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रविवार, 2 अगस्त 2009

पुरानी यादें

आज कॉलेज के वक्त की एक पुरानी कॉपी के कुछ पन्ने पढने लगी तो सभी पुरानी यादें ताज़ा हो गयीं । उन्ही में से कुछ यादें आज आप सबके साथ बाँट रही हूँ .ये सब मेरे लिखे हुए तो नही हैं मगर जिसने भी लिखे हैं बहुत ही खूब लिखे हैं .उस वक्त मैं अपने को वक्त दे पाती थी तो सब पढ़ पाती थी और जो पसंद आ जाता था उसे अपनी यादों में सजा लेती थी।


इश्क के मकबरे के गुम्बद की ऊंचाई बहुत ऊंची है
कब्र में फनाई के अफ़साने खुदे हैं जिसकी सच्चाई
सिर्फ़ वहीं सच्ची लगती है । जन्नत और दो़जख
के मोहरबंद लिफाफे खुदा ने ख़ुद तसदीक किए हैं ।
कब्र की पाक जाली में रेशमी इच्छा मैं भी बांधूंगी
और देखूंगी कि मेरे मोहरबंद लिफाफे की तहरीर
क्या होगी ।


अनुरोध

मेरे तन से नही , दोस्त
मेरे मन से प्यार करो
मेरी उपस्थिति को ,
मेरे सामीप्य को ही ,
फकत न चाहो ,
एक रस्म भर न निबाहो ,
प्यार की कोई हद नही होती
तुम यह प्रमाणित कर दिखलाओ
मेरे सपनो से प्यार करो ,
मेरे विचारों को सराहो
सही और इमानदार करो
मेरे ही पर्याय हो जाओ
अपना प्यार महान हो जाए
तुम तुम न रहो , "मैं " हो जाओ ।

24 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब
    पुरानी कापी के पन्ने, पुराने डायरी के पन्ने वास्तव मे जीवन के वो पन्ने है जो वक्त के साथ थोडे धुन्धले तो हो जाते है पर जब खुलते है तो परत दर परत खुलते ही जाते है.
    तुम तुम न रहो --
    उम्दा खयाल

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  2. मैं तुम का सहज विलयन ही प्रेम की आदर्श परिणिति है । प्रविष्टि का आभार ।

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  3. Behad sundar!

    http://kavitasbyshama.blogspot.com

    http://shamasansmaran.blogspot.com

    http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com

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  4. पुराने डायरी के पन्नों पर लिखी इबारतें
    आज भी प्रासंगिक है।
    आपने बहुत सही लिखा है-
    तुम तुम न रहो "मैं" हो जाओ।
    बधाई।

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  5. आपकी यादों ने हमारी यादों के भी झरोखे खोल दिये ।

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  6. तुम तुम न रहो "मैं" हो जाओ। बहुत खूब!
    बहुत बधाई!

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  7. अगर हमें कभी ख़ुशी के चंद लम्हों की तलाश हो तो ये यादों के झरोखोंमें जाकर बैठे तो चेहरे पर हजारो मुस्कान फुल बनकर खिल जायेगी ......

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  8. मेरे तन से नहीं
    मुझे मन से प्यार करो
    एक रसम भर ना निभाओ
    प्यार की कोई हद नहीं होती....

    बहुत खुबसुरत लिखा आपने....जीवन का
    इछत यथार्थ ......अमरजीत कौंके

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  9. वन्दना जी पुरानी यादें ताज़ा करना भी बहुत अच्छा लगता है कभी कभी
    ये डायरी भी बहुत खूबसूरत चीज़ है बहुत सुन्दर लिखती थी आप तब भी और अब भी बधाई

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  10. वन्दना जी,

    आपकी डायरी के कुछ हकीकत बया करती पन्नो को पढकर बहुत सुन्दर लगा,शायद आपके साहित्य की शुरूवात यही से हुई हो.

    मेरे तन से नही दोस्त मेरे मन से प्यार करो,

    बहुत सुन्दर पन्क्ति,

    किसने लिखी है आपने यह नही कहा,शायद कुछ याद हो.

    सादर
    राकेश

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  11. आज भी याद आती है पुरानी जींस और गीटार..

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  12. आज भी याद आती है पुरानी जींस और गीटार..

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  13. ज़बरदस्त अनुरोध है अपने लिए ,खूबसूरत रचना .एक संशय में आई थी यहाँ मगर अच्छा पढने को मिला .

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  14. mere paas shabd nahi hai vandana , is kavita ke liye ... bhaav apne charam seema par hai .. jeevan ke ek bahut hi acche rishte ko aapne bahut hi behatar dang se vyakt kiya hai .. just kudos ....

    namaskar

    vijay
    http://poemsofvijay.blogspot.com/

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  15. Buri nahi kahoonga par....
    ...samanya kavita !!!

    "अपना प्यार महान हो जाए
    तुम तुम न रहो , "मैं " हो जाओ ।"

    haan par jab uppar padha ki ye college ke dino ki thi to laga yahi to vichar uthte the yuva premika ke komal man main...

    ..pehla pehla pyaar !!

    to kavita ki samiksha to ki ja sakti hai...

    ...ehsaason ki shayad nahi.

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  16. बहुत बढ़िया रहे ये डायरी के पन्ने ...

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