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मंगलवार, 19 अक्टूबर 2010

युगों का प्रमाण क्या दोगे ?

दोस्तों,

आप सबके द्वारा कहानी को  इतना पसंद करने के लिए आप सबकी तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ .



कई दोस्तों ने कहा कि कहानी आगे बढाइये या कहानी में लम्बी कहानी का कथानक है मगर कभी- कभी कुछ अंत हमारे हाथ में नहीं होते नियति के होते हैं और ऐसे अंत भी होते हैं जहाँ लगता है कि अभी तो शुरू ही हुआ था और ये क्या हो गया मगर हमारे हाथ में कुछ नहीं होता .................कुछ ऐसे ही हालत को दर्शाने की कोशिश की है इस कहानी में ................ फ़िलहाल तो माफ़ी चाहती हूँ कि कहानी तो आगे नहीं बढ़ा रही मगर इस कहानी को लिखने के बाद कुछ ख्याल दिल में उपजे जिन्हें मैंने कविता में ढालने का प्रयास किया है .........अगली २-३ कवितायेँ इसी कहानी से प्रेरित अहसासों की बानगी हैं ..........आज पहली कविता लगा रही हूँ ............उम्मीद है उन भावों को आप समझेंगे और अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराएँगे.



लो 

आज मैंने 
ठुकरा दिया
तुम्हें भी 
तुम्हारे प्यार 
को भी
जिसे तुम
पवित्र 
नूर की बूँद
कहा करते थे 
तुम्हारा प्यार 
प्यार था कब ?
शायद 
एक धोखा था
नज़रों का 
तुम प्यार को
आत्मिक बँधन
कहा करते थे
मगर 
उस पल
क्या हुआ
जब तुम्हारा 
प्यार
आत्मिकता 
से हटकर
वासनात्मक
हो गया
शरीर  के
प्रलोभनों में 
फँस गया
प्यार भी
मर्यादित 
होता है
ये शायद
तुम नहीं जानते 
एक जन्म के
कुछ पल 
तो निभा 
ना पाए
युगों का
प्रमाण क्या दोगे ?

35 टिप्‍पणियां:

  1. एक जन्म के
    कुछ पल
    तो निभा
    ना पाए
    युगों का
    प्रमाण क्या दोगे ?

    मनमोहक प्रस्तुति...बधाई

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  2. स्त्री पुरुष दो आत्मा ही नहीं,दो शरीर भी होते हैं.सिर्फ आत्मिक सम्बन्ध का तर्क क्यों?

    अगर शरीर का प्रलोभन स्त्री और पुरुष के मन में ना हों तो दोनों के प्रेम सम्बन्ध का क्या आधार-आखिर दोनों का एक दूसरे से प्रेम क्या सिर्फ मन तक सीमित रहनी चाहिए.कौन स्त्री ऐसा चाहेगी.

    मैं नासमझ हूँ अभी, वंदना जी. मगर समझना चाहता हूँ कि अगर दो विपरीत लिंगी एक दूसरे के करीब आते हैं तो क्या वहां शरीर कि कोई भूमिका या प्रलोभन नहीं होता.

    और अगर कोई क्षण भर को ऐसा सोच भी गया तो जीवन भर के लिए उसका तिरस्कार क्यों?

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  3. लो
    आज मैंने
    ठुकरा दिया
    तुम्हें भी
    तुम्हारे प्यार
    को भी

    ये तो प्रेम की तौहीन करने वाले को करारा जवाब है।

    एक शे’र याद आ गया
    कदम रुक से गए हैं फूल बिकते देख कर मेरे
    मैं अक्सर उससे कहता था मोहब्बत फूल होती है

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  4. @राजीव जी,
    आपका आभार आपने कहानी पर अपनी प्रतिक्रिया दी।
    जहाँ तक आपके प्रशन का जवाब है तो उसके लिए यही कहूँगी की जो प्रेम शरीर पर सिमट जाये वो तो हर दूसरे स्त्री पुरुष को एक दूसरे से होता है और उससे आगे वो सोचना भी नहीं चाहता ये आज की सच्चाई है मगर कभी कभी कुछ किरदार ज़िन्दगी में एक आत्मिक रिश्ता चाहते हैं जो जिस्मो से ऊपर का हो ...........जहाँ सिर्फ एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान हो .........एक दूसरे के जज्बातों को समझने और महसूसने की समझ हो दोनों में ............जहाँ बिना कहे ही दूजे की जरूरत भी समझ आ जाये .............शायद कहीं ना कहीं हर इंसान इसी तलाश में भटकता फिरता है और उसे फिर ना पाने पर जिस्म की हद भेदना चाहता है और सोचता है की शायद तब वो उसे पा सके मगर ऐसा कभी संभव ना तो हुआ है ना होगा जब तक की प्रेम आत्मिक ना हो ...........तन के रिश्ते तो हर इंसान निभाता है और निभाता ही रहेगा हमेशा ही मगर मन के रिश्ते निभाने के लिए एक आग के दरिया से गुजरना पड़ता है वो भी मोम के घोड़े पर स्वर होकर ........और फिर जो उस घोड़े को पिघले बिना ही उस दरिया को पार कर जाये तब समझिये उसने कण की किवड़िया खड़कई है ............हाँ ये है की आज ऐसे प्रेम के दर्शन नहीं होते सभी कभी ना कभी शारीरिक प्रेम के आकर्षण में पड़ ही जाते हैं.


