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बुधवार, 9 दिसंबर 2009

आखिरी ख़त

मेरा ये आखिरी ख़त
और ये अन्तिम शब्द
क्या तुम्हें
उद्वेलित कर पाएँगे?
मेरी ह्रदय व्यथा को
क्या ये बयां कर पाएँगे?
गर कर दिया बयाँ
तो क्या तुम
उसे समझ पाओगी?
गठबंधन में बँधे
जब हम तुम
वचन लिया था दोनों ने
इक दूजे को चाहेंगे
साथ न छोड़ेंगे इक पल
फिर कौन सी
मुझसे खता हुई
जिसकी ये सज़ा मिली
क्या प्रेम में मेरे
कोई खोट था
या कोशिशें मेरी
नाकाम रही
तुम्हारी इक -इक अदा पर तो
मेरे दिल-ओ-जान गए
तुम्हारी हर ख्वाहिश को
मैंने अपना बनाया
तेरे लबों के तबस्सुम पर तो
दिल मेरा मचलता था
कौन सी ख्वाहिश ऐसी
जो न पूरी कर पाया मैं
कौन सी ऐसी हसरत थी
जिसे समझ न पाया मैं
फिर भी किस खता की
सज़ा दे चली गई तुम
पल-पल युगों सा बीतता है
और पल -पल में
युगों सी मौत मरा मैं
बाबुल के अँगना जाकर
पिया का दामन भुला दिया
एक चाहने वाले को
खतावार बना दिया
मेरे हर प्रयास को
निराशा का जामा पहना दिया
हर दरवाज़ा तुमने बंद किया
हर आस को तुमने तोड़ दिया
घनघोर निराशा फैली है
अब जीवन बगिया मेरी सूनी है
किस आस के सहारे जियूँ में
किसको अपना कहूँ मैं
तुम बिन जग
सूना लगता है
जीना मौत से
बदतर लगता है
रोज काँटों की
सेज पर सोता हूँ
हर पल तुम्हारे
लिए ही रोता हूँ
अब न रहा वश ख़ुद पर
कोई राह न सूझती है
तुम बिन प्रिया
जीवन की डगर अधूरी है
कैसे अधूरा जियूँ मैं
ये ज़हर का घूँट
कैसे पियूँ मैं
अब न सहा जाता है
तुम बिन रहा न जाता है
दरो- दीवार में
तुम्हारा
अक्स ही
नज़र आता है
इसलिए
विदा चाहता हूँ तुमसे
अन्तिम विदाई देना मुझे
कर सको तो इतना करना
अन्तिम यात्रा में आकर
दीदार अपना दिखा जाना
जो जीते जी न मिला
वो सुकून रूह को तो
दिला जाना
इस आखिरी ख़त को भी
चिता के साथ जला देना
जैसे मुझे भुला दिया
वैसे ही हर याद को वहीँ जला देना
अब आखिरी सलाम लो मेरा
लो अब ख़ुद को
ख़त्म मैं करता हूँ
और तुमसे
अन्तिम विदा मैं लेता हूँ

25 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत लाजबाब भावो को कविता में उतारा है आपने, किसी के अन्दर का एक मर्म !

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  2. अब आखिरी सलाम लो मेरा
    लो अब ख़ुद को
    ख़त्म मैं करता हूँ
    और तुमसे
    अन्तिम विदा मैं लेता हूँ

    बहुत ही मार्मिक लिखा है!
    मन उद्वेलित हो गया!

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  3. बहुत ही भावपूर्ण रचना है।बहुत सुन्दर!!

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  4. प्रेम विरह और अंतिम विदाई को अभिव्यक्त करती बेहद आत्मिक रचना .........
    दिल के बेहद करीब से गुज़रती हुई .........

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  5. उफ़! आज तो आपने निशब्द कर दिया....

    कौन सी ऐसी हसरत थी
    जिसे समझ न पाया मैं
    फिर भी किस खता की
    सज़ा दे चली गई तुम

    इन पंक्तियों ने तो दिल छू लिया.....

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  6. बहुत ही भावपूर्ण निशब्द कर देने वाली रचना . गहरे भाव.

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  7. PEEDA KO ITNE PRABHAVI SHABDON ME AAPNE ABHIVYAKTI DI HAI KI KYA KAHUN......

    ATI MARMIK ABHIVYAKTI....

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  8. एक बहुत ही आत्मिक और अपनी सी बात साहित्यिक अंदाज़ में पसंद आई .

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  9. पीड़ा की पराकाष्ठा को उकेर कर रख दिया है आपने...
    बहुत ही संदर...परन्तु मार्मिक...

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  10. अब आखिरी सलाम लो मेरा
    लो अब ख़ुद को
    ख़त्म मैं करता हूँ
    और तुमसे
    अन्तिम विदा मैं लेता हूँ

    बहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति है।दिल को छू गयी । शायद जाने वाले से अधिक पीडा पीछे रह जाने वाले को होती है । शुभकामनायें

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  11. विरह की पीड़ा को शब्द पहना दिए हैं आपने और वो भी किस कुशलता से....वाह...
    नीरज

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  12. वाह वंदना जी आपने अद्भुत सुंदर और भावपूर्ण रचना लिखा है! बहुत अच्छा लगा !

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  13. aapne is rachna men prem ki peeda ko bakhoobi bayan kiya hai.....bhavon ko sundarta se abhivyakt kiya hai...badhai

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  14. एक पुरूष की भावनाओ के ज्वार की चरम परिणति को शब्दो मे सवारने का आपका सार्थक प्रयास सफल होता प्रतीत होता है, हार्दिक बधाई.

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  15. कौन सी ऐसी हसरत थी
    जिसे समझ न पाया मैं

    बहुत ही भावपूर्ण रचना है !

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  16. bahut hi marmsparshi rachna.....
    Gahare bhawon ko liye .....
    Dil chhu jane wali .........

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  17. मर्म स्पर्शी रचना. प्रभावशाली प्रस्तुति !!

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  18. वंदना जी
    अभिवन्दन.
    महिला होकर भी पुरुषों की विरह वेदना पर आपके द्वारा लिखी गई रचना बड़ी मार्मिक और हृदय स्पर्शी बन पड़ी है. पढ़ते पढ़ते ऐसा लगा जैसे किसी विरही की सत्य घटना हो.
    बिल्कुल रेखा चित्र-सा सामने उभर कर आ गया.
    इस रचना के लिए हमारी हार्दिक बधाई स्वीकारें.

    मुझे जो कुछ पंक्तियाँ बेहद अच्छी लगी वे हैं :-
    इक दूजे को चाहेंगे
    साथ न छोड़ेंगे इक पल
    नाकाम रही
    ****
    पल-पल युगों सा बीतता है
    और पल -पल में
    युगों सी मौत मरा मैं
    ****
    मेरे हर प्रयास को
    निराशा का जामा पहना दिया
    ****
    जो जीते जी न मिला
    वो सुकून रूह को तो
    दिला जाना
    ****
    जैसे मुझे भुला दिया
    वैसे ही हर याद को वहीँ जला देना
    ऐसा ही लिखते रहें.

    - विजय

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  19. बहुत ही भावपूर्ण निशब्द कर देने वाली रचना . गहरे भाव.

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  20. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन में शामिल किया गया है... धन्यवाद....
    सोमवार बुलेटिन

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