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सोमवार, 18 अक्टूबर 2010

कभी तो माफ़ करेगी वो !

वो --------वो ही थी. ना जाने कैसे  टकरा गयी थी ज़िदगी की राहों में चलते चलते. मैं तो जी ही रहा था अपने भीगे, उफनते ख्यालातों के साथ और वो ओस की बूँद सी शीतल, झरने सी झर- झर छनकती हुई जीवन में उतर आई . यूँ उसको अपने ख्यालों में जी रहा था . एक अक्स था जो आकार ले रहा था . मैं उसे जानना चाहता था . उस अक्स को साकार करना चाहता था मगर उम्मीद ना थी कि कभी वो बुत जीवंत हो उठेगा जो ख्वाबों की धरोहर था .......एक दिन वो ही अक्स साक्षात दिवास्वप्न सा विस्मित कर गया. 


वो बादल छंटने लगे थे जो अक्स को धुंधला रहे थे. एक मनोरम छटा ज़िन्दगी को हुलसाने लगी थी .अब  मेरे रोम- रोम में गीत प्रस्फुटित  होने लगे थे. हर गीत का आधार वो ही तो थी . गीत की हर सांस में उसका ही तो स्पंदन था .उसके सान्निध्य में गीत मुखर होने लगे थे. वो जो पीछे कहीं छूट गयी थी उस चंचलता का समावेश होने लगा था . हर राग , हर रस गीत में उतरने लगा था .वो जो चाँदनी सी छा गयी थी , सुरों सी उसकी झंकार जब भी मन के तारों को झंकृत करती , नव सृजन हो जाता था. वो मेरे वजूद का हिस्सा नहीं थी बल्कि मेरा वजूद जैसे उसी में एकाकार हो गया था.

उम्र के उस दौर में जब इच्छाएं शेष नहीं रहतीं , उसका आना जैसे बूढ़े बरगद पर हरियाली का  छा जाना था.जब भी उसे देखता तो कभी लगा ही नहीं कि मेरी उम्र अब उस दौर से आगे निकल चुकी है ............अपने को एक बार फिर भ्रमर सा गुंजारित ,उल्लसित महसूस करता ...............उस दौर में नवयुवक सा मेरा ह्रदय सीमाएं लांघने को आतुर रहने लगा. सारे जहाँ को चीख- चीख कर बताना चाहता था --------हाँ , मुझे मेरा अक्स मिल गया . मगर वो , वो तो सिर्फ अपने अंतस में ही कैद रहती थी. कभी किसी मर्यादा का उल्लंघन नहीं करती थी. ना ही मुझे बढ़ावा देती थी क्योंकि उम्र के उसी दौर से तो वो भी गुजर रही थी ...........वो तो सिर्फ एक सुखद अहसास के साथ खुश रहती थी और उसके आगे और कोई चाह नहीं रखती थी ...........कभी सीमाएं नहीं लांघती थी मगर मैं अपने प्रवाह में बहा जा रहा था. सागर सा उछाल मारता आकाश को छूने की चाह में और हर बार अपने ही आगोश में डूब  जाता.


फिर भी कहीं तो कुछ था जो मुझे मुझसे छीन ले गया था और एक दिन मैं ही अपनी सीमा अपनी मर्यादा का अतिक्रमण कर गया और उसे सिर्फ मजाक में एक अपशब्द कह गया ..........चाहे मेरा मजाक था ये सिर्फ मैं जानता हूँ मगर उसके लिए तो वो विश्वासघात था , मर्यादा का हनन था और वो मुझे हमेशा -हमेशा के लिए छोड़ कर चली गयी .कुछ मज़ाक ज़िन्दगी को मज़ाक बना जाते हैं उम्र भर के लिए .


आज सदायें भेजता हूँ मगर गुनाह की कोई माफ़ी नहीं होती, जानता हूँ इसलिए ना अब जी पाता हूँ और ना मर पाता हूँ. कहीं देखा है किसी ने अपने ही हाथों अपनी कब्र खोदते किसी को और फिर खुद ही उस कब्र में दफ़न होते.दोज़ख की आग में जल रहा हूँ . अपने वजूद को ढूँढ रहा हूँ . मेरे गीत मुझसे रूठ चुके हैं क्योंकि गीतों के प्राणों को तो मैंने खुद ही अपने हाथों फाँसी पर लटकाया था .

बस ज़िन्दा हूँ तो सिर्फ इसी आस पर------------कभी तो माफ़ करेगी वो !



39 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति वंदना जी ... मन की गहराई तक उतर जाने वाली ...

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  2. टूटे कांच के बर्तन जुड़ भी जाये पर दाग रह जाती है ...
    विश्वास एक बार टूटे कि फिर नहीं जुड़ता
    सुन्दर प्रस्तुति !

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  3. कमाल का लिखा है
    ..........आभार वंदना जी

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  4. बहुत ही भावनात्मक रचना...दिल तक उतर गयी आपकी यह प्रस्तुति...
    मेरे ब्लॉग पर इस बार...

    ज़िन्दगी अधूरी है तुम्हारे बिना. ....

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  5. वंदना जी,

    बधाई.....इस बार आपने कुछ अलग लिखा है.......कुछ अनछुआ, अनकहा...बहुत सुन्दर.....एक गीत याद आ गया .........."न उम्र की सीमा हो, न जन्म का हो बंधन....जब प्यार करे कोई तो देखे केवल मन"

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  6. जिन्दगी इन्ही भावनाओं के चक्र का दूसरा नाम है ...शानदार भावनात्मक अभिव्यक्ति ...

