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शुक्रवार, 2 जुलाई 2010

प्यार तो तब था जब ..........

जब भी मिले 
जिस्म मिले
रूह ने तो
रूह को कभी 
छुआ ही नहीं
कभी किसी को
किसी  से 
प्यार हुआ 
ही नहीं
सिर्फ जरूरतों 
के ख्वाहिशमंद
रिश्तो ने कभी
इक दूजे को
पाया ही नहीं
यूँ ही ज़िन्दगी
गुजार गए 
दिखावटी प्यार 
के भरम में 
मगर प्यार के
तो कभी
करीब से भी 
गुजरा ही नहीं
तेरी मौत पर
रोने वाला 
दो दिन में
तुझको भूल गया 
बता फिर
प्यार वहाँ 
कहाँ हुआ ?
प्यार तो तब था 
जब , तेरे विरह में
उसकी सांस भी
थम  जाती
धड़कन उसकी भी
रुक जाती
रूह से रूह
मिल जाती 

42 टिप्‍पणियां:

  1. Uske qadmon ki aahat aati rahi,zindagi door se guzarti rahi..." Tumhari rachna padh,dimag me yah panktiyan aa gayin!

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  2. wah ji wah vandana ji !!
    kya baat hai , har din ek naya dhamaka aapki taraf se ho raha hai

    sahi baat ko badi spashtta se aapne kah diya hai
    bahut khoob
    sundar shabd rachna padhne ko mil rahin hain
    yahi pyaar ke naam ka dhokha hai , jo der baad samajh aata hai
    shukriya.

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  3. आज तक समझ नहीं पायी कि प्यार होता क्या है?
    खूबसूरत अभिव्यक्ति है....मुझे तो लगता है कि सच्चा प्यार आत्मा और परमात्मा के बीच ही हो सकता है...बाकी तो सब ख़याल ही है ..

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  4. sabkee apanee apanee samajh hai..........
    pyar dikhta nahee mahsoos kiya jata hai.......dikhava to bus chalava hai..........

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  5. जब भी मिले
    जिस्म मिले
    रूह ने तो
    रूह को कभी
    छुआ ही नहीं
    ......vaah, bahut badhiya.

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  6. सुंदर और यथार्थ कविता है। पर ऐसा लगा कि इसे मैं पहले पढ़ चुका हूँ। कहीं पहले भी प्रकाशित हुई है क्या?

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  7. अच्छी अभिव्यक्ति ! वंदना जी की रचनाएं अन्तरंग मनोभावों को सरल शब्दों में बयान करती हुई बहुत संवेदनशील होती हैं..जो पाठक को भी अपने साथ बहा ले जाने में सक्षम होती हैं..शुक्रिया और आभार वंदना जी !

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  8. पर वंदना जी रूह के लिए जिस्‍म जरूरी है। और रूहों को मिलने के लिए भी। वही तो माध्‍यम है। सच है कि असली प्‍यार तो रूह के मिलने से ही होता है, पर कोई माध्‍यम तो चाहिए।

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  9. प्यार को लेकर एक बहुत ही गहन अभिव्यक्ति !
    --
    इस सशक्त रचना को प्रस्तुत करने के लिए आभार
    के साथ बधाई!

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  10. ये प्यार क्या बला है ...मुश्किल सवाल है ..पर आपकी कविता बहुत सुन्दर है .

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  11. जब भी मिले
    जिस्म मिले
    रूह ने तो
    रूह को कभी
    छुआ ही नहीं
    सुन्दर रूहानी एहसास और भाव

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  12. दिनेश जी
    ये कविता पहली बार ही ब्लोग पर लगी है …………शायद किसी दूसरी कविता का आपको ध्यान हो।

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  13. वन्दना जी
    क्या लिखा है अंत तो गजब का है

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  14. दिल की गहराई से लिखी गयी एक सुंदर रचना , बधाई

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  15. aapki rachanaa achhi hai ,.. vastavikata saath me liye huye hai..


    arsh

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  16. हमने देखी है इन आंखों की महकती खूशबू.... गीत की याद आ गई।
    सचमुच रूहानी अहसास से तो किसी का कोई नाता नहीं रहा।
    इस पवित्रता की शायद अब जरूरत नहीं रह गई है। बाजार ने सारे रिश्तों की वाट लगा दी है।
    क्या बढि़या लिखा है आपने।
    बहुत ही अच्छा लगा।

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  17. mazaa aa gaya, yaqeenan yeh panktiyaan aane wale lambe samay tak pyar ke maayane kee talash ke lie prerit karatee rahengee, bahut achchhee prastuti ke liye bahut saree badhai

    जवाब देंहटाएं
  18. खूबसूरत अभिव्यक्ति है....मुझे तो लगता है कि सच्चा प्यार आत्मा और परमात्मा के बीच ही हो सकता है...बाकी तो सब ख़याल ही है .

