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मंगलवार, 13 जुलाई 2010

देवता बन नहीं पाते

उर का मंथन करता 
विचारों का मंदराचल 
सोच के गहरे सागर में
छुपे , डूबे रत्नों को 
निकालने की कोशिश 
करता , मगर 
कभी सार्थक तो 
कभी निरर्थक 
प्रश्नों के झंझावात
उर मंथन से निकले 
हलाहल को पीने 
पर विवश करते 
मगर हलाहल को
पीने वाला हर बार 
शिव नहीं होता
इच्छाओं के सुनहरी 
पंखों की अभिलाषा
हमेशा कामधेनु सी 
पूर्ण नहीं होती
ख्यालों पर ख्वाबों 
की मोहिनी
कितना भी डालो 
ख्याल मोहित 
हो नहीं पाते 
और उर मंथन से 
निकले अमृत को
पी नहीं पाते
देवताओं सा आचरण 
कर नहीं पाते
आसक्ति को छोड़ 
नहीं पाते
मोह के मकडजाल 
में फँसे
लोभ की दलदल 
में धँसे
अहंकार से ऊपर
उठ नहीं पाते
कामनाओं के 
वशीभूत हो
क्रोधाग्नि में जलते 
पल- पल खुद से ही
लड़ते रहते हैं 
पर कभी सुधापान 
कर नहीं पाते
आसुर वृत्ति को 
धारण करने वाले
इंसान , इंसान ही रहते हैं
देवता बन नहीं पाते

36 टिप्‍पणियां:

  1. Adami insaan bhi bana rahe to bahut hai...yahan to daity ban jate hain!
    Bahut achha kiya hai tumne yah ur manthan!

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  2. आसुर वृत्ति को
    धारण करने वाले
    इंसान , इंसान ही रहते हैं
    देवता बन नहीं पाते

    बिलकुल सटीक रचना...

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  3. samagrta me yadi dekha jaay to kavita gahre arth vyakt karti hai.

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  4. इन्सान में आसुरी प्रवृत्ति का प्रादुर्भाव उसे
    शैतान बनाता जा रहा है!

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  5. हलाहल को पीने वाला शिव नही होता ....
    क्या बात कही है आपने ... सच है शिव बनने के लिए हलाहल से आयेज भी बहुत कुछ पाना होता है ... लाजवाब अभिव्यक्ति ...

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  6. बेहतरीन रचना ! बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
    वैसे आजकल तो देवता भी देवत्वछोड़ चुके हैं ...

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  7. वंदना जी इंसान इंसान ही बना रहे तो बेहतर है। देवता बनकर तो वह औरों से बहुत दूर हो जाएगा। केवल मंदिरों में पूजा जाएगा और सिर्फ श्रद्धा के काम आएगा। इसलिए इंसान न तो देवता बने न शैतान बने। मुश्किल यह है कि आज इंसान ढूंढने पर भी नहीं मिलते। हां कहीं कहीं इंसानियत नजर आ जाती है।

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  8. तीन स शुद्ध साहित्यिक सृजन.. :)

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  9. ासुर प्रवृति को धारण करने वाले----।
    लेकिन मुझे लगता है कि असुर प्रवृति वाले इन्सान भी नही बन पाते। अच्छी लगी कविता। बधाई

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  10. इंसान की सीमाओं पर सटीक दृष्टि ....
    ये सीमाएं हैं ...कमजोरियां नहीं..

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  11. आसुरी वृत्ति को धारण करने वाला भी देवता बन सकता है बशर्ते की उसकी प्रवृत्ति आसुरी न हो. कीचड़ में भी कमल खिलता है. हरिश्चंद्र ने अश्मशान में भी सत्य का त्याग नही किया . शराब बेचने वाला धार्मिक हो सकता है.
    वृती का अर्थ तो पेशा है..क्यों..!

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  12. आसुरी वृत्ति को धारण करने वाला भी देवता बन सकता है बशर्ते की उसकी प्रवृत्ति आसुरी न हो. कीचड़ में भी कमल खिलता है. हरिश्चंद्र ने अश्मशान में भी सत्य का त्याग नही किया . शराब बेचने वाला धार्मिक हो सकता है.
    वृत्ति का अर्थ तो पेशा है..क्यों..!

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  13. हलाहल पिया भी कहाँ जाता है...सब यूँ ही उगल देते हैं...
    दार्शिनिक भाव लिए हुए बेहतरीन रचना

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  14. इंसान और भगवान वाह क्या लिखा है

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  15. हर इंसान के भीतर एक शैतान बैठा रहता है
    यह शैतान जब निकलकर बाहर आता है तब ही सारी गड़बड़ शुरू हो जाती है.
    आपकी रचना बहुत ही जबरदस्त है, लेकिन कभी-कभी मैं सोचता हूं यदि झूठ नहीं होता तो सच को कौन पूछता। इसी तरह शैतान न होता तो क्या इंसान का महत्व बढ़ता।

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  16. क्या बात है आज तो सारा दर्शन उड़ेल दिया :) बहुत पते के बात कह दी.

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  17. कुछ याद आ रहा है........बशीर बद्र की नज्म
    घरों पर नाम थे नामों के साथ चेहरे थे
    बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला

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  18. भावनाओं की अभिब्यक्ति उस वास्तविकता को प्रकट करती है जो आज के जीवन कहीं न कहीं हमारे जीवन को प्रभावित करती है. मगर हलाहल को
    पीने वाला हर बार
    शिव नहीं होता
    और ये तो वो हलाहल है जो आदमी के मन में हैवानियत को जगाता है . आस्था और अनास्था के बीच पनपने वाला विश्वास राज टूटता है लेकिन हम भी इस आस में है की जो होगा सब अच्छा होगा .कवि को बधाई हो.
    शुभकामनाओं के साथ आपका
    किशोर कुमार जैन गुवाहाटी असम

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  19. बहुत उम्दा और बेहतरीन रचना!! बधाई लो!

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  20. .
    shaandaar prastuti !

    devta banne mein kya khak maza hai....maza to insaan banke pizza khane mein hai.

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  21. बहुत सुन्दर रचना...
    _____________________
    'पाखी की दुनिया' के एक साल पूरे

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  22. बहुत सुन्दर कल्पना और कृति

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  23. bahut sundar baat rakhi..

    गौरतलब पर आज की पोस्ट पढ़े ... "काम एक पेड़ की तरह होता है."

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  24. ab main kya kahun ?
    ni:shabd ho gai hoon
    aap kitab ke bare main gambheerata se sochen .
    koi javab nahi hai

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