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बुधवार, 18 नवंबर 2009

ज़ख्मों के फूल

कुछ मौन मौन होकर भी कितने मुखर होते हैं
और कभी शब्दों को भी जुबान नही मिलती

कभी मेरे मन को सहलाया होता
तो दर्द तेरी उँगलियों में सिमट आया होता

नासूरों पर कभी अश्क टपकाया होता
तो अश्क को भी जलता पाया होता

मोहब्बत के ज़ख्मों की इम्तिहाँ तो देख
हर ज़ख्म में अपना ही चेहरा पाया होता

कभी किसी रोयें को छुआ होता
तो हर रोयें पर लिखा अपना ही नाम पाया होता

26 टिप्‍पणियां:

  1. कभी मेरे मन को सहलाया होता
    तो दर्द तेरी उँगलियों में सिमट आया होता


    OMG! in panktiyon ke liye kya kahun.... utar gayin hain dil ke andar tak....

    bahut hi achchi kavita....
    ==================================
    aapke sunder comment ka bahut bahut dhanyawaaad...

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  2. नासूरों पर कभी अश्क टपकाया होता
    तो अश्क को भी जलता पाया होता

    खूबसूरत भाव की पंक्तियाँ।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  3. कुछ मौन मौन होकर भी कितने मुखर होते हैं
    और कभी शब्दों को भी जुबान नही मिलती
    silence is the best speaker
    listen the sound by heart.
    जी हाँ! बहुत खूब

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  4. कुछ मौन मौन होकर भी कितने मुखर होते हैं
    और कभी शब्दों को भी जुबान नही मिलती

    कभी मेरे मन को सहलाया होता
    तो दर्द तेरी उँगलियों में सिमट आया होता
    वंदना कमाल की कविता है । ये दो तो बहुत ही बडिया हैं बधाई इतनी सुन्दर रचना के लिये

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  5. कभी किसी रोयें को छुआ होता
    तो हर रोयें पर लिखा अपना ही नाम पाया होता

    bahut bahut gajab,,,
    badhai

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  6. kabhi kisi royen ko chhua hota...............apna hi naam paya hota. .........wah. rom rom men tu hi tu. behatareen. vandanaji, badhaai.

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  7. कुछ मौन -मौन होकर भी कितने मुखर होते हैं .....बहुत ही सुन्दर....अल्फाज़ सीधे दिल को छूते हैं

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  8. "कभी मेरे मन को सहलाया होता
    तो दर्द तेरी उँगलियों में सिमट आया होता"

    बेहद खूबसूरत और मुलायम पंक्तियाँ । आभार ।

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  9. हम तो समझे थे भर देगा वक्त का मरहम इन सबको
    यादों का मौसम आकर 'जख्मों के फूल' खिलाता है
    शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

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  10. वाह वंदना जी आपने बेहद ख़ूबसूरत कविता लिखा है! आपकी कविता की हर एक पंक्तियाँ दिल को छू गई! इस शानदार कविता के लिए ढेर सारी बधाइयाँ!

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  11. कभी किसी रोयें को छुआ होता
    तो हर रोयें पर लिखा
    अपना ही नाम पाया होता

    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!

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  12. कुछ मौन मौन होकर भी कितने मुखर होते हैं
    और कभी शब्दों को भी जुबान नही मिलती...kuch moun kitna kuch kah dete hai..or kuee shabad mil ke bhi baat nahi bna pate.....man sahlati huee kavita......

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  13. कभी मेरे मन को सहलाया होता
    तो दर्द तेरी उँगलियों में सिमट आया होता...

    haan kaash aisa hua hota...

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  14. नासूरों पर कभी अश्क टपकाया होता
    तो अश्क को भी जलता पाया होता ...

    BAHUT ACHHE SHER HAIN ... LAJAWAAB LIKHA HAI ... IS SHER NE SABSE JYAATA PRABHAAVIT KIYA ..

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  15. कभी मेरे मन को सहलाया होता
    तो दर्द तेरी उँगलियों में सिमट आया होता

    bahut hi nazuk ahsaas hain....unglion me dard ka simtna...btfl

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  16. मैम,

    बहुत अच्छा कहा है :-

    कभी मेरे मन को सहलाया होता
    तो दर्द तेरी उँगलियों में सिमट आया होता

    सादर,


    मुकेश कुमार तिवारी

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  17. बहुत अच्‍छा लि‍खा है, बधाई।

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  18. कुछ मौन मौन होकर भी कितने मुखर होते हैं
    और कभी शब्दों को भी जुबान नही मिलती_ sunder such bayan kiya hai aapne vandnaji.mere blog per tashreef lane ka shukriya.

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