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मंगलवार, 17 नवंबर 2009

ज़िन्दगी के रंग कैसे- कैसे

उजासों की कतरन
सांसों की धड़कन
लम्हों की सिहरन
अरमानों की थिरकन
भोर की गुनगुन
ज़िन्दगी को जीवंत करती


सांझ का पतझड़
रात का खंडहर
अहसासों का अकाल
चेहरों का बांझपन
दिलों का सूनापन
रिश्तों का बेगानापन
प्रतीक्षित लम्हों का खोखलापन
ज़िन्दगी को मृत्युतुल्य बनाता


आह ! ज़िन्दगी
कब , कैसे
भोर की लालिमा से
सांझ की कालिमा बन जाती

ज़िन्दगी पहेली है न सहेली
ज़िन्दगी एक ऐसी खोज है
जिसकी कोई मंजिल नहीं

अब लब सील लो
या खुलकर जी लो
निर्भर तुम पर करता है

ये आशिकी है न दीवानगी
खामोश सफ़र की कोई इन्तेहा सी
करती है गुफ्तगू
क्या जी सकते हो मुझे सच में ?
है इतनी जिन्दादिली ?

गर हो कोई जवाब तो आ जाना ज़िन्दगी के पालने में झूलने
मीठी लोरी सुना सुला देगी
स्वप्न मीठा फिर दिखा देगी
भोर में फिर जगा देगी
अपने होने के अर्थ बता देगी ...





15 टिप्‍पणियां:

  1. ज़िन्दगी को जीवंत करती
    यह लाइन पहले ही होती तो बहुत अच्छा लगता!

    ज़िन्दगी की जीवंत करती
    उजासों की कतरन
    सांसों की धड़कन
    लम्हों की सिहरन
    अरमानों की थिरकन
    भोर की गुनगुन

    बहुत ही सुन्दर चित्रगीत लगाया है।
    बधाई!

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  2. रोजमर्रा की जिन्दगी के अनुभवो का सार
    प्रस्तुत कर दिया आपने

    जवाब देंहटाएं
  3. ज़िन्दगी को मृत्युतुल्य बनाता
    आह ! ज़िन्दगी
    कब , कैसे
    भोर की लालिमा से
    सांझ की कालिमा बन जाती

    yeh panktiyon...ne dil ko choo liya .....

    bahut achchi lagi yeh kavita.....

    जवाब देंहटाएं
  4. आह ! ज़िन्दगी
    कब , कैसे
    भोर की लालिमा से
    सांझ की कालिमा बन जाती

    बहुत खूब !

    जवाब देंहटाएं
  5. इसी का नाम तो जीवन है ....
    पल पल रंग बदलती है ........
    कभी सुबह तो कभी रात होती है .....

    अच्छी रचना है .........

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  6. जिंदगी के रंगों को आपने बहुत नजदीक से महसूस किया है।
    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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  7. raat ka khandahar./ aur chehare ka banjhaapan... dono ne tod ke rakh diyaa hai mujhe... khubsurat ehsaasaat ke saath rangi hai yah rachanaa... badhaayee


    arsh

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  8. आह ! ज़िन्दगी
    कब , कैसे
    भोर की लालिमा से
    सांझ की कालिमा बन जाती
    ज़िन्दगी को बहुत करीब से निहारती भावपूर्ण रचना.

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  9. चेहरों का बांझपन
    ये प्रतीक बहुत अच्छा लगा। शायद भावहीनता से आपका मतलब है।

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  10. सच
    ज़िंदगी के रंग अजब
    और निराले होते हैं
    कब , कैसे
    भोर की लालिमा से
    सांझ की कालिमा बन जाती है.
    बहुत खूब लिखा है
    वंदना जी आपने
    - विजय

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  11. उजासों की कतरन
    सांसों की धड़कन
    लम्हों की सिहरन
    अरमानों की थिरकन
    बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति .

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  12. COMPLETE PICTURE OF LIFE .
    बहुत कुछ जो मन को छू गया

    जवाब देंहटाएं

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