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  7. आप कि भावाभिब्यक्ति मुझे बहुत अच्छी लगती है |
    बहुत अच्छी रचना

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  8. एक सुन्दर सपनो का महल जो ऊपर के तीन पैराग्राफ में खडा हुआ, उसे वंदना जी, आपने अगले दो पाराग्राफ में धराशायी कर दिया.
    यह जीवन का सरलीकरण है.जीवन और प्रेम का ऐसा क्लाइमेक्स,थोड़ी जल्दबाजी में कहानी समेत दी आपने.
    ऊपर के तीन पैराग्राफ का विपुल शब्द-सौंदर्य-भाव दिल को तरंगित करने वाले हैं.

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  9. 6.5/10


    बहुत सुन्दर पोस्ट
    शब्दों का जादू गहरा असर छोड़ रहा है

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  10. कई बार हम अनजाने में ऐसे ही कितने ही दिल तोड़ देते हैं। अच्‍छी रचना के लिए बधाई।

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  11. मन को छूने वाली कहानी है
    इंसान कई बार ऐसी गलतीयाँ कर देता है जिनकी उसे कभी माफी नही मिलती
    मार्मिक रचना के लिए बधाई

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  12. कहानी का प्लाट आपने बहुत ही बढ़िया लिया है!
    --
    इस एपोसोड को आगे भी चलाइएगा!

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  13. bahut din baad aaya lekin aana safal hua....
    ye kaisa roop darshya hai samjh nahi aata kya kahuin.....
    bahut accha likha hai

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  14. राजीव जी से सहमत.. अभी भावना का सागर हिलोरें ले रहा था कि `धडाम' !! पत्थर थोड़ी देर से आते तो क्या कोई दिक्कत थी ?
    सुन्दर अभिव्यक्ति.!

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  15. बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति

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  16. गलतियां कौन नहीं करता ? क्या वो नहीं करती ? क्या उसको पता नहीं कि गलती को स्वीकार करनें वाले को माफ नहीं करना भी एक गलती है !

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  17. इस बार मेरे नए ब्लॉग पर हैं सुनहरी यादें...
    एक छोटा सा प्रयास है उम्मीद है आप जरूर बढ़ावा dengi...
    कृपया जरूर आएँ...

    सुनहरी यादें ....

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  18. आपकी कहानी भी कविता सी लग रह है.. बहुत सुन्दर.. भावपूर्ण .. हम भी बहुत दूर चले गये..

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  19. बहुत ही भावपूर्ण शब्दों में पिरोई सुन्दर अभिव्यक्ति ....

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  20. बहुत ही बढ़िया रचना....गद्य में भी कविता जैसा आनंद ..बहुत खूब.

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  21. बहुत सुन्दर भावपूर्ण और मर्मस्पर्शी प्रस्तुति....बधाई .

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  22. आपसी प्रेम और विश्वास की नींव पर टिके संबंधों में एक दूसरे का अपमान किसी विश्वासघात से कम नहीं. अंतर्द्वद्वं और प्रायश्चित की अंतर्ज्वाला से दग्ध ह्रदय के दारूण व्यथा की सुंदर मर्मस्पर्शी काव्यात्मक प्रस्तुति. आभार.
    सादर
    डोरोथी.

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  23. आपसी प्रेम और विश्वास की नींव पर टिके संबंधों में एक दूसरे का अपमान किसी विश्वासघात से कम नहीं. अंतर्द्वद्वं और प्रायश्चित की अंतर्ज्वाला से दग्ध ह्रदय के दारूण व्यथा की सुंदर मर्मस्पर्शी काव्यात्मक प्रस्तुति. आभार.
    सादर
    डोरोथी.

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  24. बहुत उम्दा लेखन, वन्दना जी ! बहुत कुछ जो आपने अनकहा रख छोड़ा है उस ने आनन्द और उत्सुकता को और बढा दिया ।

    यद्यपि प्रस्तुत गद्य अपने आप में पूर्ण है तथापि कथानक एक लम्बी कहानी होने कि क्षमता रखता है !

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  25. kabhi to maaf karegi wo....

    a line that takes to to eternity. bohot bohot sundar lekhan..too good

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  26. बहुत जबरदस्त....करीब से गुजरी...

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  27. कभी-कभी कोई कहानी हमारे समक्ष किसी आईने की तरह हमारे प्रतिबिम्ब से हमारा साक्षात्कार कराती है. यह कहानी बहुत हद तक मुझे झकझोर देती है, इसके शब्द मुझे भीतर तक कुरेदती है., ऐसा लगता है जैसे किसी ने मेरे लिये शब्द गढे है, मेरे जीवन के कुछ अन्शो को किसी ने चुपके से चुराकर अपनी लेखनी को गति देने की चेष्टा की है. और मुझे लगता है एक कहानीकार यही पर सफल हो जाता है जब वह जनसाधारण के मानस पटल को टटोलकर कुछ लिखने का प्रयत्न करता है या फिर किसी एक पाठक को भी जब कभी यह प्रतीत हो जाये कि यह कहानी उसके जीवन से मेल खाती है तो किसी कहानी और कहानीकार का मनोरथ सफल हो जाता है.
    शुभकामनओ के साथ

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  28. jab jab maryadaon ki seema langhi jati hai aisi hi marmantak peeda sahani padti hai ..bahut kuchh kho jata hai ...

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