    अब देखिये ------मनोज जी की टिप्पणी……………एक ही शेर मे कितनी गहरी बात कह दी।

    कदम रुक से गए हैं फूल बिकते देख कर मेरे
    मैं अक्सर उससे कहता था मोहब्बत फूल होती है

    क्या इसके बाद भी कुछ कहने को रह जाता है।

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  5. वंदना जी,

    सिर्फ एक बात ......." सिर्फ अहसास है ये रूह से महसूस करो, प्यार को प्यार ही रहने दो...कोई नाम न दो"

    हमारा दुनिया को देखने का नजरिया हमेशा इस बात पर निर्भर होता है...की हमारे साथ क्या बीता?

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  6. Vandana, kalpana shakti tumaharee gazab kee hai! Thodi mujhe bhee dedo na!
    Kahani mai padh nahi payi hun....abhi pichhale taqreeban 3 hafton se ghar se bahar hun...laut ke hee mauqa milega padhneka...padhungi to zaroor!

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  7. बहुत सुन्दर .....
    लो
    आज मैंने
    ठुकरा दिया
    तुम्हें भी
    तुम्हारे प्यार को


    आपका कहानी का अंदाज पसंद आया !

    जवाब देंहटाएं
  8. @ और अगर कोई क्षण भर को ऐसा सोच भी गया तो जीवन भर के लिए उसका तिरस्कार क्यों?

    कुछ ग़लतियां ऐसी होती हैं कि
    सिर्फ एक क़दम उठा था ग़लत राहे शौक में,
    मंज़िल तमाम उम्र मुझे ढ़ूंढ़ती रही।

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  9. एक जन्म के
    कुछ पल
    तो निभा
    ना पाए
    युगों का
    प्रमाण क्या दोगे ?

    badi badi baate karne waalon ke liye ye lines beshaq katu hon magar hain to poori tarah sach hi ! bahut sundar kavita

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  10. आज के युवाओ को मन का प्रेम और मन से प्रेम ये दोनों ही बाते समझ नहीं आएँगी उनका प्रेम देह से शुरू हो कर देह पर ही ख़त्म हो जाता है |

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  11. anshumala ki baat se puri tarah sehmat hoon..vandna ji..jari rakhiye!

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  12. सैद्धांतिक रूप से सुन्दर कविता !

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  13. वाह! बहुत ही मार्मिक्। "युगों का प्रमाण क्या दोगे"

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  14. kahan se shuru karun
    bahut hi mast hai
    bahut badhiya hai
    lajavab hai
    behtreen hai

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  15. लो
    आज मैंने
    ठुकरा दिया
    तुम्हें भी
    तुम्हारे प्यार
    को भी...
    .......
    कुछ पल
    तो निभा
    ना पाए
    युगों का
    प्रमाण क्या दोगे ?

    -----

    बहुत ही उम्दा और लीक से हटकर
    रचना रची है आपने!
    --
    बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

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  16. प्यार पर तो दिव्या जी के ब्लॉग पर काफी बहस हुई थी...अच्छा है, विषय ही ऐसा है...

    वंदना जी क्या पति-पत्नी के बीच प्रेम नहीं होता..???? उनके बीच तो आत्मा का जुड़ाव भी है और शरीर का भी....

    मेरा मानना है प्यार तो आत्मा से शुरू होता है लेकिन क्यूंकि हम जीव हैं तो यह आत्मा से शरीर तक भी पहुंचेगा...सिर्फ आत्मीय लगाव ही प्रेम है इससे सहमत नहीं हूँ, हाँ सिर्फ शारीरिक लगाव भी प्रेम नहीं...

    अगर दोनों हैं तो वो सर्वोत्तम प्रेम है...

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  17. अंशुमाला जी से सवाल है की क्या सारे युवाओं की सोच यही है आज और अगर ज्यादातर युवाओं की है तो इसके पीछे कारण क्या है????

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  18. एक जन्म के
    कुछ पल
    तो निभा
    ना पाए
    युगों का
    प्रमाण क्या दोगे ?


    bahut khoob , kammal ki prastuti he aapki\

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  19. एक जन्म के
    कुछ पल
    तो निभा
    ना पाए
    युगों का
    प्रमाण क्या दोगे ?....

    बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति..आप की प्रत्येक रचना कुछ ऐसे जीवंत प्रश्नों को जगा जाती है जो दिल को गहराई तक छू जाते हैं...आभार .

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  20. क्षणों को निभा ले जाने से ही युगों का इतिहास तैयार होता है।

    जवाब देंहटाएं
  21. लो
    आज मैंने
    ठुकरा दिया
    तुम्हें भी
    तुम्हारे प्यार
    को भी

    -बहुत बेहतरीन...

    कहानी कहने का तरीका बहुत लाजबाब लगा, बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  22. सुंदर सधे हुए शब्द .... कहानी तो मैं नहीं पढ़ पाई पर यह कविता ही अपने आप में पूर्ण लग रही है.... प्रभावी रचना

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  23. इस बार मेरे ब्लॉग पर कोई कविता नहीं बल्कि एक चर्चा है क्या पुरुषों में भी असुरक्षा की भावना होती है...???क्या उन्हें भी डर सताता है ??? अपनी राय जरूर दें...

    असुरक्षा पुरुषों में भी..

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  24. काश के ऐसे शब्द मिल पाते जो इस रचना की तारीफ मैं लिख पाती वंदना जी .... बेहद खूबसूरत...

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  25. sundarta se ubhaara hai prem ko ...baareek sa antar bahut kuchh kah deta hai...mazaak mazaak men man ki bhavnayen zaahir ho jati hain

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