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शनिवार, 12 जून 2010

इसे क्या नाम दूं?

भोर की 
सुरमई 
लालिमा सी
मुस्काती 
थी वो
नभ में 
विचरण 
करते
उन्मुक्त 
खगों सी
खिलखिलाती 
थी वो
और सांझ के 
सिंदूरी रंग के
झुरमुट में
सो जाती 
थी वो
वो थी 
उसकी 
पावन 
निश्छल 
मधुर 
मनभावन 
मुस्कान 
हाँ --एक नवजात 
शिशु की
अबोध 
चित्ताकर्षक
पवित्र मुस्कान  

31 टिप्‍पणियां:

  1. ठुमक चलत रामचन्द्र.. बाजत पैजनिया.. बाल सुलभ मुस्कान पर कौन ना हो जाए फ़िदा???

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  2. बहुत खूबसूरती से पवित्र मुस्कान को लिखा है...

    अब नाम में क्या रखा है...बस देखो और महसूस करो

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  3. बहुत सुन्दर भावों से सजी है यह कविता, आभार |

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  4. हाँ --एक नवजात
    शिशु की
    अबोध
    चित्ताकर्षक
    पवित्र मुस्कान
    वाह क्या चित्र खींचा है आपने

    प्रश्न का उत्तर फिर प्रश्न ही रहेगा :
    "इसे क्या नाम दूं?"

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  5. सुन्दर भावों से सजी रचना.

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  6. मनमोहक अभिव्यक्ति....सुन्दर रचना...सुखद लगा पढना...
    आभार..

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  7. आईये जानें .... क्या हम मन के गुलाम हैं!

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  8. Shishu ki muskaan! Atuly...anupmey!Vandana,kya khoob likhti ho!

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  9. वन्दना जी
    आप तो हमेशा ही बहुत अच्छा लिखती हैं ।बचपन की निश्छल मुस्कान को भला क्या नाम दे सकते हैं ........... हिन्दीसाहित्य पर अपनी रचना पर आपके विचार पढ़कर बहुत खुशी हुई धन्यवाद

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  10. वंदना जी आपकी कविता पढकर मुझे अपनी दो पंक्तियां याद आ गईं-
    जब भी मुस्कराया है कोई देखकर मुझको/अपनी शख्सियत का मैंने नया मायना देखा।

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  11. देवदूत से ज्यादा या कम क्या ..!!

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  12. निश्छल मुस्कान को बहुत ही अनुपम रूप से लिखा है ... बहुत सुंदर रचना ....

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  13. अति सुंदर रचना!...एक एक शब्द में गूढ अर्थ छिपा हुआ है!

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  14. हाँ --एक नवजात
    शिशु की
    अबोध
    चित्ताकर्षक
    पवित्र मुस्कान

    बहुत ही सशक्त रचना!
    सोचने को बाध्य करती है!

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