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मंगलवार, 6 अक्टूबर 2009

मत छूना

मत छूना
रूह से भी कभी
मेरी रूह को
इस जनम में
मैं अमानत हूँ
किसी और की
तेरा प्यार नही
गैर हूँ तेरे लिए
मेरी पाकीजा रूह
तेरे रूहानी प्रेम के
लिए नही बनी
इस जनम तो
रूह की क़ैद से
आजाद करो
फिर किसी जनम में
शायद तेरे रूहानी
प्रेम की ताकत
मेरी रूह को पुकारे
और हमारी रूहें
उस जनम में
अपने रूहानी प्रेम की
प्यास बुझायें
उस पल तक प्रतीक्षा करो
और तब तक
मत छूना
रूह से भी कभी
मेरी रूह को

30 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर रचना. श्लेष अलंकार का भी सुन्दर प्रयोग.

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  2. इस जनम तो
    रूह की क़ैद से
    आजाद करो
    फिर किसी जनम में

    मनोभावों का सुन्दर चित्रण है।
    बधाई!

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  3. अत्यंत सुन्दर बधाई स्वीकार करे

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  4. behterin poem...
    "मेरी पाकीजा रूह
    तेरे रूहानी प्रेम के
    लिए नही बनी"

    bus ek baat jo padhte wakt bahut khatki 'Ruh' word ka baar baar aana....

    ...waise aapne ise 'intentionaaly' dala lagta hai.
    Tab bahut badhiya hai !!

    hamesha ki tarah lazaab post.
    sabse acchi lines pehle ki chaar:
    मत छूना
    रूह से भी कभी
    मेरी रूह को
    wah !!

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  5. बहुत सुन्दर भाव व्यक्त किए है आपने। और साथ ही गहरी बात भी कह दी। माफी चाहूँगा आपकी कहानी नही पढ पाया अभी।

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  6. इस रूहानीपन ने बहुत खूब बयान किया है.
    मत छूना
    रूह से भी कभी
    मेरी रूह को
    इस हद तक की सात्विकता और भावानुभूति
    बहुत खूब

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  7. क्या लहजा है क्या शब्दों का तालमेल है और साथ में भाव कमाल की नज्म बनी है बहुत खूब र्मानियत और मर्यादा की बातें हैं बहुत बहुत बधाई

    अर्श

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  8. भई मै तो रूह मे विश्वास ही नही करता । लेकिन इसका रूपक बढ़िया है ।

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  9. Do vibhinn rachnayen saath,saath...ek chahat bulatee huee...doosaree aagaah kartee huee..'mat chhoonaa'...pyar kee parbhasha kitnee kathin hai..Gulzaar wo geet hamesha se behad achha laga," hamne dekhee hai un aakhon kee mahaktee khushboo,haathse chhooke ise rishonka ilzaam naa do...'!
    Behad sundar rachnayen hain aapkee...

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  10. वंदनाजी,
    'रूह' और 'रूहानी'--इन दो शब्दों की प्रयोगधर्मी रचना कतिपय अन्तरंग भावों की सुन्दर अभियक्ति बन गई है !

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  11. मन के तारों को झंकृत कर देने वाली रचना है, बधाई।
    करवाचौथ और दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं।
    ----------
    बोटी-बोटी जिस्म नुचवाना कैसा लगता होगा?

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  12. बहुत ही ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने!

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  13. jism aur rooh aapki kvita men dwaitwad aur adwaitvad ka dwand sundarta se ubharta hai ..badhai
    naturica par suniyeकविता -mix

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  14. सामाजिक ताने के बीच उलझी एक नायिका के मनोभावो को प्रतिबिम्बित करती यह कविता अन्दर तक जैसे उद्वेलित कर देती है, वैसे प्यार का सच्चा स्वरूप भी यही है, मर्यादाओ की परिधि मे प्रेम अपने आन्तरिक सौन्दर्य के साथ और अधिक तीव्रता से सुवासित होता है.

    वैसे भी एक गीत की चन्द पन्क्तिया शायद इसी तरह के रुहानी प्रेम को प्रतिबिम्बित करने के लिये गीतकार ने लिखी होगी- एक अहसास है ये रूह से महसूस करो, प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम ना दो.

    सुन्दर और प्रभावशाली कविता, एक बार फिर से बधाई आपको.

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  15. एक शेर याद आ गया:
    तू किसी और की जागीर है ऐ जाने ग़ज़ल
    लोग तूफ़ान उठा लेंगे मेरे साथ न चल..."
    बहुत सुन्दर रचना है आपकी...बधाई...
    नीरज

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  16. रूहानी बात की बात ही अनूठी है ....

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  17. प्यारका हर रूप अच्छा ही होता है .भाव सुंदर हों तो भाषा खुद ब खुद अच्छी हो जाती है .

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