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शनिवार, 28 नवंबर 2009

निशा का दर्द

रवि और निशा
कभी न मिल पाए
संध्या माध्यम भी बनी
मगर रवि ने तो
सिर्फ़ संध्या को चाहा
उसे ही अपना बनाया
अपना स्वरुप उसमें ही डुबाया
और निशा अपने
दर्द को समेटे
हर नई सुबह
भोर के उजाले पर
आस लगाये
टकटकी बांधे
अपने रवि का
इंतज़ार करती रही
मगर रवि ना कभी
निशा के दामन में झाँका
न उसके प्रेम की इम्तिहाँ
कभी जान पाया
निशा चातक सी
तरसती रही
सिसकती रही
और रवि ने ना
निशा का दर्द जाना
न ही उस ओर निहारा
मगर प्रतीक्षारत निशा
अपना इंतज़ार निभाती रही
सिर्फ़ एक दिन के
मिलन की चाह में
अपना पल -पल मिटाती रही
आस का दिया
हर क्षण जलाती रही
और फिर एक दिन
उसके इंतज़ार को
विराम मिला
जब संध्या से
मिलन को आतुर
रवि को ग्रहण ने
निगलना चाहा
उसके चेहरे पर
कालिमा का रंग
गढ़ना चाहा
अचानक निशा ने
अपना दामन फैला
रवि को अपने
आगोश में समेट लिया
उसकी ज़िन्दगी भर की
बेरुखी को भुला
अपने दामन में पनाह दी
आज रवि और निशा का
अद्भुत मिलन था
जिस इंतज़ार में
उसने अपना हर पल
जलाया था
आज उसके
हर जलते पल पर
रवि ने अपने प्रेम का
मरहम लगाया था
आह ! शायद आज रवि
संध्या और निशा के
प्रेम का फर्क जान पाया था

21 टिप्‍पणियां:

  1. संध्या है ही निशा और रवि का धुंधलके का मिलन -प्रतीक माध्यम से भावपूर्ण कविता !

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  2. आह ! शायद आज रवि
    संध्या और निशा के
    प्रेम का फर्क जान पाया था
    जी हाँ या तो रवि या फिर आप जैसी कवि (कवयित्री) की पारखी नज़र ने खूबसूरती से पहचाना और जाना है

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  3. पहले तो रवि निशा के दामन में चाँद सितारे डाल कर , संध्या के साथ घूमता रहा लेकिन सही समय पर जब निशा ने उसका साथ दिया तो --
    रवियों के लिये एक संदेश

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  4. रवि और निशा
    कभी न मिल पाए
    संध्या माध्यम भी बनी
    मगर रवि ने तो
    सिर्फ़ संध्या को चाहा

    रवि और सन्ध्या प्रतिदिव निलते हैं मगर
    कुछ ही क्षणों के लिए!
    सुन्दर अभिव्यक्ति!

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  5. आह ! शायद आज रवि
    संध्या और निशा के
    प्रेम का फर्क जान पाया था...

    इन पंक्तियों ने दिल को छू लिया..... प्रतीकों को कितनी खूबसूरती से आपने शब्दों में ढाला है......

    बहुत अच्छी लगी आपकी यह कविता...

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  6. शुरू की सात आठ पंक्तियों में आपने कितनी उम्दा और गूढ़ बाते कह दी अपनी इस ख़ूबसूरत रचना के माध्यम से , बधाई !

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  7. KAMAAL KI ABHIVYAKTI HAI .... DIN AUR RAAT KE MILAN KO SANDHYA HI MILA PAATI HAI .... SUNDAR PRATEEKON KA PRAYOG KIYA HAI RACHNA MEIN ...

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  8. एक अच्छी और भावपूर्ण कविता पढने को मिली

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  9. बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण कविता लिखा है आपने जों सराहनीय है! बधाई!

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  10. Trikon mein atki sndhya और ravi की prem कहानी .......bahoot खूब ......!!

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  11. रवि और सन्ध्या प्रतिदिव निलते हैं मगर
    कुछ ही क्षणों के लिए!
    सुन्दर अभिव्यक्ति
    पूरी कविता का सार शायद इन पँक्तियों मे सिमट गया है आभार्

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  12. बहुत अच्छी कविता लिखी है आपने । रचना गहरा प्रभाव छोडऩे में समर्थ हैं ।

    मैने अपने ब्लाग पर एक कविता लिखी है-रूप जगाए इच्छाएं । समय हो तो पढ़ें और कमेंट भी दें-
    http://drashokpriyaranjan.blogspot.com

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  13. शुरूआत अच्छी मगर फिर रिपीटीशन औऱ आखिर में जो कहा उसे थोड़ा पहले कहते....खैर क्षमा कीजिए पहली बार ही आलोचना आपके वचन पढ़ कर ही ऐंसा किया
    शुभकामनाएं

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  14. Prem chirantan yatra hai sach hi ismen "better to travel than arrive"

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  15. kya baat hai
    mann khush ho gaya apki rachan to padh kar
    badhai ho aapko!

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