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बुधवार, 7 जुलाई 2010

मौत से बड़ी सौगात मिली हो जिसे

चाँदनी से झुलसे जिस्म को
जब चाँदनी भी जलाने लगे 
रूह  पर पड़ते फालों पर
आहों की सुइयाँ गुबने लगें
पाँव में छाले पड़ने लगें
छालों को अश्कों से सींचने लगें
तब किस आग से  सहलाऊँ
कौन सा वो दीप जलाऊँ कि
छालों पर भी छाले पड़ने लगें
तेरी दी हर सौगात पर
चाहे जिस्म सारा सिसकने लगे
रूह भी फ़ना होने लगे
दर्द के सीने पर पाँव रखकर
दर्द जब हद से गुजरने लगे
हर अहसास दफ़न होने लगे
मौत से बड़ी सौगात मिली हो जिसे
उसे दर्द का अहसास कैसे मिले?

31 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ! सुन्दर रचना !
    रूह पर पड़ते फालों पर
    आहों की सुइयाँ गुबने लगें
    क्या बात है !

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  2. बहुत सुन्दर रचना ,,, और एक दर्द भरी प्रस्तुति
    सादर
    प्रवीण पथिक
    9971969084

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  3. दर्द की इन अनुभूतियों को कैसे जियें !

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  4. Sabdon ko bade achhe dhang se piroyan hain aapne, jisse dard ka ahsaas kuch jyada hi hota hai.

    kavita pasand aai. Aur iske liye aapko BADHAAI.

    जवाब देंहटाएं
  5. Sabdon ko bade achhe dhang se piroyan hain aapne, jisse dard ka ahsaas kuch jyada hi hota hai.

    kavita pasand aai. Aur iske liye aapko BADHAAI.

    जवाब देंहटाएं
  6. मौत के सामने तो हर शै छोटी पड़ जाती है ... दर्द की तो क्या हैसियत .... सुंदर लिखा है ...

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  7. बहुत सुन्दर भाव अभिव्यक्ति. से लबरेज रचना...आभार ...

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  8. एक एक शब्द ...में दर्द का अहसास ......है इस रचना में .......बहुत खूब .

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  9. दर्द हद से गुज़र जाये तो दवा होता है.....बहुत सुन्दर रचना...

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  10. मौत से बड़ी सौगात मिली हो जिसे
    उसे दर्द का अहसास कैसे मिले?
    दर्द को घनीभूत करती रचना ..

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  11. मौत से बड़ी सौगात मिली हो जिसे
    उसे दर्द का अहसास कैसे मिले?
    --
    दार्शनिकता से परिपूर्ण रचना!
    --
    बहुत ही मार्मिक और यथार्थ का चित्रण!

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  12. तब किस आग से सहलाऊँ
    कौन सा वो दीप जलाऊँ कि
    बेहद दर्द भरे अल्फाज.....

    regards

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  13. दिल की गहराईयों से निकली हुई एक अच्छी रचना. बहुत खूब!

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  14. वंदना जी की प्रस्‍तुत कविता के आधार पर मैंने उसे दो भागों में बांटा है। उनकी अनुमति से (जो उन्‍होंने दी है) मैं इन्‍हें यहां प्रस्‍तुत कर रहा हूं-

    ।।एक।।

    तपन से झुलसे जिस्म को
    जब चाँदनी भी जलाने लगे

    रूह पर पड़ते फालों पर
    आह सुइयाँ गपाने लगें

    पाँव में पड़ते छालों में
    जब अश्क यूं जाने लगें

    लगाऊं कौन सा मरहम
    कि चैन मुझको आने लगे

    ।।दो।।

    किस आग में अब नहाऊं
    कौन सा दीप अब जलाऊं

    तेरी दी हर सौगात मेरी
    किससे मन तेरा बहलाऊं

    जिस्म चाहे सिसकने लगे
    क्‍यों होंठ अपने न हिलाऊं

    दर्द जो सीने पर रखे पांव
    सुख को किस तरह मनाऊं

    हर अहसास दफ़न होता है
    इस को किस तरह भुलाऊं

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  15. वंदना जी इतना दर्द कहां से लेकर आई है आप.
    मैं तो खामोश हो गया हूं
    बेहतर.. शानदार.

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  16. दर्द को सुन्दर अल्फाज में बांधा...यह भी एक कला है.

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  17. ओह कमाल का लिखा है...मौत से बढ़कर भी सौगात तो अथाह दर्द का ही हो सकता है...दिल को झकझोर देने वाली रचना...

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  18. मौत से बड़ी सौगात मिली हो जिसे
    उसे दर्द का अहसास कैसे मिले?

    वाह वन्दना जी .....इतनी अच्छी अभिव्यक्ति .....इतने गहरे भाव ....

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  19. बेहद सशक्त प्रस्तुति. अत्यंत ही सुन्दर. बधाई.

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  20. दर्द जगाती कविता है.. दर्द जगा गई..

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  21. रूह पर पड़ते फालों पर
    आहों की सुइयाँ गुबने लगें
    पाँव में छाले पड़ने लगें
    छालों को अश्कों से सींचने लगें
    तब किस आग से सहलाऊँ
    कौन सा वो दीप जलाऊँ कि
    छालों पर भी छाले पड़ने लगें

    दर्द और एहसास से परिपूर्ण एक भावपूर्ण रचना....बधाई

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  22. बहुत सुन्दर भाव अभिव्यक्ति।

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  23. बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति।
    रूह पर पड़ते फालों पर
    आहों की सुइयाँ गुबने लगें
    दर्द की पराकाष्ठा । शुभकामनायें

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  24. गहरे भाव लिये हुये सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

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