष्मण रेखा में
जानती हूँ
तड़प उधर भी
कम नहीं
कितना तू भी
बेचैन होगा
बादलों सा
सावन बरस
रहा होगा
मगर ना
जाने क्यूँ
नहीं तोड़
पा रही
मर्यादा के
पिंजर को
जिसमे दो रूहें
कैद हैं
तेरी खामोश
सदायें
जब भी
दस्तक देती हैं
दिल के
बंद दरवाज़े पर
अन्दर सिसकता
दिल और तड़प
जाता है
मगर तोड़
नहीं पाता
अपने बनाये
बाँधों को
ये क्या किया
तूने
किस पत्थर
से दिल
लगा बैठा
चाहे सिसकते
सिसकते
दम तोड़ दें
मगर
कुछ पत्थर
कभी नहीं
पिघलते
मैं शायद
ऐसा ही
पत्थर बन
गयी हूँ
बस तू
इतना कर
मुझे याद
करना छोड़ दे
शायद
मोहब्बत का
भरम टूट जाए
और कुछ पल
सुकून के
तू भी जी जाए
भ्रम में जीना भी अच्छा , सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंआपकी रचनाओं में जो व्यक्त-तड़प रहती है, उसे पढ़कर बहुत के मन भाव सम हो जाते होंगे। इस महत कार्य का आभार।
जवाब देंहटाएंमाफ़ कीजिये वंदना जी लेकिन आपकी कविता लिखने का ढंग कभी कभी अजीब लगता है, एक एक शब्द एक पंक्ति में लिखने से कविता थोड़ी बोझिल सी हो जाती है | अगर पूरा एक वाक्य एक पंक्ति में लिखा जाये और " क्यूँ, शायद, और " जैसे शब्द अगर एक पंक्ति में हो तो आपकी कविता निश्चित रूप से और अच्छी लगेगी पढने में ... उम्मीद है आप समझेंगी मेरी बात को...
जवाब देंहटाएंआपकी कविता के भाव निश्चित रूप से अच्छे होते हैं लेकिन उनकी अभिव्यक्ति और सुन्दर बन सकती है....
अनुभूति ...
फूलों की तरह नाज़ुक सम्वेदनाओं की हृदयस्पर्शी कविता.आभार. बहुत-बहुत शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएं... bahut sundar !!!
जवाब देंहटाएंमोहब्बत का भरम टूट जाये
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता है
मोहब्बत एक भ्रम ही तो है
आपकी प्रतिक्रिया के प्रतीक्षा में एक विरह वेदना "मेरी प्यारी सखी तेरे विरह कि पाती"
जवाब देंहटाएंhttp://svatantravichar.blogspot.com/2010/11/blog-post_17.html
Bahut badhiya..
जवाब देंहटाएंप्रेम के कितने आयाम जानती हैं आप सोच कर विस्मित हो जाता हूँ.. ... विलक्षण कविता!
जवाब देंहटाएंये भ्रम जिन्दगी में अगर पाल लिया तो टूटता नहीं है, फिर चाहे पत्थर से ही क्यों न सिर फोड़ते रहें. उसमें ही सुख मिलता है उनको. वो भ्रम उनके जीने का एक सहारा होता है की शायद कभी...................
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर शब्दों में भावों को सजाया है.
संवेदनाओं में डूब कर लिखी ... दिल की तड़प को गहरे से महसूस किया ही जैसे ... बहुत ही लाजवाब .
जवाब देंहटाएं"मुझे याद
जवाब देंहटाएंकरना छोड़ दे
शायद
मोहब्बत का
भरम टूट जाए"
सुन्दर अभिव्यक्ति.....लेकिन ये भरम टूटता भी तो नहीं है.
साधुवाद.
जब तक भ्रम है शायद तब तक हम है
जवाब देंहटाएंरचना बहुत शानदार बन पड़ी है
vandna jee, bahot achchi panktiyan hai...itna dard kyo dikhta hai aapki rachnao me?
जवाब देंहटाएंबस तू
जवाब देंहटाएंइतना कर
मुझे याद
करना छोड़ दे
शायद
मोहब्बत का
भरम टूट जाए
खूबसूरत अभिव्यक्ति ...कल ही तो लिखा था कि हकीकत में जीती हो फिर भ्रम क्यों ..:):):)
बहुत ही सुन्दर रचना. मेरे ने ब्लाग में आप सभी का स्वागत है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना, वंदना जी !
जवाब देंहटाएंक्या बात है आज तड़प झलक रही है कविता में.भावपूर्ण कविता.
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंकभी कभी भ्रमों से छुटकारा मिलना ही चाहिए।
.
बहुत ही सुन्दरता से व्यक्त बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंभावुक अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंमोहब्बत का भरम कभी नहीं टूटता।
जवाब देंहटाएंलाजवाब.......
जवाब देंहटाएंkavita ki sahajta ne ,kavita ko bahut hi manbhaavan bana diya hai , abhivyakti , khul kar aa gayi hai aur shabd jaise praan se bhare hue hai ....meri dil se abdhayi kabul kare ji
जवाब देंहटाएंMeri apni manyata hai ki jindagi mein kabhi bhi aisa prayas nahi karana chahiye jis se bilkul nirashavadi dristkon viksit ho jaye.Bhav pradhan post. Dhanyavad.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना....
जवाब देंहटाएंजीने के लिए भ्रम पालना भी बहुत जरूरी है, वर्ना जीना दुश्वार हो जाए..
जाने क्यूं तोड़ नहीं पाती मर्यादा के पिन्जर को, क्या बात है।
जवाब देंहटाएंआपकी इस रचना ने निशब्द कर दिया ... उम्दा वंदना जी ..
जवाब देंहटाएंभ्रम में ज़ीना ही तो मौहब्बत का नाम है
जवाब देंहटाएंभ्रम में ज़ीना ही तो मौहब्बत का नाम है
जवाब देंहटाएंमुझे याद
जवाब देंहटाएंकरना छोड़ दे
शायद
मोहब्बत का
भरम टूट जाए"
Shabdon ki kami hai meray paas.
भरम के सहारे ज़िंदगी काट जाती है. कभी कभी भरम ही यथार्थ होता है
जवाब देंहटाएं--
speechless... बहुत सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंवंदना जी,
जवाब देंहटाएंआजकल प्रेम से समन्धित विषयों पर बड़ी अच्छी रचनाएँ लिख रही हैं, कुछ ऊँचे ताल पर है ये रचना.....शुभकामनायें |
इतना प्यार दिखाती हो
जवाब देंहटाएंउस पर लुट जाना चाहती हो
फिर बार क्या सोच कर तुम
उससे खुद को यु बचाती हो
क्या तेरे दिल मै प्यार नहीं ?
फिर क्यु उसका अच्छा चाहती हो
अपने को यु पत्थर दिल कह कर
क्यु उसका दिल दुखती हो ?
प्रेम की तड़प को सुनाती सुन्दर कविता!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर......गहरी अभिव्यक्ति..........
जवाब देंहटाएंशायद
जवाब देंहटाएंमोहब्बत का
भरम टूट जाए
Very nice.......Badhai...
कशमकश सी है ...
जवाब देंहटाएंभ्रम में जीना अच्छा या इसका टूट जाना !
bahut aachha likhte hai aap itna dard kaha se leaati hai aap. bahut gahrai hai bhetarin
जवाब देंहटाएंbahut aachha likhte hai aap itna dard kaha se leaati hai aap. bahut gahrai hai bhetarin
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