तेरी गली के
कोने पर
घर के सामने
खड़ा वो
गुलमोहर का पेड़
आरामगाह
है मेरी
बस आखिरी
आरजू
आखिरी वसीयत
है मेरी
वहीँ बिस्तर
लगा देना मेरा
कब्रगाह बनवा
देना मेरी
मुझे वहाँ
सुला देना
और चेहरा मेरा
खुला रखना
बाकी जिस्म
सारा दबा देना
बस दीदार
होता रहेगा तेरा
और रूह को
सुकून मिलता रहेगा
अताउल्लाखान के गाये एक शेर में ऐसा ही कहा गया है। आपने फिर से याद दिला दिया, अताउल्लाखान ने बड़ी ही रोतली आवाज में गाया था उसे।
जवाब देंहटाएंभावुक रचना
जवाब देंहटाएंआईये जानें ..... मैं कौन हूं !
जवाब देंहटाएंआचार्य जी
are waah
जवाब देंहटाएंवाह, क्या बात है ! रचना में नायक ने प्रेम की हद तक गुजर जाने की खूब ठानी !
जवाब देंहटाएंvandana ji,
जवाब देंहटाएंbahut hi diljali/ painfull kavita hai ji .. padhkar hi kuch kuch hone laga ....
wah wah wah..
bhai , maine bhi ke kavita likhi hai ,aapka aashirwad mil jaaye to krupa hongi !!
वाह|
जवाब देंहटाएंvaah....bahut sundar rachna.
जवाब देंहटाएंKya bat hai. bahut hi acchi kavita.
जवाब देंहटाएंबस दीदार
जवाब देंहटाएंहोता रहेगा तेरा
और रूह को
सुकून मिलता रहेगा
वाह ...मन को छू गयी ये रचना...आरामगाह के लिए वसीयत....सुन्दर अभिव्यक्ति
Amar prem !
जवाब देंहटाएंJo mar kar bhi jeevit rahe..
Vandna! Kitni saralta se kah jati ho aisi gahri baaten!
जवाब देंहटाएंआह ..!!
जवाब देंहटाएंक्या ज़ुनून है
जवाब देंहटाएंक्या हसरत है
बहुत सुन्दर रचना ... कमाल
बहुत सुन्दर सकून ही तो जरूरी है जिन्दगी के लिये। अच्छी रचना के लिये बधाई
जवाब देंहटाएंवाह..!
जवाब देंहटाएंलगन हो तो ऐसी ही!
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आज तो कमाल की मर्मस्पर्शी रचना लिखी है!
सुन्दर भाव,सुन्दर शब्दविन्यास.
जवाब देंहटाएंवंदना जी आपकी कविता के भाव तो बहुत सुंदर हैं। पर माफ करें, कितने सारे विरोधाभास हैं इसमें।
जवाब देंहटाएंवंदना जी चेहरा खुला रखने से बात नहीं बनेगी। आपको गुजारिश आंख खुली रखने के लिए करनी पड़ेगी। और मिट्टी या कब्र में तो केवल जिस्म होगा। रूह तो वहां होगी ही नहीं। अगर उस जिस्म में रूह होगी तो फिर वह कब्रगाह नहीं होगी। कब्रगाह मृत शरीरों की होती है।
वैसे सच्चा प्यार करने वाले तो मन की आंखों से दीदार करते हैं।
Komal bhavnaon kee sundar abhivyakti.achchhee lagee apkee kavita.
जवाब देंहटाएंPoonam
Hilaa ke rakh diyaa aapane!!!
जवाब देंहटाएंPyaar ho to aisaa..
Ati sundar.
बहुत ही भावुक और मर्मस्पशी रचना.....
जवाब देंहटाएंऐसा जुनून तो ना देखा और ना सुना। हाँ देवदास बेचारा जरूर पेड़ के नीचे मरा। बढिया है वन्दना जी ऐसा जुनून भी अच्छा नहीं।
जवाब देंहटाएंkitna pyara vasiyat........jaane ke baad bhi ruh ko uski jarurat hai.......:)
जवाब देंहटाएंbehtareen!!
bahot badiyaa rachanaayen hai
जवाब देंहटाएंispired from yourself.
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आपकी यह रचना मजेदार है.
जवाब देंहटाएंअब अगली का इंतज़ार है...
दर्द उमड़ पड़ा है कविता में मैम..
जवाब देंहटाएंमरने के बाद भी मेरी आँखे खुली रही ...
जवाब देंहटाएंइंतेहा है आपके इंतज़ार की ... कमाल का लिखा है ...
बहुत सुन्दर जज्बा है।
जवाब देंहटाएं--------
भविष्य बताने वाली घोड़ी।
खेतों में लहराएँगी ब्लॉग की फसलें।
wah ji wah
जवाब देंहटाएंkya rachna hai
bahut khoob.
kavita acchi hai. badhaiyan aapko
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