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शुक्रवार, 4 दिसंबर 2009

सूखे दरख़्त का दर्द

अपनी दुनिया में मस्त हैं सभी
हम ही सबसे विलग हैं
जितनी रात गहरी होगी
अकेलापन अभी और बढेगा
हर काले गहराते साये के साथ
तन्हा सफर कैसे कटेगा
दिन भी गुजरा, साँझ भी गुजर गई
रात का दामन ही क्यूँ गहरा है
रात के बढ़ते पहरों पर अब
वक्त का न कोई पहरा है
जीवन की इस सांझ का
अब न कोई सवेरा है
पल - छिन पंख लगाकर
अब नही उड़ पाते हैं
इक - इक पल में गहराते
अकेलेपन के साये हैं

33 टिप्‍पणियां:

  1. इक - इक पल में गहराते
    अकेलेपन के साये हैं
    अकेलेपन के साये साथ तो है. साये भी तो साथ निभाते है.
    सुन्दर एहसास की रचना

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  2. सच कहा ........ उम्र के साथ साथ सूनापन बढ़ता जाया है ...... अंधेरा छाता जाता है जिसकी कोई सुबह नही होती ....... अनुपम कृति है ............

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  3. इक - इक पल में गहराते
    अकेलेपन के साये हैं..सच में कई बार यह अकेलापन हावी हो जाता है ..अच्छी लगी आपकी यह रचना शुक्रिया

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  4. बहुत ही अच्छा लिखा।
    सच बढती उम्र के साथ साथ अकेला पन भी बढता जाता है।

    जीवन की इस सांझ का
    अब न कोई सवेरा है
    पल - छिन पंख लगाकर
    अब नही उड़ पाते हैं
    इक - इक पल में गहराते
    अकेलेपन के साये हैं

    बेह्तरीन शब्दों का प्रयोग।

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  5. हमेशा की तरह एक बार फिर बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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  6. ढली दुपहरी, शाम गई,
    बीत जायेंगी रात सभी!
    आने वाला सुखद सवेरा,
    आस न छोड़ो सुमन कभी!

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  7. एक एक शब्द में सुंदर एहसास हैं..... बहुत सुंदर कविता......

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  8. दिल की गहरइयो में छुपे सन्नाटे को कुरेदते सुन्दर भाव !

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  9. इक - इक पल में गहराते
    अकेलेपन के साये हैं

    Aap bahut accha likhti hain Vandana ji..
    Main kam tipanni karti hun lekin padhti hamesha hun..aur aapki lekhni ko salam karke hi jaati hun...
    Hamesha ki tarah ek khoobsurat rachna..
    Badhai..

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  10. नहीं इतना अकेलापन का अहसास भी तो ठीक नहीं!

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  11. वक्त का न कोई पहरा है
    जीवन की इस सांझ का
    अब न कोई सवेरा है
    पल - छिन पंख लगाकर
    अब नही उड़ पाते हैं
    वंदना जी दिल को छू लेने वाली इस रचना के लिए बधाई
    सादर रचना

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  12. ... बहुत ही प्रभावशाली आब्जर्बेशन "सूखे दरख़्त का दर्द" !!!!!

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  13. पल - छिन पंख लगाकर
    अब नही उड़ पाते हैं
    इक - इक पल में गहराते
    अकेलेपन के साये हैं

    ek badhti umra ke ahsaas ka sunder shabd chitra. badhia vandana ji.

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  14. जीवन की इस सांझ का
    अब न कोई सवेरा है.....
    बहुत खूब लिखा है...
    बधाई हो !!!

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  15. बुजुर्गो की पीडा को रेखान्कित करती आपकी कविता व्यक्ति के अन्दर छिपे उस मर्म को स्पर्श करती है जो हमे रह रह कर भीतर तक उद्वेलित करती है. हम आखिर कैसी व्यवस्था का निर्माण करना चाह रहे है? क्या अपने खून पसीने से एक चमन को सीचकर हमारे अन्दर के व्यक्तित्व को पुष्पित कर इस मुकाम तक पहुचाने वाले उस माली का हमारे जीवन मे कोई स्थान नही? क्या हम इतने खुदगर्ज और स्वार्थी हो चुके है कि हमे अपने कर्ज चुकाने का भी कोई ग्यान नही. यदि जीवन के भागदौड मे अपनो के लिये कोई स्थान ना हो तो लानत है ऐसे प्रगति को जिसका गुणगान करते हुये हम कभी अघाते नही.

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  16. gehri samvedanaaoN ki
    bahut gehri abhvyaktee...
    kathya aur shaili
    dono prabhaavit karte haiN .

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  17. 'sukhe darakht ka dard' ne peedit kiya hai. is kavita me jitna kaha gaya hai, us se bahut adhik ankaha pankti-pankti se jhaank raha hai... ankahe ko thaam raha hun! achchhi bhaavpurn rachna !
    sabhivadan--anand v. ojha.

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  18. इन कविताओं में इतना अकेलापन क्यों होता है जी !

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  19. बहुत ही ख़ूबसूरत एहसास के साथ आपने भावपूर्ण रचना लिखा है! अत्यन्त सुंदर!

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  20. पल - छिन पंख लगाकर
    अब नही उड़ पाते हैं
    इक - इक पल में गहराते
    अकेलेपन के साये हैं
    wow!!!!!!!!!!!!1

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  21. इक - इक पल में गहराते
    अकेलेपन के साये हैं
    atayant gehara

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  22. इक - इक पल में गहराते
    अकेलेपन के साये हैं
    atayant gehara

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  23. रात के बढ़ते पहरों पर अब
    वक्त का न कोई पहरा है
    जीवन की इस सांझ का
    अब न कोई सवेरा है
    बहुत अच्छी रचना है
    अकसर
    निराशा के भाव चिन्तन का कारण बन जाते हैं
    शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

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  24. बहुत अच्छा लिखा आपने
    ढेरों आभार ...........

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  25. वंदना जी
    जैसे दुःख के बाद सुख , रात के बाद दिन , धूप के बाद छांव आती ही है . वैसे ही साँझ के बाद सवेरा भी आना तय है . उदासी टिकाऊ कहाँ होती है ? पर आपने उसे टिकाने की पूरी कोशिश की है .

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