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  19. कविता हमेशा की सी ताज़ी और बेहतरीन.. आजकल फंसा हुआ हूँ तो नियमित नहीं आ पा रहा.. क्षमाप्रार्थी हूँ..

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  20. प्रेम की अलौकित अभिव्‍यक्ति.

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  21. प्रेम की अलौकिक अभिव्‍यक्ति. धन्‍यवाद.

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  22. जब भी मिले
    जिस्म मिले
    रूह ने तो
    रूह को कभी
    छुआ ही नही
    बहुत अच्छी लगी पँक्तियां। अखिरी पाँक्तियां भी बहुत अच्छी हैं धन्यवाद। बधाई

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  23. वंदना जी,
    नमस्ते!
    छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए, ये मुनासिब नहीं आदमी के लिए....
    कविता बेहद उम्दा है! इस मतलबी दुनिया को आईना दिखाती हुई....
    लेकिन आपसे सहमत नहीं हूँ.......
    जिस्म ना मिले, दिल भी ना मिले, फिर भी रूहों का रिश्ता हो सकता है!
    है ना!
    एक और चीज़ आपसे शेयर करना चाहूँगा... एक एस एम एस जो मेरे परम मित्र ने भेजा था.....
    कौन किसको दिल में जगह देता है?
    पेड भी सूखे पत्ते गिरा देता है!
    हम वाकिफ हैं इस दुनिया के चलन से!
    मरने पर कोई अपना ही जला देता है!

    उन्हें मैंने ये जवाब दिया था:
    ये सच है ए मेरे रफीक, हमें आना और जाना है!
    किसी को दफ्न होना है, किसी को अपनों ने जलाना है!
    मगर जब तक हम और तुम हैं मतलबी इस दुनिया में!
    मुझे बस इश्क करना है, तुम्हे उसको निभाना है!

    आजकल बैचलर बहुत परेशां है....
    इट्स टफ टू बी ए बैचलर!

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  24. Vahut hi sunder tareeke se aapne pyaar ko samjhaane ki koshish ki hai.
    Padhkar achha lagaa.

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  25. खूबसूरत अभिव्यक्ति है...
    आप की ये नाचीज़ जितनी तारीफ करे कम है...
    धन्याद क़ुबूल करे !

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  26. बहुत कम लोग ऐसे होते हैं, जिन्हें प्यार का सच्चा अर्थ पता होता है ...
    ज्यादातर जो प्यार का दम भरते हैं ... उन्हें बस जिस्म का आकर्षण होता है ...
    सुन्दर रचना !

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  27. सक्रिय ब्लागर होने के बाद भी आपका बहुत दिनो से शेष फिर और खानाबदोश पर आना नही हुआ,
    ब्लागिंग के टिप्पणी आदान-प्रदान के शिष्टाचार के मामले मे मै थोडा जाहिल किस्म का इंसान हूं लेकिन आपमे तो बडप्पन है ना...!

    डा.अजीत
    www.monkvibes.blogspot.com
    www.shesh-fir.blogspot.com

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  28. सच कहा ... आज प्यार के मायने बदलने लगे हैं ... खूबसूरत अभिव्यक्ति है.....

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  29. सच है, हार्दिक बधाई.
    ढेर सारी शुभकामनायें.

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  30. कविता तो अच्छी है लेकिन इसमे विचार नया नहीं है इसी विचार को कुछ नये तरीके से कहने की कोशिश करें ।

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  31. ab roohen kahaan milati hai. deh hi kafee fai. yahi sachchaai hai.baharhaal kavitaa kavitaa ka dard samajhaa ja sakataa hai.

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  32. pahli baar aaki rachna padhne ka avsar mila suchmuch behtarin hai...aapki kavitaaye...

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